पुलिस अपने नाम से ही बदनाम है। लोगों से बर्ताव को लेकर उसकी कारगुजारियां जगजाहिर हैं। लेकिन जब सीजेआई खुद चिंता जताएं तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा अपने आप ही लग जाता है। पुलिस की छवि पर और ज्यादा बट्टा लगता है। साफ हो जाता है कि खाकी वर्दीधारी किस तरह से लोगों के साथ सलूक करते हैं। उनकी जद से रसूखदार लोग भी बाहर नहीं हैं।

नालसा के ‘न्याय तक पहुंच’ कार्यक्रम में सीजेआई एनवी रमन्ना ने कहा कि पुलिस की ‘थर्ड डिग्री’ से रसूखदार भी नहीं बच पाते हैं। उन्होंने नालसा से देश में पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने को कहा। उन्होंने कहा कि वीआईपी और कमजोर लोगों के बीच न्याय तक पहुंच के अंतर को पाटना जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक संस्था के रूप में न्यायपालिका नागरिकों का विश्वास हासिल करना चाहती है, तो हमें आश्वस्त करना होगा कि हम सबके लिए मौजूद हैं।

सीजेआई ने कहा कि कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक थाने, जेल में डिस्प्ले बोर्ड और होर्डिंग लगाना इस दिशा में एक कदम है। नालसा को देश में पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए कदम उठाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हिरासत में यातना और अन्य पुलिस अत्याचार ऐसी समस्याएं हैं जो हमारे समाज में अब भी विद्यमान हैं। संवैधानिक घोषणाओं और गारंटियों के बावजूद, पुलिस थानों में प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व का अभाव गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के लिए एक बड़ा नुकसान है।

गौरतलब है कि नालसा का गठन विधिक सेवा प्राधिकरण कानून, 1987 के तहत समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करने और विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान की दिशा में लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए किया गया था। सीजेआई ने वकीलों को कानूनी सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की मदद करने के लिए कहा। उनका कहना था कि लोगों को यकीन दिलाने के बाद ही योजना के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। जब लोग आप पर विश्वास करेंगे तभी अपना दर्द भी साझा करेंगे।