सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुर्घटना के मामले में कहा कि मुआवजे की राशि एकमुश्त नहीं हो सकती, बल्कि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी और पीड़ित व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की डबल बेंच ने कहा कि यह दुर्घटना के बाद दावेदार की स्थिति सहित उससे जुड़े कारकों पर निर्भर करेगा।
कोर्ट ने कहा कि दावेदार के दर्द, पीड़ा और आघात की भरपाई पैसे के रूप में नहीं की जा सकती। नुकसान की मद में दी जाने वाली मुआवजा राशि का जैकेट फॉर्मूला नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में दावेदार और उसके परिवार के सदस्यों को हुई सुख-सुविधाओं का नुकसान भी अहम कारक है। इस तरह के केस में देखा जाना चाहिए कि दुर्घटना के बाद दावेदार की स्थिति क्या है। क्या वो पहले की तरह से जी पा रहा है।
बेंच ने कहा कि दावेदार ने जीवन में किस हद तक अपनी खुशी को खो दिया, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। इसमें मुआवजे की राशि बढ़ाने का आग्रह किया गया था।
अदालत ने कहा कि इस तरह के केस में मुआवजा निर्धारण के लिए एक फार्मूला अपनाने की बजाए पीड़ित और उसके परिवार की स्थिति को पहले देखा जाए। उसके आधार पर ही मुआवजे की राशि को तय किया जाए। कोर्ट का कहना था कि हादसे के हर मामले में शिकार बने शख्स की स्थिति एक सी नहीं हो सकती। ऐसे में हादसे के हर केस में मुआवजे की राशि स्थिति के आधार पर बदल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट बेंसन जार्ज बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस केस की सुनवाई कर रहा था। मामले के मुताबिक 2013 में ये हादसा हुआ। उस समय पीड़ित की उम्र महज 29 साल की थी। हादसे के बाद उसके ब्रेन की सर्जरी हुई और काफी समय तक उसे कोमा में रहना पड़ा। जार्ज ने अपनी मां के जरिए क्लेम दाखिल किया। MACT ने उसे 94,37,300 का मुआवजा दिया।
दोनों पार्टियों ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया तो वहां से मुआवजा बढ़ाकर 1,24,94,333 रुपये कर दिया गया। पीड़ित ने इसे नाकाफी बताकर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। कोर्ट ने सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद माना कि पीड़ित सारी उम्र हादसे का दर्द झेलेगा। सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने पीड़ित का मुआवजा बढ़ाकर 1,41,94,333 रुपये कर दिया।