बिहार का भागलपुर जिला उभरते हुए छोटे शहरों में शुमार किया जाता है लेकिन इसके गांवों में कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते हालात काफी खराब हैं। बता दें कि नेशनल फैमिली सर्वे 2015-16 के तहत बिहार के 48.3 फीसदी बच्चों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो रहा और 43.9 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह राष्ट्रीय औसत क्रमशः 38.4 और 35.7 से काफी ज्यादा है। बिहार के गांवों में बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए सबसे बड़ा हथियार मिड डे मील है लेकिन स्कूल बंद होने के चलते अब बच्चे इस सुविधा से भी महरूम हैं।
भागलपुर में मुसाहारी टोला, जो कि महादलित कालोनी है, उसके बच्चे पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल जाते हैं। इलाके में रहने वाले दीनू मांझी ने बताया कि यहां के लोगों के पास जातिगत भेदभाव के चलते दो ही काम हैं। एक कूड़ा बीनना और दूसरा भीख मांगना। अब लॉकडाउन के चलते इनमें भी कमी आ रही है। अब चूंकि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं तो वह भी अब कूड़ा बीनने को मजबूर हैं।
इलाके में रहने वाली एक महिला ने बताया कि एक माह पहले सरकारी अधिकारी प्रत्येक राशन कार्ड पर 5 किलो चावल या गेंहू और एक किलो दाल देकर गए थे लेकिन उसके बाद से वह भी नहीं आए हैं। महिला का कहना है कि एक किलो दाल या पांच किलो चावल एक परिवार में कितने दिन चलेंगे?
जब इस बारे में जिलाधिकारी प्रणव कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मिड डे मील योजना का पैसा बच्चों या उनके परिजनों के खाते में भेज दिया गया है। हालांकि लोगों का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। बाबडिला इलाके के एक स्कूल के प्रधानाचार्य ने भी बताया कि लॉकडाउन 2 तक कुछ पैसा आया था, जिसे बच्चों के परिजनों के खाते में भेज दिया गया है लेकिन मई माह में कोई पैसा नहीं आया है।
मुसाहारी टोला में सभी मकान कच्चे हैं और यहां स्वच्छ भारत अभियान के तहत कोई शौचालय भी नहीं बनवाया गया है। हर दिन यहां के लोग खुले में शौच करने जाते हैं, जिसके चलते किसानों के भी गुस्से का इन्हें शिकार होना पड़ता है। बच्चे चूंकि स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो वह भी खाली समय में कूड़ा बीनकर 10-20 रुपए कमा रहे हैं।

