कोरोना की दूसरी लहर के चलते इस समय देश में महामारी के 16 लाख एक्टिव मामले हैं। इस बीच कई राज्यों की ओर से ऑक्सीजन की कमी की शिकायत की गई है। जिसे देखते हुए केंद्र ने 50 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने का फैसला किया है।
कौन से राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?: इस समय महाराष्ट्र में जितना ऑक्सीजन का उत्पादन हो सकता है उसकी पूरी खपत हो जा रही है। राज्य में कोरोना के 6.38 लाख एक्टिव मामले हैं। इन मामलों में से 10 फीसदी लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं। मध्य प्रदेश में इस समय 59,193 एक्टिव मामले हैं। राज्य ऑक्सीजन के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर है। गुजरात में कोरोना के 49,737 एक्टिव मामले हैं और यहां भी ऑक्सीजन की भारी मांग है। केंद्र 12 राज्यों पर फोकस कर रहा है। जिनमें, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान कर्नाटक, यूपी, दिल्ली, छत्तीसगढ़, केरल, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा शामिल हैं।
कितनी ऑक्सीजन का उत्पादन होता है, कहां, और सप्लाई में क्या बाधाएं होती हैं?: आमतौर पर ऑक्सीजन का इस्तेमाल लोहे और इस्पात उद्योग, अस्पतालों, कांच उद्योग में होता है। इस वक्त अधिकांश राज्य लोगों के इलाज के लिए अपने पूरे ऑक्सीजन उत्पादन का इस्तेमाल कर रहे हैं। उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में 7,000 मीट्रिक टन से अधिक मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन करने की क्षमता है।
निर्माता 99.5% शुद्धता के साथ तरल ऑक्सीजन तैयार करते हैं, जिसे जंबो टैंकरों में जमा किया जाता है, और एक तय तापमान पर क्रायोजेनिक टैंकरों में डिस्ट्रीब्यूटर को पहुंचाया जाता है।
उद्योग के एक विशेषज्ञ ने बताया, “समस्या यह है कि मांग अधिक है, लेकिन ऑक्सीजन को स्टोर करने और यहां-वहां ले जाने के लिए पर्याप्त सिलेंडर और टैंकर नहीं हैं।” नए ऑक्सीजन प्लांट को तुरंत स्थापित करना या मौजूदा का विस्तार करना मुमकिन नहीं है। एक प्लांट को शुरू करने में 24 महीने लगते हैं।
परिवहन में क्या बाधाएं हैं?
भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की 24 × 7 सप्लाई के लिए पर्याप्त क्रायोजेनिक टैंकर नहीं हैं। अब जब ऑक्सीजन को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाया जा रहा है, तो निर्माता से मरीज के बिस्तर तक यात्रा का समय 3-5 दिनों से बढ़कर 6-8 दिनों तक हो जाता है।
अस्पताल जितना दूर होगा, ऑक्सीजन पहुंचने में उतना समय लगेगा। इसके अलावा सिलेंडर की भी कमी है। ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स के लिए लागत बढ़ने से सिलेंडर की रिफिलिंग की लागत बढ़ गई है।
क्या है आगे का रास्ता?
केंद्र की योजना है कि वह दूर-दराज के इलाकों में 100 अस्पतालों की पहचान करेगा, जो अपने खुद के लिए ऑक्सीजन बना सकते हैं। अस्पताल सप्लाई को स्टोर करने के लिए विशाल भंडारण टैंक बना रहे हैं जो कम से कम 10 दिनों तक चल सकते हैं।
लोहे और इस्पात के प्लांट से ऑक्सीजन के स्टॉक को चिकित्सा उपयोग के लिए भेजा जा रहा है। सरकार ने यह भी तय किया है कि आर्गन और नाइट्रोजन टैंकरों को ऑक्सीजन परिवहन के लिए डायवर्ट किया जाए। रिफिलिंग के लिए औद्योगिक सिलेंडरों के उपयोग की भी सलाह दी गई है।