मतपत्र से मतदान की प्रक्रिया की वापसी का अनुरोध करने वाली याचिका उच्चतम न्यायालय से खारिज होने के बाद निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने रेखांकित किया कि कम से कम 40 मौकों पर संवैधानिक अदालतों ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज की हैं।

पदाधिकारियों ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार की उस टिप्पणी को भी रेखांकित किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ईवीएम ‘सौ फीसद सुरक्षित हैं’ और राजनीतिक दल भी ‘दिल की गहराई से जानते हैं’ कि मशीन सही है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को वोटर वेरिफिएबल पेपर आडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के साथ ईवीएम का उपयोग करके डाले गए मतों के 100 फीसद सत्यापन का अनुरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।

मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापनीयता बढ़ाने के लिए, वीवीपीएटी मशीनों के उपयोग को शुरू करने के लिए चुनाव संचालन नियम, 1961 में 2013 में संशोधन किया गया था। इनका प्रयोग सबसे पहले नगालैंड की नोकसेन विधानसभा सीट के उपचुनाव में किया गया था। एक ईवीएम के लिए कम से कम एक बैलेट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपैट बनता है।

एक ईवीएम की अस्थायी लागत में 7,900 रुपये प्रति मतपत्र इकाई, 9,800 रुपये प्रति नियंत्रण इकाई और 16,000 रुपये प्रति वीवीपीएटी शामिल थी। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के लिए 16 मार्च को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘करीब 40 बार संवैधानिक अदालतों (उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय) ने ईवीएम को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज की हैं।’

उन्होंने चुनाव आयोग के एक प्रकाशन का हवाला देते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि कितने मौकों पर सत्तारूढ़ दल उन चुनावों में हार गए हैं जहां ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। कुमार ने कहा था, ‘राजनीतिक दल ईवीएम के कारण अस्तित्व में आए हैं। कई छोटे दल हैं, जो मतपत्र के युग में अस्तित्व में नहीं आए होंगे।’ उन्होंने कहा कि ईवीएम निष्पक्ष हैं और राजनीतिक दल इसे ‘अपने दिल की गहराई’ से स्वीकार करते हैं। राजीव कुमार ने ‘ईवीएम को सौ फीसद सुरक्षित और सौ फीसद निश्चित बताया।’