कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की मार से रेलवे भी नहीं बच पाया है। कोरोना और लॉकडाउन के दौर में भारतीय रेलवे को 17000 करोड़ से ज्यादा की चपत लगी है। पिछले साल की तुलना में रेलवे को किराए के जरिए होने वाली कमाई में 8,283 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। अनाज और अन्य सामानों की ढुलाई पिछले साल की अपेक्षा इस साल कम हुई है जिसके चलते रेलवे को इस चपत से गुजरना पड़ा है।
सूत्रों ने बताया कि अप्रैल और मई में हुए पेसैंजर ट्रेनों से होने वाली कमाई मई का घाटा मई के अंत तक 9000 करोड़ हो सकता है। मार्च के अंत में लगभग सारी ट्रेन सेवाएं रद्द हो गईं थी। 12 मई के बाद से श्रमिक स्पेशल ट्रेन और कुछ अन्य ट्रेनों की सेवा शुरू हुई। वहीं, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए रेलवे को अबतक 300 करोड़ का फायदा हुआ है लेकिन उन ट्रेनों में दिए गए भोजन और अन्य उपभोग्य सामग्रियों पर हुआ खर्च का पैसा भी रेलवे को ही चुकाना है। हालांकि कोरोना वायरस-संबंधी खर्चों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने रेलवे को 350 करोड़ रुपये दिए हैं। लेकिन रेलवे ने कितना खर्च किया, और कोरोना महामारी को लेकर कितना खर्च किया गया इसकी गणना अलग से की जाएगी।
रेलवे ने पिछले वर्ष की तुलना में 148 मिलियन टन (मीट्रिक टन) माल ढुलाई की है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 60 मीट्रिक टन कम है और इसके जरिए रेलवे ने 13,412 करोड़ रुपये कमाए हैं, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 8,283 करोड़ रुपये कम है। सरकार की प्राथमिकता के अनुसार लॉकडाउन के दौरान सभी राज्यों में आवश्यक आपूर्ति अच्छी तरह से हो इसके लिए रेलवे ने लॉकडाउन के दौरान 11.9 मीट्रिक टन खाद्यान्न अलग-अलग राज्यों में पहुंचाया। रेलवे को इससे 606 करोड़ की कमाई भी हुई। माल ढुलाई से कमाई के मामले में रेलवे का यही एक ऐसा क्षेत्र रहा जहां पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 5.83 मीट्रिक टन की वृद्धि हुई।
कोयले ढुलाई से होने वाली कमाई के क्षेत्र में रेलवे को सबसे ज्यादा घाटा सहना पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान रेलवे को 5,312 करोड़ रुपये की कमी देखने को मिली। रेलवे ने इस दौरान 70 मीट्रिक टन कोयला ढोया जो पिछले साल इस अवधि के दौरान लगभग 35 मीट्रिक टन कम था। उर्वरक ढुलाई में भी रेलवे को 289 करोड़ की चपत का सामना करना पड़ा।