तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की भावना जो भी हो, लेकिन सिंधु-लिपि की भाषा-संरचना ज्ञात करने की दृष्टि से अध्ययन-प्रोत्साहन की प्रशंसा करनी होगी। उन्होंने घोषणा की है कि सिंधु-लिपि की गूढ़ रचना को पढ़ने और समझने वाले को 87 करोड़ रुपए की राशि पुरस्कार में दी जाएगी। हालांकि इस अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने का उनका कोई पुरातत्त्वीय समाधान खोजना न होकर द्रविड़ वैचारिक संस्कृति को उत्तर भारतीय फलक पर प्राचीनता के रूप में स्थापित करना भी हो सकता है।

इस रणनीति के मनोनुकूल परिणाम निकलते हैं, तो वे तमिल राजनीति में लंबे समय तक बने रहने का मार्ग प्रशस्त करने में सफल हो सकते हैं। वैसे भी तमिलनाडु आजादी के बाद से भाषाई विवाद का केंद्र रहा है। द्रमुक अब चाहता है कि वर्तमान में पाकिस्तान स्थित सिंधु घाटी की लिपि का संबंध तमिल से स्थापित हो जाए, तो यह धारणा स्थापित हो जाएगी कि संस्कृत नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन भाषा तथा लिपि तमिल है और उत्तर भारतीय आर्य ही दक्षिण भारत के द्रविड़ हैं।

देवनागरी का आदि स्रोत ब्राह्मी लिपि

दुनिया का भाषाई संसार जितना अद्वितीय और व्यापक है, लिपियों का संसार भी उतना ही रहस्यमय है। किसी भी भाषा के लिखने के प्रकार या विधि को लिपि कहते हैं। लिपियों का इतिहास भी मानव सभ्यता के विकास के साथ आगे बढ़ा है। विकसित होती सभ्यता और लिपियों के विविध आरंभिक रूप शैलचित्रों और पुरातत्त्वीय उत्खनन में मिलते रहे हैं। आदिम युग से लेकर अब तक विश्व के मानचित्र पर अनेक भाषाएं, बोलियां अस्तित्व में आकर विलोपित होती रही हैं।

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भारत में उद्भव और विलोपन की यह क्रिया कहीं अधिक रही है। इस तथ्य की सिद्धि इस कहावत से होती है, ‘कोस कोस पर बदले पानी, बदले चार कोस पर वाणी’। इसी क्रम में कहा जाता है कि भाषा को लिपिबद्ध करने के सबसे पहले प्रयास के रूप में दुनिया का पहला लिखित और सबसे प्राचीन ग्रंथ ‘ऋग्वेद’ भारत का है। इसकी भाषा संस्कृत और लिपि देवनागरी है। हालांकि देवनागरी का आदि स्रोत ब्राह्मी लिपि मानी जाती है। यह भारत की अत्यंत प्राचीन लिपि है।

ईसा से 2500 से 3500 वर्ष प्राचीन मानी जाती है सिंधु लिपि

कुछ समय पहले स्टालिन ने जान मार्शल की मूर्ति का भी अनावरण किया। मार्शल ने ही 1921 में सिंधु घाटी की सभ्यता के पहले उत्खनन की अगुआई की थी। मार्शल ने अवधारणा दी थी कि सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक आर्य सभ्यता या सारस्वत सभ्यता से भी पहले की है। सिंधु लिपि ईसा से 2500 से 3500 वर्ष प्राचीन मानी जाती है। यह लिपि और हड़प्पा सभ्यता को परस्पर एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है। इस परिक्षेत्र का विस्तार मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल और तमिलनाडु तक है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान भी इसी में शामिल हैं। हालांकि अब इसका समय 7000 ईसा पूर्व माना जाने लगा है।

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इस प्राचीन नगरीय सभ्यता के उत्खनन में मिली मुहरों, शिलालेखों और मिट्टी के बर्तनों पर अनेक चित्रात्मक आकृतियां उत्कीर्ण हैं। विचित्र लिखावट के इसी समूह को सिंधु घाटी की लिपि या सिंधु-लिपि कहा जाता है। इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। स्टालिन को यह भ्रम है कि यदि सिंधु-लिपि पढ़ ली जाती है तो संभव है, इसकी प्राचीनता संस्कृत से पूर्व की भाषा के रूप में सिद्ध हो जाए। अब तक ऋग्वेद को छोड़ दें, तो हड़प्पाकालीन कोई धर्म या समाजशास्त्रीय ग्रंथ भी नहीं मिला है, जिससे सिंधु-लिपि को किसी भाषा की लिपि मान लिया जाए।

