Supreme Court: ‘धर्मांतरण का उद्देश्य केवल आरक्षण का लाभ प्राप्त करना है, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों को कोटा प्रदान करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।’ यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई की। साथ ही महिला को फटकार भी लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने पुडुचेरी की एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें वह नौकरी में अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ देने की मांग कर ही थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर कोई धर्मांतरण सिर्फ आरक्षण का फायदा लेने के लिए कर रहा है तो उसे इसकी आड़ में इसका फायदा उठाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
बार-बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिथल और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि नियमित तौर पर चर्च जाने और ईसाई धर्म की परंपरा का पालन करने वाला खुद को हिंदू बताकर अनुसूचित जाति के तहत मिलने आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता। महिला ने नौकरी में अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ हासिल करने के लिए याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा, ‘धर्मांतरण का उद्देश्य केवल आरक्षण का लाभ प्राप्त करना है, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों को कोटा प्रदान करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा। कोर्ट ने आदेश में कहा कि यदि धर्म परिवर्तन का उद्देश्य मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ प्राप्त करना है, लेकिन दूसरे धर्म में किसी वास्तविक विश्वास के साथ नहीं, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसे गुप्त उद्देश्य वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने से आरक्षण की नीति का हनन होगा। अपीलकर्ता को अनुसूचित जाति का आरक्षण प्रदान करना, जो धर्म से ईसाई है, लेकिन दावा करती है कि वह केवल रोजगार में आरक्षण का लाभ उठाने के उद्देश्य से हिंदू धर्म अपना रही है, आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा और संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जो साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं, वो स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानता है और नियमित रूप से चर्च में जाकर उस आस्था का पालन करता है। इसके बावजूद वह हिंदू होने का दावा करती है और रोजगार के उद्देश्य से अनुसूचित जाति समुदाय का प्रमाण पत्र मांगती है। आरक्षण का फायदा लेने के लिए यह दोहरा व्यवहार ठीक नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक इस महिला का सवाल है, वो ईसाई धर्म की परंपरा का पालन करती है, वो नियमित तौर पर चर्च जाती है। इसके बावजूद वो ख़ुद को हिंदू बताते हुए नौकरी के मकसद से शेड्यूल कास्ट को मिलने वाले आरक्षण का फायदा उठाना चाहती है। इस महिला का दोहरा दावा अस्वीकार्य है। ‘बापटिज्म’ के बाद वो खुद हिंदू होने का दावा नहीं कर सकती, उसे अनुसूचित जाति के आरक्षण का फायदा नहीं दिया जा सकता। जस्टिस पंकज मिथल और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि आरक्षण के मूल उद्देश्य के विरुद्ध और यह संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी।
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जस्टिस पंकज मिथल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। संविधान के आर्टिकल 25 के तहत देश के हर नागरिक को अपनी मर्जी से किसी धर्म को चुनने और उसके परंपराओं का पालन करने की स्वतंत्रता है। कोई अपना धर्म तब बदलता है, जब असल में वो किसी दूसरे धर्म के सिद्धांतों-परंपराओं से प्रभावित हो। हालांकि अगर कोई धर्मांतरण सिर्फ दूसरे धर्म के तहत मिलने वाले आरक्षण का फायदा लेने के लिए हो रहा है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसा करना आरक्षण की नीति के सामाजिक सरोकार को धता बताना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पुडुचेरी की महिला की अर्जी खारिज करते हुए टिप्पणी की।
क्या है पूरा मामला?
मद्रास हाई कोर्ट के जनवरी 2023 के फैसले के खिलाफ सी सेल्वरानी (अपीलकर्ता) ने अपील दायर की थी। सेल्वरानी ने दावा किया कि वह हिंदू धर्म की वल्लुवन जाति से हैं। इसके आधार पर उन्होंने अनुसूचित जाति श्रेणी के अंतर्गत क्लर्क की नौकरी के लिए आरक्षण लाभ का दावा किया था। लेकिन राज्य ने दावे की पुष्टि करने के बाद इसे खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने अंततः नौकरी के लिए चयनित एक साथी उम्मीदवार की नियुक्ति को रद्द करने से इनकार कर दिया। इसके बाद सेल्वरानी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।