कोरोना के इलाज के दावे वाली पतंजलि की दवा कोरोनिल के विज्ञापन पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगा दी। आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को आदेश दिया है कि कोविड दवा का तब तक प्रचार नहीं करें जब तक कि मुद्दे की जांच नहीं हो जाती है। ये पहली बार नहीं है जब सरकार ने बाबा रामदेव के किसी प्रोजेक्ट को रोका या खारिज किया हो। 2014 से “स्वदेशी” को बढ़ावा देने वाली बाबा रामदेव की होमग्रोन एफएमसीजी कंपनी ने योगी-मोदी राज में लगातार कमाई के अवसर भुनाए हैं। पतंजलि अपनी कई परियोजनाओं को लेकर केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के साथ बातचीत करती रहती है।
हालांकि, पतंजलि के कई प्रस्तावों को या तो तुरंत नहीं माना गया या कई महीनों के बाद उन पर विचार किया गया। कंपनी के संस्थापक बाबा रामदेव द्वारा किए गए कई प्रस्तावों को सरकार द्वारा अस्वीकार भी किया गया। 2015 में पतंजलि ने राज्य सरकार द्वारा संचालित खादी और ग्रामोद्योग आयोग को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा था। पतंजलि ने इसके रिसर्च, मार्केटिंग, क्वालिटी कंट्रोल और मैनेजमेंट की पूरी तरह से ज़िम्मेदारी उठाने की इच्छा जताई थी। पतंजलि के अधिकारियों ने MSMEs मंत्रालय के साथ कम से कम तीन बार बातचीत की थी। हालांकि, तत्कालीन एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्रा ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। मिश्रा ने यह कहते हुए प्रस्ताव खारिज किया कि खादी की अपनी अलग पहचान है और इससे छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
2017 में योगी आदित्यनाथ के यूपी सीएम बनने के बाद, पतंजलि ने यूपी सरकार को मिड-डे-मील का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव दिया था। मिड-डे-मील में पतंजलि ने 10 करोड़ से अधिक बच्चों को पंजिरी (चीनी, घी और गेहूं का मिश्रण), फल और दूध देने की बात कही थी। लेकिन इस प्रस्ताव को योगी सरकार ने खारिज कर दिया था।
रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत हरिद्वार के घाटों को गोद लेने का प्रस्ताव भी दिया था। लेकिन उनके साथ कई अन्य गैर सरकारी संगठनों को नदी के किनारे पौधे लगाने की ज़िम्मेदारी दी गई। इसी तरह पतंजलि की वैदिक ब्रॉडकास्टिंग को दक्षिण भारत में वैदिक सामग्री की पेशकश करने वाले तीन चैनलों को लॉन्च करने की अनुमति नहीं दी गई थी। उनका आवेदन तीन साल तक अटका रहा। अंत में उन्हें पिछले साल लाइसेंस दिया गया। वहीं रामदेव के बहुप्रचारित वैदिक शिक्षा बोर्ड को आगे बढ़ने में पांच साल लगे।
पतंजलि का नोएडा में 2,000 करोड़ रुपये का फूड पार्क का एक और प्रोजेक्ट क्लियरेंस के कारण अटक गया था। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा था कि कंपनी का आवेदन महत्वपूर्ण विवरणों के चलते अटका हुआ है। सीएम आदित्यनाथ ने तब रामदेव और बालकृष्ण दोनों को अपनी सरकार से सहयोग का आश्वासन दिया था। दस्तावेज जमा करने की अंतिम तिथि बढ़ाने के लिए यूपी सरकार के अधिकारियों ने केंद्रीय खाद्य मंत्रालय से बात की थी। जिसके बाद प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई और बाद में सब्सिडी से सम्मानित किया गया।