चुनाव प्रचार में व्यंग बाणों, राजनीतिक चालों, घोषणा पत्रों से ही राजनीतिक दल एक-दूसरे को पटकनी नहीं देते हैं, बल्कि मजदूर मंडी से मजदूरों को गायब करवाकर भी चकमा देते हैं। दरअसल, चुनाव आते ही प्रचार के लिए प्रत्याशियों को अपने कारवां के पीछे झंडा-डंडा उठाए लोगों की जरूरत बड़ी संख्या में पड़ती है। इस जरूरत को पूरा करने का काम दिल्ली की मजदूर मंडियां करती हैं लेकिन आजकल इन मंडियों से मजदूर नदारद दिख रहे हैं।

बता दें कि राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की मंडियां लगती हैं, जहां से लोग अपने घरों में मजदूरी करने के लिए लोगों को ले जाते हैं। ये मजदूर खासकर निर्माण कार्यों में लगे होते हैं, जिनकी दिहाड़ी 500-800 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से होती है। खासकर ठेकेदार व छोटे बिल्डर, निर्माणाधीन इमारतों में काम करने के लिए इन्हीं मंडियों पर पूरी तरह आश्रित होते हैं।

दिल्ली के इन इलाकों में मजदूर होते हैं इकट्ठा

ये मंडियां दिल्ली में नजफगढ़ फिरनी रोड़, उत्तम नगर के आर्य समाज रोड़, तिलक नगर बाजार के मुख्य मार्ग के नजदीक, बदरपुर, नरेला, बवाना, द्वारका सहित विभिन्न इलाकों में सुबह 6 बजे से ही लग जाती है।

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जब से विधानसभा चुनाव प्रचार में तेजी आई है, तभी से इन मंडियों में दिहाड़ी मजदूरों का अभाव हो गया है। वजह यह है कि हरेक राजनीतिक दल अपने विपक्षी को कमतर बताने के लिए यहां से सुबह के समय ही रैलियों में भीड़ दिखाने के लिए मजदूरों को दिहाड़ी पर ले जा रहे हैं। मजदूर भी अपने सामान्य दिनों के कामों को छोड़कर खुशी-खुशी रैलियों में शामिल होने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें रैलियों में दलों द्वारा भरपेट तीनों समय का खाना, पानी, दोगुनी दिहाड़ी के साथ ही शाम का इंतजाम भी पूरी तरह करके दिया जा रहा है। एक मजदूर ने बातचीत के दौरान बताया कि सुबह-सुबह दल बोली तक लगा देते हैं, ऐसे में जो ज्यादा पैसा देता है हम उसके साथ चले जाते हैं।

वहीं, एक अन्य मजदूर ने कहा कि पेट भरने के साथ ही जेब भी भर जाती है और दस-बारह दिनों में ही करीब डेढ़ महीने की कमाई भी हो जाती है। एक महिला दिहाड़ी मजदूर ने कहा कि पार्टी के लोग भरपेट खाना खिलाते हैं और बच जाता है तो मैं अपने बच्चों के लिए भी बंधवाकर घर ले जाती हूं। चुनाव में आजकल भरपेट तीनों समय खाना मिल रहा है, वरना ये नेता लोग कभी किसी को पूछते हैं क्या।