Coronavirus in india: कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने दुकानदारों, अन्य प्रतिष्ठानों और व्यापारिक यूनिट को निर्देश दिए हैं कि वह बंद के दौरान अपने कर्मचारियों को वेतन दें। मगर कई असंगठित क्षेत्र के प्रतिष्ठान और मजदूर सरकार के इस आदेश से मिलने वाली मदद से वंचित रह सकते हैं। सरकारी अधिकारियों ने पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर यह बात कही। बड़ी संख्या में असंगठित क्षेत्र के मजदूर राज्य सरकार के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं। कुछ राज्यों के अधिकारियों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सरकारी आदेशों को पूरा करने के अलावा उन्हें मुख्य तौर पर दो मुद्दों से जूझना पड़ा। पहला कई असंगठित क्षेत्र के श्रमिक रजिस्टर्ड नहीं है। दूसरा अधिकतर राज्यों के पास इन अनुपालनों को पूरा करने के लिए जरुरी फंड की कमी।

भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद (Chief Statistician) प्रणब सेन कहते हैं, ‘भारत में अधिकांश प्रतिष्ठान अनौपचारिक क्षेत्र से हैं। इसमें बहुत से रजिस्टर्ड ही नहीं हैं। इनमें कुछ दुकानों और संस्थानों के तहत रजिस्टर्ड हो सकते हैं लेकिन इनमें भी बहुत से रजिस्टर्ड नहीं हैं। तो समस्या ये है कि इनका पता कैसे लगाया जाए। वहां कितने कामगार थे और फिर उन्हें मदद कैसे मुहैया कराई जाए। प्रशासनिक क्षमता के बिना इन आदेश को पूरा करना थोड़ी चिंता की बात हो सकती है।’ विशेषज्ञों के मुताबिक यहां तक ​​कि निर्माण क्षेत्र में (जो प्रवासी श्रमिकों के सबसे बड़े हिस्से को रोजगार देता है) श्रमिक एक ठेकेदार से बंधे नहीं होंगे। ऐसे में सरकार के आदेशों को लागू करना खासा मुश्किल होता है।

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उपलब्ध आखिरी छठी आर्थिक जनगणना (जनवरी 2013 से अप्रैल 2014 के बीच) के मुताबिक कुल 5.85 करोड़ प्रतिष्ठानों में 13.13 करोड़ कामगार कार्यरत हैं। इसमें 77.6 फीसदी यानी 4.53 करोड़ गैर कृषि गतिविधियों (सार्वजनिक प्रशासन, रक्षा और अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा गतिविधियों को छोड़कर) में लगे हुए थे। इसके अलावा 22.4 फीसदी प्रतिष्ठान (1.31 करोड़) कृषि क्षेत्र ((फसल उत्पादन और वृक्षारोपण को छोड़कर) से जुड़ी गतिविधियों में कार्यरत थे। ऐसे में हाल के आधिकारिक आंकड़ों से देश में असंगठित क्षेत्रों के कामगार की सटीक संख्या अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

इसके अलावा व्यवसाय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि छोटे दुकानदारों और प्रतिष्ठानों के पास कम से कम बफर (स्टॉक जैसे- धन या अन्य वस्तुएं) होता है जिसका इस्तेमाल खरीदारी में किया जाता है। ऐसे में 21 दिनों के लॉकडाउन के चलते उनके लिए भुगतान करना खासा मुश्किल हो गया।

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मुंबई स्थित विभिन्न प्रकार के व्यवसाय से जुड़ी कंपनी के एक वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी ने बताया, ‘बहुत से छोटे व्यापारी 3-7 दिन के मौद्रिक बफर के साथ अपना कारोबार चलाते हैं। इससे वो कार्यशील पूंजी की जरुरत का प्रबंधन करते हैं, इसमें कर्मचारियों का वेतन और वस्तुओं की खरीद शामिल हैं। लॉकडाउन से इस पूरे चक्र को नुकसान हुआ और ये कर्मचारियों के वेतन भुगतान सहित अन्य प्रावधानों में मुश्किलें पैदा करता है।’