भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थानए पंजाब, दिल्ली समेत देश के उत्तरी राज्य खासे प्रभावित हुए हैं। हिमाचल के कई जिलों में तो एक दिन में ही एक महीने के बराबर बारिश हुई है। तेज बारिश के कारण कई जगह भूस्खलन भी हो रहा है। गंगा, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज समेत कई नदियां उफान पर हैं।
दूसरी ओर, अमेरिका में न्यूयार्क की हडसन वैली में भी तेज बारिश के कारण बाढ़ आ गई। पेंसिल्वेनिया और दक्षिणी न्यूयार्क राज्य भी अधिक प्रभावित हुए। मौसम विभाग ने संवेदनशील क्षेत्रों के लोगों को तुरंत सुरक्षित और ऊंची जगहों पर जाने का अनुरोध किया। कुछ दिनों पहले स्पेन के उत्तर-पूर्वी शहर सरागोसा में अचानक बाढ़ आ गई थी। सड़कें जलमग्न हो गई थीं और कारें खिलौनों की तरह बह रही थीं। उत्तरी ब्रिटेन के शेफील्ड शहर में भीषण गर्मी के तूफान के कारण अचानक बाढ़ आ गई।
बढ़ते जलवायु संकट की वजह से जर्मनी से लेकर पाकिस्तान तक, कई देश भयंकर बाढ़ का सामना कर रहे हैं। ऐसे में बचाव के उपाय को लेकर वैज्ञानिक चिंतित हैं। जर्मनी के जीगन यूनिवर्सिटी में टिकाऊ भवन और डिजाइन पर काम करने वाली सिविल इंजीनियरिंग प्रोफेसर लामिया मेसारी-बेकर के मुताबिक इमारतों का निर्माण इस तरह करना चाहिए कि वह बाढ़ के पानी का सामना कर सके। भूकंप-रोधी डिजाइन की तरह यह भी अहम है।
इमारतों को बाढ़ से निपटने लायक बनाने के लिए नींव की गहराई, संरचनात्मक डिजाइन और निर्माण सामग्री को विशेष रूप से चुना जाता है। मजबूत बेसमेंट बनाने की सलाह दी जा रही है, ताकि उसमें पानी भर सके और लोगों को जल्दी से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने का मौका मिल सके।जानकारों की राय में सिर्फ इमारतों पर ध्यान केंद्रित करने से समस्या हल नहीं होगी।
शहरों और इसके आसपास के इलाकों में जलाशयों के साथ-साथ बांधों को मजबूत बनाकर पानी को नियंत्रित करने के बारे में भी सोचने की जरूरत है, ताकि बाढ़ का पानी घरों के बेसमेंट में पहुंचने से रोका जा सके। ये बांध और जलाशय अचानक होने वाली बारिश के पानी को जमा करने में मददगार साबित होते हैं।
जर्मन शहर बान के दक्षिण में स्थित आहर घाटी 2021 की बाढ़ में पूरी तरह तबाह हो गया था। संकरी घाटियों की छोटी नदियों में पानी को फैलने के लिए ज्यादा जगह नहीं होने से कुछ ही घंटों की मूसलाधार बारिश से भारी बाढ़ आ गई। जानकारों के मुताबिक, ऐसी जगहों पर शहरों को पानी के बढ़ते स्तर से बचाने के लिए, नहरों और बांधों को ऊंचा करने के साथ-साथ उनके क्षेत्रफल को भी बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि, ऐसा करना खर्चीला है।
जर्मनी के यूनिवर्सिटी आफ डार्मश्टाट में हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बोरिस लीमैन के मुताबिक, बुनियादी ढांचों की सुरक्षा करने के लिए हमारे जल प्रबंधन और हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग प्रणाली के मौजूदा डिजाइन पर्याप्त नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि इन हालात में सबसे बेहतर तरीका है कि प्रकृति को नियंत्रित करने की जगह उसके मुताबिक काम करने के तरीके खोजे जाएं।
जहां तक संभव हो, नदियों को प्राकृतिक स्वरूप में बहने दिया जाए। उनकी दिशा बदलने या उनके बहाव को सीधा नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बाढ़ की स्थिति के दौरान पानी जमा हो जाता है और उसकी मात्रा बढ़ जाती है। नदियों को सीमित करने की जगह बाढ़ के मैदानों के लिए जगह बनाना चाहिए। इससे नदियों में पानी ज्यादा होने पर ये बाढ़ के मैदान जलाशय के तौर पर काम करते हैं।
वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में कई विनाशकारी बाढ़ की घटनाओं के बाद पूर्वी जर्मनी में एल्बे नदी के किनारे बाढ़ के मैदानों का विस्तार किया गया।दूसरा उपाय यह है कि शहरों को इस तरह बसाया जाए कि पानी ज्यादा से ज्यादा जगहों पर फैल सके और वह एक जगह इकट्ठा न हो। जर्मन शहर लाइषलिंगेन में एक नए माडल को प्रयोग के तौर पर आजमाया जा रहा है जिसे स्पंज सिटी के नाम से जाना जाता है।
विचार यह है कि छतों, चौराहों और सड़कों से बारिश के पानी को सड़क के किनारे घास से ढंकी नालियों में डाला जाए। फिर अतिरिक्त पानी को प्राकृतिक रूप से बहने दिया जाए और स्थानीय भूजल में जोड़ा जाए। इससे जल प्रबंधन के बुनियादी ढांचे पर भार कम होगा। साथ ही, अतिरिक्त पानी को इकट्ठा करने के लिए बड़े-बड़े टंकी भी बनाए जाएंगे और यहां जमा पानी का इस्तेमाल शहर में मौजूद घास के मैदानों की सिंचाई के लिए किया जाएगा।