दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत हुई है। बीजेपी 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है। बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल की जबकि आम आदमी पार्टी ने 22 सीटों पर जीत हासिल की है। वहीं दिल्ली में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। दरअसल जब से आम आदमी पार्टी का निर्माण हुआ, उसके बाद से दिल्ली में अभी तक यह पार्टी कभी विपक्ष में नहीं रही है।

2025 के विधानसभा चुनाव में खास बात यह है कि आम आदमी पार्टी के लगभग सभी बड़े नेता चुनाव हार गए। खुद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी चुनाव हार गए। 2020 के मुकाबले 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत भी 10 फीसदी कम हो गया है। अब आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब में मुश्किलें बढ़ाने वाली है।

पंजाब में बाकी है पूरी पिक्चर?

कहा जा रहा है कि दिल्ली तो अभी ट्रेलर है पूरी पिक्चर पंजाब में है। कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की हार से पंजाब में उनका दखल काम होगा। पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर आशुतोष कुमार के अनुसार पंजाब में कहा जाता है कि दिल्ली से ही सरकार चलती है। लेकिन अब भगवंत मान खुद के फैसले ले सकते हैं। उनका कहना है कि भगवंत मान के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी अच्छे संबंध हैं। पंजाब कांग्रेस भी मानती है कि भगवंत मान के अमित शाह से अच्छे संबंध हैं और अब वह अरविंद केजरीवाल के दबाव में नहीं आने वाले हैं।

एक हार और सब खत्म? समझिए क्या शीला दीक्षित की तरह साइडलाइन हो जाएंगे अरविंद केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नई दिल्ली से बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायक परवेश वर्मा ने भी कहा था कि केजरीवाल, भगवंत मान के लिए मुसीबत बनने वाले हैं। उन्होंने दावा किया था कि दिल्ली से हारने के बाद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे और इससे भगवंत मान परेशान हैं।

भगवंत मान के साथ कांग्रेस भी खुश!

एक्सपर्ट्स का मनाना है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी वापसी की स्थिति में नहीं है। ऐसे में दिल्ली की हार केवल भगवंत मान के लिए ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी अच्छी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे का असर केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं होगा। अगले साल बिहार में भी विधानसभा चुनाव है और अगर दिल्ली में केजरीवाल की जीत होती तो विपक्ष बिहार में बीजेपी के खिलाफ एकजुट होता।

अब राहुल के लिए जगह खाली

अब बड़ा सवाल यह भी है कि केजरीवाल क्या करेंगे? लेकिन दिल्ली में उनकी हार के बाद अब यह सारी बातें सीन से गायब हो चुकी है। पहले अरविंद केजरीवाल पीएम मोदी के लिए चुनौती माने जाते थे। लेकिन अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि अरविंद केजरीवाल की दिल्ली में हार के बाद पीएम मोदी को चुनौती कौन देगा? क्या राहुल गांधी के लिए जगह खाली हो गई है? दरअसल अरविंद केजरीवाल पिछले कुछ सालों से सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति भी कर रहे थे। इसीलिए कई संवेदनशील मुद्दों पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी। चाहे वह दिल्ली के दंगे हो या फिर शाहीन बाग का प्रदर्शन, उन्होंने उस तरह से रिएक्ट नहीं किया जिस तरह की उम्मीद विपक्ष या फिर एक समुदाय कर रहा था।

सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर केजरीवाल?

दिल्ली के 2025 के विधानसभा चुनाव में भी इसका असर दिखा। दिल्ली की मुस्तफाबाद और ओखला विधानसभा सीट पर असदुद्दीन ओवैसी ने इसी को मुद्दा बनाया और कहा कि अरविंद केजरीवाल RSS का छोटा रिचार्ज है। असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्तफाबाद से दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया था जबकि ओखला से शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी शिफा उर रहमान को उम्मीदवार बनाया था। ओवैसी ने इसी लाइन पर प्रचार किया कि कोई विपक्षी दल इन दोनों के लिए नहीं खड़ा हुआ। केवल वह खड़े हैं। उन्होंने इसको लेकर केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। इससे मुसलमान वोट बंटे भी और ताहिर हुसैन और शिफा उर रहमान को अच्छी संख्या में वोट मिले।

पंजाब और दिल्ली की राजनीति कैसे चलेगी, इसका पता तो आने वाले कुछ दिनों में ही चल जाएगा। पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायकों का क्या रुख होता है, मंत्रियों का कैसा प्रदर्शन रहता है, मुख्यमंत्री भगवंत मान किस तरह से फैसले लेते हैं? इन सब चीजों पर सभी की निगाहें टिकी होंगी।