मनोज कुमार मिश्र
जांच अब आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक पहुंच गई है। सीबीआई ने 15 अपैल को उनसे कई घंटे पूछताछ की। आम धारणा से उलट जांच के सारे तार केजरीवाल से जोड़ने का प्रयास हो रहा है, जबकि शुरू से ही उन्होने कोई विभाग अपने पास नहीं रखा। मुख्यमंत्री के नाते को फैसला उनकी अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में हुए होंगे।
कहा जा रहा है कि इस घोटाले से जुड़े लोगों ने बातचीत में बताया कि हर फैसला मुख्यमंत्री के सामने लिया गया। केजरीवाल और आप के नेता इसे केंद्र सरकार की साजिश बता रहे हैं। आरोप है कि प्रधानमंत्री के डिग्री पर सवाल उठाने से लेकर अडानी मामले में आक्रामक रुख अपनाने के कारण केजरीवाल को केंद्र सरकार निशाने पर ले रही है।
हर मामले की तरह डिग्री विवाद से लेकर हर मामले में सरकार के खिलाफ उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना मैदान में आ गए। जो मुद्दे उपराज्यपाल ने उठाए हैं उनकी सत्यता पर कोई सवाल उठ ही नहीं सकता है। हालात तो ऐसे बनते जा रहे हैं कि भले ही अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हों या न हों लेकिन विधानसभा का वजूद ही खतरे में पड़ता दिखने लगा हैं। पिछले साल नगर निगम संशोधन विधेयक पेश करते समय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते दिल्ली सरकार के बजूद पर ही सवाल किया था।
दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति के कारण हुए आर्थिक घोटाले की उपराज्यपाल द्वारा 22 जुलाई 2022 को सीबीआई जांच के आदेश मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट के आधार पर की गई, जिसमें कोरोना काल में शराब के निजी विक्रेताओं को 144.36 करोड़ रुपए का लाभ पहुंचाने के आरÞोप लगे। रिपोर्ट में कहा गया कि नई आबकारी (शराब) नीति की उपराज्यपाल से मंजूरी नहीं ली गई। 2021 की शराब नीति में शराब की दुकानों की संख्या बढ़ाई गई। मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट में कमीशन बढ़ाने के अलावा कई अनियमितताओं का ब्योरा दिया गया है।
शराब घोटाले के तार देश भर से जुड़े बताए गए। अब उसमें मुख्यमंत्री से भी पूछताछ हुई है। सिसोदिया पर स्कूलों के कमरों को बनवाने में भ्रष्टाचार करने के आरोप का भी मामला है। इसके अलावा दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) बसों में खरीद में भी गड़बड़ी की भी जांच शुरू हो चुकी है। दिल्ली सरकार के मंत्री और मनीष सिसोदिया जैसे कई विभाग संभालने वाले सत्येन्द्र जैन धनशोधन मामले में मई,2022 से जेल में हैं।
भाजपा के आरोप में काफी सत्यता है कि इसमें मुख्यमंत्री केजरीवाल पर ज्यादा चालाकी करके कोई भी विभाग अपने पास न रखकर भ्रष्टाचार में अपने साथियों की बलि ले रहे थे। अब वे भी फंसते नजर आ रहे हैं। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना इस बात पर एतराज किया है कि बिना मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के उनके फाइल भेजी जा रही हैं। फाइल पर लिखा आता है कि मुख्यमंत्री ने फाइल का अवलोकन कर लिया। यह गलत परंपरा है। उसी तरह बिना सत्रावसान कराए मनमाने तरीके से विधान सभा की बैठक बुलाने पर भी उपराज्यपाल ने सवाल उठाए।
नगर निगम को मजबूती देने के बाद तो हालात महानगर परिषद वाले बनने लगे हैं। पिछले साल संविधान संशोधन करके उपराज्यपाल को ज्यादा ताकत देने और आरक्षित विषयों(भूमि, कानून-व्यवस्था और राजनिवास के मामले) को पूरी तरह से दिल्ली सरकार और विधान सभा से अलग करने के बाद तो दिल्ली सरकार की हैसियत 1966 में बनी दिल्ली महानगर परिषद जैसी ही बन गई है। भाजपा और आप के बीच टकराव अंतहीन होने के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में विधानसभा की उपयोगिता कम होने के बहाने उसे खत्म करने की ही चर्चा चल पड़ी है।