रोहित कुमार
कोरोना महज सेहत के मोर्चे पर आया एक बड़ा संकट भर नहीं बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जो कहीं से भी इकहरा नहीं है। यही वजह है कि शुरुआती दिनों से ही इसे एक ‘सभ्यता संकट’ के तौर पर देखा गया। अब जब इस महामारी से बचाव के लिए दुनिया टीकाकरण की सफलता तक पहुंच रही है तो कोरोनाकाल के दौरान सामने आई दूसरी चुनौतियों से निपटने की तैयारी सरकारी-असरकारी स्तर पर सामने आ रही है।
कोरोना संक्रमण के कारण पढ़ाई पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। दुनिया के तमाम देशों में पूर्णबंदी और सुरक्षित दूरी का दिशानिर्देश लागू होने से 154 करोड़ से ज्यादा छात्र-छात्राएं स्कूल नहीं जा पा रहे। इनमें से करोड़ों के आगे हमेशा के लिए पढ़ाई छूटने का खतरा है। इस खतरे से जूझ रहे विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या ज्यादा है। साफ है कि इससे समाज खासतौर से लड़कियों को शिक्षित बनाने के सालों के प्रयास को झटका लगा है।
यूनेस्को की सहायक महानिदेशक (शिक्षा) स्टेफेनिया जियानिनी के अनुसार कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए पूरी दुनिया में स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थाओं को बंद करना पड़ा। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान तो हो ही रहा है, उनके फिर से स्कूल आने की प्रवृत्ति पर भी विपरीत असर पड़ेगा।
महीनों की स्कूल बंदी से करोड़ों विद्यार्थियों खासतौर पर लड़कियों के फिर से स्कूल आने में मुश्किल हो सकती है। इससे शिक्षा में लैंगिक असमानता भी बढ़ेगी और समाज में यौन शोषण, कम उम्र में मां बनने, कम उम्र में शादी और जबरदस्ती शादी जैसी समस्याएं नए सिरे से सामने आएंगी।
कुछ माह पहले के एक साक्षात्कार में स्टेफेनिया ने कहा इस समय दुनिया के 89 फीसद विद्यार्थी कोविड-19 के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। यह संख्या 154 करोड़ की बनती है। इनमें करीब 74 करोड़ लड़कियां हैं। इनमें से 11 करोड़ लड़कियां अल्प विकसित देशों की हैं जिनके लिए स्कूल आना और पढ़ाई को जारी रखना पहले ही मुश्किल बना हुआ था।
बात भारत की करें तो कोरोना के कारण स्कूलों के खोलने पर अभी तक निर्णायक तौर पर कुछ भी तय नहीं हो पा रहा है। गाजियाबाद के केंद्रीय स्कूल में प्रधानाध्यापिका ममता श्री बताती हैं कि कक्षाएं न चलने के कारण अध्ययन-अध्यापन का सिलसिला आॅनलाइन शुरू तो हो गया है, पर इसमें कई परिवारों और बच्चों की साधनहीनता एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आई है।
जाहिर है कि इसका समाधान तब तक नहीं है जब तक इन बच्चों के हाथ में अपने स्मार्टफोन नहीं आ जाएं ताकि निर्विघ्न तौर पर वे अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। इतने बच्चों के लिए स्मार्टफोन की व्यवस्था करना सरकार के लिए भी आसान नहीं है। इसमें बड़ी भूमिका उन सामाजिक संगठनों की हो सकती है जो आपने साधन और प्रभाव से इस काम में आगे हाकर हाथ बटाएं। ऐसी ही एक सुंदर पहल चंडीगढ़ में की गई है।
राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम ‘डोनेट ए फोन’ के अंतर्गत चंडीगढ़ के सेक्टर 19 के एक सरकारी स्कूल के जरूरतमंद बच्चों को 20 नए स्मार्टफोन बांटे गए हैं। मंच की चंडीगढ़ इकाई की तरफ से ऐसी पहल दूसरी बार की गई है और आगे इस पहल को वह न सिर्फ जारी रखना चाहती है बल्कि व्यापक भी करना चाहती है।
इस अभियान की खूबसूरती यह है कि इसमें कोई भी व्यक्ति अपना नया-पुराना फोन या टैब दान कर इसका हिस्सा बन सकता है। एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की आॅनलाइन कक्षाओं के सेटअप के लिए जरूरी सामान ही नहीं हैं। ‘लोकल सर्कल’ नाम की एक संस्था के हालिया सर्वे में देश के 203 जिलों के 23 हजर लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें 43 फीसद लोगों ने कहा कि बच्चों की आॅनलाइन कक्षाओं के लिए उनके पास कंप्यूटर, टैब, प्रिंटर, राउटर जैसी चीजें नहीं हैं।
सर्वे में यह बात भी सामने आई कि कई परिवारों में स्मार्टफोन या लैपटॉप तो पहले से हैं पर चूंकि अभिभावक भी इस दौरान घर में रहकर ही काम कर रहे हैं तो ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है।
ऐसे में मंच ने जिस तरह की पहल की है उससे बच्चों को अपनी पढ़ाई-लिखाई जारी रखने में साधनहीनता की समस्या का सामना नहीं रखना पड़ेगा। उम्मीद है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच की तरह और भी संस्था या संगठन इस तरह की पहल से जुड़ेंगे और इसे एक बड़े सामाजिक अभियान की शक्ल देंगे।
