नीतीश कटारा हत्याकांड मामले में दोषी विकास यादव ने बिना किसी छूट के 25 साल की जेल की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने विकास यादव के वकील से कहा कि थोड़ा और पढ़ लो और तीन महीने बाद आना। सीजेआई ने वकील से कहा कि इस फैसले में तीसरे श्रेणी की सजा दी गई है।
दरअसल, वर्ष 2002 में नीतीश कटारा हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। पहले नीतीश कटारा का अपहरण किया गया था और फिर उसकी हत्या कर दी गई थी। इस मामले में आरोपी विकास यादव और उसके चचेरे भाई विशाल यादव को बिना किसी छूट 25-25 साल की सजा सुनाई गई थी। वहीं, तीसरे अभियुक्त सुखदेव पहलवान को 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। शीर्ष अदालत ने 17 अगस्त 2015 को विकास, विशाल और सुखदेव पहलवान को दोषी करार देने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि इस देश में अपराधी ही न्याय के लिए गुहार लगा रहे हैं। इससे पहले उच्च न्यायालय ने कहा था कि विकास की बहन से प्रेम करने वाले नीतीश कटारा की हत्या ‘झूठी शान’ के लिए की गई थी। वारदात को बेहद ही सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था।
ये है हत्याकांड की पूरी कहानी: एक आईएएस अधिकारी के बेटे नीतीश कटारा अपनी क्लास में पढ़ने वाली लड़की भारती यादव से प्यार करते थे। भारती यूपी के एक बाहुबली नेता की बेटी थी। नीतीश और भारती दोनों एक दूसरे के साथ रहना चाहते थे, लेकिन लड़की के घरवालों को यह फैसला मंजूर नहीं था। 16-17 फरवरी की रात गाजियाबाद में एक शादी समारोह के दौरान भारती यादव के भाई विकास ने दोनों को एक साथ देख लिया और फिर उसे अगवा कर लिया गया। नीतीश की हत्या की दी गई। 20 फरवरी को जली हुई अवस्था में नीतीश की लाश बरामद हुई। 11 मार्च 2002 को पुलिस ने करनाल से अपहरण के दौरान इस्तेमाल की गई गाड़ी को बरामद किया था।
31 मार्च 2002 को युपी पुलिस ने गाजियाबाद की कोर्ट मे चार्जशीट दायर की। हत्याकांड के आरोपी विकास और विशाल को पुलिस ने 23 अप्रैल 2002 को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केस को गाजियाबाद से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। 30 मई 2008 को दोनों आरोपियों को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 5 सितंबर 2008 को दोषियों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने दोषियों को हत्या के अपराध के लिए 25 साल और सबूत नष्ट करने के आरोप में 5 साल की सजा सुनाई और कहा कि यह लगातार चलता रहेगा। हालांकि, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेगी।