Waqf Amendment Act Case: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। सीजेआई बीआर गवई ने आज वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा कि संसद द्वारा पारित कानून में संवैधानिकता की धारणा होती है और जब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आता। कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।

सीजेआई गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जो पिछले महीने कानून बन गया। इससे पहले कोर्ट ने तीन मुद्दे तय किए थे – उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ, वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों का नामांकन और वक्फ के तहत सरकारी भूमि की पहचान। केंद्र ने तब आश्वासन दिया था कि वह मामले का हल होने तक इन मुद्दों पर कार्रवाई करेगा।

शीर्ष अदालत में जब सुनवाई शुरू हुई तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र ने इन तीन मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है। उन्होंने कहा कि हालांकि, याचिकाकर्ताओं की लिखित दलीलें अब कई अन्य मुद्दों तक हैं। मेरा अनुरोध है कि इसे केवल तीन मुद्दों तक ही सीमित रखा जाए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर आपत्ति जताई। सिंघवी ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई (संजीव खन्ना) ने कहा कि हम मामले की सुनवाई करेंगे और देखेंगे कि क्या अंतरिम राहत दी जानी चाहिए। अब हम तीन मुद्दों तक सीमित रहने के लिए नहीं कह सकते।

सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि बेंच ने पहले तीन मुद्दे उठाए थे ⁠स्टे के लिए। हमने इन तीनों पर जवाब दाखिल किया था, लेकिन अब लिखित दलीलों में और भी मुद्दे शामिल हो गए हैं। सिर्फ तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित हो। कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि शुरुआत में तीन बिंदु तय किए गए। हमने तीन पर जवाब दिए, लेकिन पक्षकारों ने इन तीन मुद्दों से भी अलग मुद्दों का जिक्र किया है।कोर्ट सिर्फ तीन हो मुद्दों पर फोकस रखे।

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे। मदिंरों की तरह मस्जिदों में 2000-3000 करोड़ चंदे में नहीं आते। सिब्बल ने कहा कि पिछले अधिनियम में पंजीकरण की आवश्यकता थी और क्योंकि आपने पंजीकरण नहीं कराया- इसे वक्फ नहीं माना जाएगा. ⁠कई 100, 200 और 500 साल पहले बनाए गए थे।

जब सीजेआई ने पूछा कि क्या पंजीकरण की आवश्यकता है? इस पर सिब्बल ने कहा कि यह था, लेकिन पंजीकरण न कराने पर कोई परिणाम नहीं था। सीजेआई ने कहा कि हम इसे रिकॉर्ड पर ले रहे हैं। 2013 के दौरान वक्फ बाय यूजर के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं था? क्या यह स्वीकार्य था? सिब्बल ने कहा कि हां, यह स्थापित प्रथा है। वक्फ बाय यूजर को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है।

कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद वक्फ कानून में जितने भी संशोधन हुए, उनमें वक्फ प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था। कोर्ट ने पूछा- क्या वक्फ बाय यूजर में भी पंजीकरण अनिवार्य था। सिब्बल ने हां में जवाब दिया। अदालत ने कहा- तो आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह आवश्यक हो गया।

वक्फ बाय यूजर को लेकर सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं। यही वक्फ बाय यूजर है। बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी। 1923 से लेकर 1954 तक अलग अलग प्रावधान हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यही रहे।

कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि कोई विवाद है। इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है। सिब्बल के तर्क पर अदालत ने कहा कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं। दरगाह अलग है।

सिब्बल ने कहा कि एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया। सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती। मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, वक्फ संस्थाएं दान से चलती हैं। सिब्बल ने कहा कि कलेक्टर जांच करेंगे। जांच की कोई समय सीमा नहीं है। जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी।

CJI ने पूछा कि क्या इससे धर्म का पालन करने पर रोक लग जाती है? इसके जवाब में सिब्बल ने कहा कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। संशोधन से वक्फ को सरकार ने अपने पास से लिया है। इसके बाद यदि कोई अनुसूचित जनजाति मुस्लिम है और वक्फ बनाना चाहता है, तो ऐसी संपत्ति वक्फ नहीं है और यह सीधे तौर पर अधिग्रहण है और अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार छीन लिया जाता है।

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सिब्बल ने कहा कि मैं सरकार को क्यों दिखाऊं कि मैं एक मुसलमान हूं। इसका फैसला कौन करेगा और मैं 5 साल तक क्यों इंतजार करूं। यह अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन है। उन्होंने ने कहा कि अब वक्फ बाय यूजर को हटा दिया गया है। इसे कभी नहीं हटाया जा सकता। यह ईश्वर को समर्पित है, यह कभी खत्म नहीं हो सकता। अब यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि केवल वही वक्फ बाय यूजर बचेगा जो रजिस्टर्ड है।

कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि खजुराहो में एक मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी लोग वहां जाकर पूजा-प्रार्थना कर सकते हैं। सिब्बल ने कहा कि नया कानून कहता है कि अगर कोई संपत्ति एएसआई संरक्षित है तो यह वक्फ नहीं हो सकती। सिब्बल ने कहा कि एक अन्य प्रावधान लाया गया है जिसमें वक्फ करने वाले का नाम और पता, वक्फ करने का तरीका और वक्फ की तारीख मांगी गई है, लोगों के पास यह कैसे होगा? 200 साल पहले बनाए गए वक्फ मौजूद हैं और अगर वे यह नहीं देते हैं तो मुतवल्ली को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ेगा। वहीं, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। पढे़ें..पूरी खबर