सिंधु घाटी के लोगों की भाषा द्रविड़ पूर्व की भाषा होने का दावा

जान मार्शल ने यह भी कहा है कि इस सभ्यता के चिह्न द्रविड़ सभ्यता के चिह्न मालूम होते हैं। इसलिए सिंधु घाटी में बोली जाने वाली भाषा द्रविड़ हो सकती है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिले अभिलेखों में अंकित चित्रलिपियों के आधार पर गोंडी भाषा के विशेषज्ञ तिरु मोतीरावण का दावा है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लिपियों की समानता गोंडी भाषा से है, इसलिए सिंधु घाटी के लोगों की भाषा द्रविड़ पूर्व की भाषा थी। गोंड समुदाय के लोग आज भी पृथ्वी को माता के रूप में पूजते समय ‘कुयव’ से संबंधित मंत्र का जाप करते हैं। इसलिए इन परंपराओं से लिपि के सूत्र खोजे जा सकते हैं। इतिहासकार बीवी सुब्बारायप्पा का मानना है कि ‘सिंधु भाषा नहीं, वरन एक प्रकार की संख्यात्मक लिपि है, जैसा कि सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों और अभिलेखों पर अंकित कलाकृतियों में उत्कीर्ण संख्याओं, प्रतीकों और संकेतों से स्पष्ट होता है।

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‘संस्कृति के चार अध्याय’ में रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं कि ‘द्रविड़ शब्द भारत में प्रजाति वाचक नहीं, स्थान वाचक रहा है। यदि प्रजाति की यूरोपीय परिभाषा की दृष्टि से देखा जाए, तो गुजरात और महाराष्ट्र में प्रधानता आर्य वंश की होनी चाहिए। किंतु प्राचीन भारतवासी यह नहीं मानते थे। द्रविड़ स्थान का विशेषण था और ‘पंचद्रविड़’ में पुराणकार द्रविड़, आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात इन पांचों को गिना करते थे। भाषाओं को लेकर भी आर्यों और द्रविड़ों के बीच कोई मतभेद नहीं था। द्रविड़ ऋषि यज्ञ के पुरोहित होते थे। उन्होंने शास्त्रों की भी रचनाएं की हैं।

द्रविड़ शब्द संस्कृत का शब्द

इसी प्रकार तमिल के संगम साहित्य की रचना में कई ब्राह्मण ग्रंथकारों का योगदान था। वैसे भी द्रविड़ शब्द संस्कृत का शब्द है। मनु ने द्रविड़ शब्द का उपयोग उन लोगों के लिए किया है, जो द्रविड़ देश में बसते थे। कुमारिल भट्ट ने उसका प्रयोग भाषा की सूचना देने के लिए किया है, ‘यथा-आंध्र-द्रविड़-भाषा। हमारे पूर्वजों ने द्रविड़ शब्द का अर्थ प्रजाति नहीं रखा था। हमारे लिए भी यही उचित है कि हम यूरोप से आए हुए प्रजातिवाद का अर्थ अपने शब्दों में न ठूंसें।’

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सिंधु लिपि को पढ़ने में अनेक समस्याएं हैं। दुनिया की ज्यादातर लिपियों में अक्षर कम होते हैं। देवनागरी में 52 अक्षर हैं, तो अंग्रेजी में मात्र 26 हैं। जबकि सिंधु लिपि में करीब 400 अक्षर, चिह्न या संकेत हैं। इसके निशान भी विचित्र रूपों में हैं। ये देखने में मोहक चित्रों की तरह सजीले तथा रूपवान होने के साथ इनमें परिवर्तित होते उतार-चढ़ाव बहुत हैं। इन छवियों में बैलों के चिह्न बहुतायत में हैं। अब विचारणीय बिंदु है कि जब लोग अपने-अपने स्तर पर इस लिपि को पढ़ने के प्रयास में लगे थे, तब इन्हें प्रोत्साहित क्यों नहीं किया गया? दरअसल, सिंधु लिपि को पढ़ने के कभी सार्थक प्रयास किए ही नहीं गए। जबकि सिंधु घाटी से जुड़ी लिपियों के लगभग तीन हजार अभिलेख उपलब्ध हैं।

असल में इस लिपि में संस्कृत के शब्दों के साथ ऋग्वैदिक चिह्न भी अंकित हैं। संस्कृत के शब्दों में श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, कामधेनु, पग, पंच, पितृ, अग्नि, सिंधु, पुरम, ग्रह, यज्ञ, इंद्र और मित्र आदि शामिल हैं। ये अगस्त्य ऋषि ही हैं, जो नारद के कहने पर दक्षिण भारत गए और फिर कभी उत्तर की ओर लौटे ही नहीं। उन्होंने तमिल भाषा का व्याकरण लिखा था। दरअसल, इस लिपि को पढ़ने से इसलिए टाला जाता रहा कि कहीं उसकी प्राचीनता और अधिक प्रमाणित न हो जाए। ऐसा होता है तो ऋग्वेद कालीन वैदिक सभ्यता तथ्यात्मक रूप में अन्य सभ्यताओं से प्राचीन सभ्यता सिद्ध हो जाएगी। आर्यों का हमलावर के रूप में बाहर से आने का अंग्रेजों द्वारा गढ़े गए प्रपंच पर तो पानी फिरेगा ही, उत्तर भारतीय आर्य और द्रविड़ युद्ध की धारणा भी ध्वस्त हो जाएगी।