Delhi Election/Chunav Results 2020: दिल्ली चुनाव के ताजा नतीजों और रुझानों से स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली में फिर से अरविंद केजरीवाल की सरकार बनने जा रही है। केजरीवाल तीसरी बार सीएम बनकर न केवल हैट्रिक बनाएंगे बल्कि शीला दीक्षित की बराबरी में भी खड़े हो जाएंगे। शीला दाक्षित भी दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रही थीं। उधर, बीजेपी को अपने दावे के विपरीत हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि, बीजेपी 2015 के मुकाबले बेहतर स्थिति में पहुंची है। उसे करीब चार गुना ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं। आप में जीत का जश्न मनना शुरू हो गया है तो बीजेपी के हार के कारणों की भी चर्चा होने लगी है।
बीजेपी के प्रचार का निगेटिव नरेटिव: दिल्ली विधान सभा चुनाव के दौरान बीजेपी शुरू से लेकर आखिरी दौर तक निगेटिव प्रचार में जुटी रही। बात चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा की। सबने जीत की रणनीति में केजरीवाल को दिल्ली का खलनायक साबित करने की कोशिश की। बीजेपी के एक सांसद ने तो सीएम केजरीवाल को आतंकवादी और नटवरलाल करार दे दिया तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने हनुमान मंदिर में उनके पूजा-अर्चना करने पर ही सवाल खड़े करते हुए मंदिर को अशुद्ध करार दे दिया। आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के ऐसे चुनावी प्रचार की शैली को जनमानस तक निगेटिव कैम्पेन के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। यहां तक कि मामला कोर्ट और चुनाव आयोग तक जा पहुंचा।
शाहीन बाग विरोध-प्रदर्शन, वोटों का ध्रुवीकरण: दिल्ली के ओखला इलाके के शाहीनबाग में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), प्रस्तावित एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ करीब दो महीने से धरना-प्रदर्शन चल रहा है। पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के अदना कार्यकर्ता तक, सबने उसे देशद्रोह साबित करने की कोशिश की और उसके खिलाफ कठोर हिन्दुत्व की बुनियाद पर बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। हिन्दू मतदाताओं का एक खास वर्ग जो कट्टर हिन्दुत्व का समर्थक रहा है, वह तो बीजेपी के पक्ष में लामबंद होता नजर आया पर दूसरे धड़े के हिन्दू मतदाताओं पर उसका असर फीका नजर आया। अमित शाह ने इस क्रम में 11 रोड शो और 39 जनसभाएं की फिर भी वह वोटों का ध्रुवीकरण करने में नाकाम रहे।
बीजेपी पर शाहीन बाग को भुनाने की ऐसी सनक सवार थी कि पीएम मोदी ने अपनी हर सभा में इसका जिक्र किया। बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि आप लोग इतनी जोर से ईवीएम का बटन दबाएं कि शाहीन बाग में बैठे लोगों को करंट लगे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा “गोली मारो सालों को” नारा लगवाने का भी मतदाताओं पर उल्टा असर पड़ता दिख रहा है।
केजरीवाल का पॉजिटिव पॉलिटिकल कैम्पेन: बीजेपी से इतर आप ने अपने चुनावी प्रचार को संतुलित और सकारात्मक रखा। बीजेपी के आक्रामक रुख के बावजूद आप ने सधी प्रतिक्रिया दी और अपना फोकस विकासवादी एजेंडे पर कायम रखा। आक्रामक रहने वाले सीएम अरविंद केजरीवाल ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर कोई जुबानी हमला नहीं बोला। जब उन्हें बीजेपी सांसद द्वारा आतंकवादी कहा गया तो वो प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर खुद को दिल्ली का बेटा बताने में लग गए। उनके प्रचार की बदली शैली ने जनमानस को प्रभावित किया। इसके अलावा केजरीवाल ने अपने भाषणों में लोगों को दिल्ली के विकास की आगामी तस्वीर की झलक दिखाने की कोशिश की। वो कहते रहे कि अगर आपको अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी है, अच्छा भविष्य देना है तो आप को वोट दें।
बिजली-पानी, शिक्षा- चिकित्सा पर आप का केंद्रित जोर: आप के जितने भी स्टार प्रचारक थे, सबने दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी, उन्नत शिक्षा व्यवस्था, मोहल्ला क्लिनिक, वाई-फाई, बसों में महिलाओं के मुफ्त सफर, बसों में मार्शल की तैनाती, सड़कों की अच्छी स्थिति का ही जिक्र अपनी सभाओं में किया और वोटरों को यह समझाने में कामयाब रहे कि अगर आप की सरकार चली गई तो लोगों को मुफ्त बिजली-पानी से हाथ धोना पड़ सकता है।
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कांग्रेस का सरेंडर, आप को फायदा: कांग्रेस ने एक तरह से दिल्ली चुनाव प्रतीक के रूप में लड़ा और चुनावों में सिर्फ हिस्सेदारी ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने नाम मात्र की चुनावी सभाएं अंतिम दौर में कीं। इनके अलावा कांग्रेस ने जोर आजमाइश नहीं की। संभवत: पार्टी ने बीजेपी की हार और आप की जीत सुनिश्चित करने के लिए ही ऐसी रणनीति बनाई। कांग्रेस के सरेंडर करने से मुस्लिम वोट एकमुश्त आप के खाते में गए। इतना ही नहीं दलितों, पिछड़ों और समाज में हाशिए पर रहने वाले अन्य लोग जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं, उनलोगों ने भी संभवत: आप को वोट दिए हैं।
आप ने जातीय कार्ड खेलते हुए बीजेपी के पारंपरिक ‘बनिया’ वोट बैंक में भी सेंध लगाई है। ये समुदाय चुनावों के बीच केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल की बात करते नजर आया था। हनुमान मंदिर में मूर्ति अशुद्ध होने के मनोज तिवारी के जुबानी हमले को भी अरविंद केजरीवाल ने वोट हासिल करने का एक मौका बना लिया और बनिया एवं दलित समुदाय को इस बहाने एकजुट कर उसका वोट पाने में सफलता पाई।