जब देश में लॉकडाउन लगा तो गुजरात के बोताद में काम करने वाले चंपालाल भील सपरिवार अपने गांव राजस्थान के राजसममंद लौट आए। पेशे से इलेक्ट्रिशियन भील दो साल पहले सपरिवार गुजरात शिफ्ट हो गए थे लेकिन कोरोना संकट की वजह से वहां काम मिलना बंद हुआ तो केलतारा गांव लौट आए। अब भील यहां मनरेगा के तहत मजदूरी करते हैं। उनके साथ उनकी गर्भवती पत्नी भी मनरेगा मजदूर बन गई हैं।
राज्य के मनरेगा कमिश्नर पी सी किशन कहते हैं कि भील अकेले ऐसे स्किल्ड वर्कर नहीं हैं जो मनरेगा मजदूर बने हैं। उन्होंने बताया, “राज्य में वापस आने वाले प्रवासी श्रमिकों में से 60-70% स्किल्ड हैं। चूंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है, इसलिए उनमें से अधिकांश ने MNREGS की ओर रुख किया है, जो वर्तमान में राज्य में 52 लाख से अधिक मजदूरों को रोजाना रोजगार दे रहा है। यह देश में सबसे ज्यादा है।” उन्होंने बताया कि 17 अप्रैल को मनरेगा के तहत 62 हजार लोग राज्य में काम कर रहे थे जो अब रोजाना बढ़ रहा है। राजस्थान में मनरेगा मजदूरों को रोजाना 220 रुपये प्रतिदिन की दर से दो हफ्ते में एक बार भुगतान किया जाता है।
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भील की पत्नी चंद्रा गर्भवती है। भील का कहना है कि उसकी पत्नी चंद्रा के लिए कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूर के रूप में काम करना, ईंटों जैसी सामग्री उठाना, उसके लिए जोखिम भरा है। लेकिन कमाई कम होने की वजह से उसे भी काम करना पड़ कहा है। उसने कहा, “मैंने इलेक्ट्रिशियन का काम करने के अलावा इससे पहले कभी भी इस तरह का लेबर का काम नहीं किया था।” चंद्रा बताती है कि उसके पति गुजरात में प्रतिमाह 10 हजार रुपये कमाते थे। उससे उसका खर्च चल जाता था लेकिन अब उस पर संकट है।
राजस्थान श्रम रोजगार विभाग की वेबसाइट के आंकड़ों से पता चलता है कि शुक्रवार (12 जून) तक, 13,13,678 प्रवासी कामगार राज्य लौट आए थे – इनमें से ज्यादातर उदयपुर, डूंगरपुर, राजसमंद, पाली, श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा, बाड़मेर, अजमेर और अलवर के हैं। इन जिलों में मनरेगा को तहत काम की मांग सबसे ज्यादा बढ़ी है।
भील की ही तरह डुंगरपुर जिले के रमेश मीणा की भी कहानी है। वह गुजरात के गांधीनगर में मार्बल फिटर का काम करता था और प्रतिमाह 18000 रुपये कमाता था। होली में घर लौटा था लेकिन लॉकडाउन की वजह से लौट नहीं सका। अब वह भी मनरेगा मजदूर बन चुका है और रोजाना 150 से 200 रुपये कमा रहा है।