बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) चुनाव में कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से क्या कोई बड़ा असर पड़ेगा? कांग्रेस के इस फैसले ने 15 जनवरी को होने वाले बीएमसी चुनाव को बहुकोणीय मुकाबले में बदल दिया है।
कांग्रेस ने महा विकास आघाडी (एमवीए) से बाहर रहने का कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के बीच गठबंधन को बताया गया है।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने से महाराष्ट्र में विपक्षी एकता कमजोर होगी?
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राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, स्थानीय मुद्दों और वैचारिक स्पष्टता पर ध्यान केंद्रित करते हुए कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ने का कदम राजनीतिक कमजोरी को दिखाता है। उनका कहना है कि यह एक साहसिक कदम है लेकिन ऐसे राजनीतिक हालात में यह जोखिम भरा है, जहां आपके सामने राजनीतिक दलों का मजबूत गठबंधन है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मुंबई में कांग्रेस इस परिदृश्य में कैसे आगे बढ़ती है, इसका महाराष्ट्र और उससे बाहर के उसके राजनीतिक भविष्य पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस मुंबई में निकाय स्तर की राजनीति में एक प्रमुख शक्ति रही है लेकिन पिछले तीन दशकों में उसकी सीटों की संख्या लगातार गिर रही है।
कांग्रेस को मिली थीं सिर्फ 31 सीटें
2017 में हुए बीएमसी चुनाव में तत्कालीन अविभाजित शिवसेना (84) और भाजपा (82) के बीच कड़ी टक्कर थी जबकि कांग्रेस को सिर्फ 31 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि वे भाषाई पहचान और प्रवासी मुद्दों पर एमएनएस के रुख के कारण उसके साथ गठबंधन नहीं कर सकते। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने कहा, “हम ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकते जो विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देता हो।”
अल्पसंख्यक, दलित और प्रवासी मतदाताओं पर फोकस
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की रणनीति अल्पसंख्यक, दलित और प्रवासी मतदाताओं को एकजुट करने पर केंद्रित है। ये ऐसे मतदाता वर्ग हैं, जो महा विकास आघाडी के साथ एमएनएस के संबंधों को लेकर असहज महसूस कर सकते हैं।
बीएमसी की सत्ता को हासिल करना न सिर्फ मुंबई बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी इसे बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
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