अनिषा दत्ता.
संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस से राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल ने सवाल उठाया कि क्या विदेशों में बसे एनआरआई को एयरपोर्ट पर परेशान किया गया और वापस भेज दिया गया। क्या अधिकारियों ने उनसे किसान आंदोलन का समर्थन नहीं करने के लिए कहा। लेकिन कांग्रेस सांसद के इस सवाल को अंतिम रूप से स्वीकार किए जाने के बावजूद जवाब देने के लिए निर्धारित किए गए प्रश्न सूची से हटा दिया गया।
अंतिम रूप से स्वीकृत प्रश्न तारांकित / अतारांकित डायरी संख्या U455 में पूछा गया कि क्या विदेश मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि क्या यह सच है कि भारत के बाहर बसे कई एनआरआई को हवाई अड्डों पर परेशान किया गया और यहां तक कि उन्हें वापस भेज दिया गया। साथ ही उन्होंने पूछा कि यदि इसका जवाब हां है तो पिछले तीन वर्षों के दौरान का पूरा ब्यौरा क्या है। इसके अलावा प्रश्न में उन्होंने यह भी पूछा कि क्या यह सच है कि उनमें से कुछ एनआरआई को अधिकारियों द्वारा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में मदद नहीं करने के लिए कहा गया था। यदि इसका जवाब भी हां है तो इसका भी ब्यौरा दें।
इन सवालों का जवाब विदेश मंत्रालय को सोमवार को देना था। जिस दिन कृषि कानून वापसी विधेयक, 2021 पेश किया गया और दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया।
सरकार के सूत्रों ने बताया कि के सी वेणुगोपाल द्वारा पूछे गए प्रश्न सहित अंतिम रूप से स्वीकृत किए गए सभी प्रश्नों पर इनपुट लेने के लिए विदेश मंत्रालय में संबंधित डिवीजनों को 23 नवंबर को मेल भी भेजा गया था। हालांकि बाद में वेणुगोपाल के सवालों को अंतिम रूप से स्वीकृत प्रश्नों की अस्थायी सूची में जगह नहीं दी गई। मंत्रालय ने अंतिम रूप से स्वीकृत प्रश्नों को 26 नवंबर को मंजूरी दी थी।
सवाल को सूची से बाहर निकाले जाने पर कांग्रेस सांसद वेणुगोपाल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पहले हर एक प्रश्न छोड़ने का स्पष्ट कारण बताया जाता था लेकिन इस बार उन्होंने केवल मौखिक रूप से बताया है। साथ ही उन्होंने कहा कि जलियांवाला बाग के जीर्णोद्धार को लेकर उठाये गए मेरे एक और सवाल को सूची से बाहर कर दिया गया। यह बताते हुए कि किसी भी सदस्य को प्रश्न पूछने और सरकार से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है, उन्होंने कहा कि क्या यह राष्ट्र विरोधी नहीं है। बिना किसी प्रश्न और किसी बहस के संसद चलाने का यह रवैया काफी तानाशाही है। यह संसद सदस्य की स्वतंत्रता के खिलाफ है जिन्हें सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार है।
