प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जनसंख्या विस्फोट के मुद्दे को उठाया। उन्होंने छोटा परिवार रखने वाले लोगों की तारीफ करते हुए कहा कि यह भी देशभक्ति है। इसके बाद से जनसंख्या का सवाल अचानक सुर्खियों में आ गया है। देश के 17 प्रदेशों में 18 जगह जनसंख्या शोध केंद्र काम कर रहे हैं। छह जनसंख्या शोध केंद्र तो देश के छह विश्वविद्यालयों में ही चल रहे हैं। अब इन शोध केंद्रों में अचानक हलचल बढ़ जाना तय है। जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियों पर बहस तेज होनी संभावित है। इससे पहले देखना जरूरी होगा कि भारत सरकार के हालिया आंकड़ों में जनसंख्या को कितना बड़ा विस्फोट माना गया है, क्या कहते हैं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे, आर्थिक सर्वे, जनगणना और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के आंकड़ें।
संसाधनों की चिंता
अगली जनगणना वर्ष 2021 में होनी है। हालांकि, दुनियाभर में तमाम जनसंख्या घड़ियां चल रही हैं, जो हर सेकेंड की आबादी बता रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं इस मामले में हर देश पर लगातार नजर रखती हैं। इन सबके आंकड़ों के मुताबिक, अपने देश की आबादी 133 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है। क्या इतनी आबादी के लिए हमारे पास संसाधन हैं। संसाधनों की एक सीमा है। 32 करोड़ हेक्टेयर जमीन और प्रकृति से बारिश में मिलने वाला 4000 अरब घनमीटर पानी उतने ही हैं, लेकिन आबादी आजादी के समय 36 करोड़ से बढ़कर 133 करोड़ को पार कर रही है। एक उदाहरण से तसवीर और साफ होगी। आजादी के समय प्रति व्यक्ति 5000 घनमीटर पानी उपलब्ध था। लेकिन पौने चार गुनी आबादी बढ़ने से आज पानी की उपलब्धता लगभग एक चौथाई यानी लगभग 1300 घनमीटर प्रति व्यक्ति रह गई है।
ठंडे बस्ते से निकली आयोग की रिपोर्ट
जनसंख्या विस्फोट पर काबू पाने के लिए वेंकटचलैया आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की जा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने दो साल में अपनी रिपोर्ट दी थी। इसी आयोग के सुझाव पर मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और भोजन का अधिकार जैसे महत्त्वपूर्ण कानून बनाए गए, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में चर्चा नहीं हुई। आयोग ने संविधान में अनुच्छेद 47ए जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। इस आयोग में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया (अध्यक्ष), जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया (सदस्य) थे। पूर्व अटॉर्नी जनरल केशव परासरन एवं सोली सोराब, लोकसभा के महासचिव सुभाष कश्यप, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा, सुमित्रा महाजन, पत्रकार सीआर ईरानी और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ नौकरशाह आबिद हुसैन भी इस आयोग के सदस्य थे। वेंकटचलैया आयोग ने 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी थी। आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए दायर जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट गृह मंत्रालय से जवाब मांग चुका है।
राहत पहुंचाते प्रजनन दर के आंकड़े
दुनिया में प्रजनन दर 2.1 को ‘रिप्लेसमेंट रेट’ माना जा रहा है। इसका मतलब यह है कि जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए औसतन एक महिला के औसतन 2.1 बच्चे होंगे। वहीं, भारत में प्रजनन दर लगातार घट रही है और इस समय यह 2.2 है। आगे के दशकों में इसके दो से भी कम होने की संभावना है। धार्मिक आधार पर अगर हम आंकड़ों को देखें तो सभी धर्मों में प्रजनन दर में गिरावट देखी जा रही है। 2005-06 और 2015-16 के बीच हिंदुओं में प्रजनन दर 17.8 फीसद की दर से घटी। मुसलमानों में 22.9 फीसद की दर, ईसाइयों में 15 फीसद, सिखों में 19 फीसद, बौद्धों में 22.7 फीसद और जैन में 22.1 फीसद की दर से गिरावट देखी गई है।
2060 में सर्वोच्च स्तर पर आबादी
अगले कुछ वर्षों में भारत की आबादी चीन से आगे निकल सकती है। 2060 में 1.65 अरब के साथ भारत की आबादी सर्वोच्च स्तर पर होगी। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार इसके बाद घटने लगेगी। वहीं, अफ्रीका में इस पूरी सदी में आबादी की रफ्तार बढ़ती रहेगी और वह 2060 के दशक में तीन अरब के आंकड़े को पार कर जाएगी। हाल के आर्थिक सर्वे में अनुमान लगाया गया है कि जनसंख्या वृद्धि दो दशकों में लगातार घटेगी। 2021-31 के दौरान एक फीसद, जबकि 2031-41 के दौरान इसके 0.5 फीसद सालाना तक घटने की संभावना है। ज्यादातर राज्यों से अनुमान है कि 2021 तक प्रजनन दर रिप्लेसमेंट रेट से कम होगी और आबादी जीवन प्रत्याशा के बढ़ने के कारण बढ़ेगी।