उत्तर प्रदेश में 34 वर्षों से अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए हर जुगत लगा चुकी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के पहले क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों को साथ लेकर किसी बड़े सियासी उलटफेर की आस बांधे है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के उत्तर प्रदेश में दाखिल होने के पहले सपा, बसपा, रालोद समेत छोट-बड़े सभी दलों के मुखिया को यात्रा में शामिल होने का न्योता भेजा था। हालांकि यात्रा में कोई शामिल तो नहीं हुआ लेकिन सभी ने इस यात्रा के लिए राहुल गांधी को शुभकामना भरे संदेश जरूर भेजे जिससे कांग्रस को गठबंधन की आस नजर आने लगी है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लगातार गठबंधन के ऐसे साथी की तलाश में हैं जिसके मार्फत वो 34 वर्षों से पस्त पड़ी पार्टी को नई संजीवनी दे सकें। हालांकि अब तक उन्हें अपनी इस मुहिम में कामयाबी नहीं मिल सकी है। पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। उस वक्त समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के साथ सपा के गठबंधन को लेकर बेहद खफा थे।
बावजूद इसके अखिलेश यादव ने कांग्रेस का दामन थामा। तब ये प्रचार किया गया कि दो लड़कों की ये जोड़ी प्रदेश में विकास की नई रोशनी लेकर आएगी।इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 311 विधानसभा सीटों पर जबकि कांग्रेस ने 114 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 311 सीटों में समाजवादी पार्टी को महज 47 सीटें मिलीं और कांग्रेस को सिर्फ सात सीट मिल सकी।
बसपा ने इस चुनाव में सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 19 सीटों पर जीत हासिल की। इस परिणाम के बाद समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया। उस वक्त अखिलेश यादव ने अपने एक बयान में कहा था कि अब वो कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर कभी विचार नहीं करेंगे। प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दो साल बाद हुए लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा। इस महागठबंधन को 15 सीटें मिलीं।
जिसमें अकेले बसपा ने दस सीटें जीत कर अखिलेश यादव की पेशानी पर बल पैदा कर दिया। चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद मायावती ने अखिलेश के साथ ये कहते हुए गठबंधन तोड़ दिया कि सपा के मतदाताओं ने उनकी पार्टी को वोट नहीं दिए और वो भविष्य में सपा से कभी गठबंधन नहीं करेंगी।
बीते सात बरस की यदि बात करें तो उत्तर प्रदेश में लगभग सभी क्षेत्रीय दल भारतीय जनता पार्टी के समक्ष अपना वजूद बचाने के लिए किसी न किसी दल के साथ गठबंधन कर चुके हैं। सियासी अवसरवाद ने दो धुरविरोधी सपा और बसपा तक को गठबंधन का साथी बनने को विवश किया। हालांकि सपा को इस गठबंधन से कुछ खास हासिल नहीं हुआ। ऐसे में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सभी संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रही है।
कांग्रस के राज्यसभा सांसद इरफान प्रतापगढ़ी ने दो दिन पूर्व गठबंधन की संभावनाओं को तूल दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का नया गठबंधन सभी को चौंकाएगा। भारत जोड़ो यात्रा का जिक्र करते हुए वो बोले, सभी क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा के दरम्यान अपना समर्थन दिया है। इसलिए इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में कांग्रेस के साथ गठबंधन के सहयोगी के तौर पर सपा और बसपा भी साथ हों। उन्होंने इस गठबंधन की बदौलत बीस से अधिक सीटों पर अकेले कांग्रेस की जीत का भरोसा जताया है।
फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुकाबिल होने के लिए पूरा विपक्ष ताकत बटोरने में जुटा है। वो एक साथ मिल कर भाजपा के सामने खुद को ताकतवर दिखाने की हर कोशिश करने पर भी विचार कर रहा है। दिलचस्प होगा कि क्या मायावती और अखिलेश कांग्रेस की सरपरस्ती में लोकसभा चुनाव मैदान में उतरने का साहस बटोर पाएंगे?