देश में कई कानूनों पर विवाद के बीच चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने एक बड़ी बात कह दी है। सीजेआई रमना ने कहा है कि कानून बनाने से पहले नेता उससे होने वाले हानि और लाभ का आकलन नहीं करते हैं, जिससे विवाद पैदा हो जाता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि विधायिका अध्ययन नहीं करती है या उन कानूनों के प्रभाव का आकलन नहीं करती है, जो कभी-कभी “बड़े मुद्दों” में बदल जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है। न्यायाधीशों और वकीलों को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा- “हमें यह याद रखना चाहिए कि जो भी आलोचना या बाधा आती है, उससे न्याय करने का हमारा मिशन रुक नहीं सकता है। हमें न्यायपालिका को मजबूत करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन करते हुए आगे बढ़ना है।”

सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह के समापन सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कही। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे। सीजेआई ने आगे कहा कि न्यायपालिका में मामलों के लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी है। उम्मीद है कि सरकार इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्राप्त सुझावों पर विचार करेगी और मौजूदा मुद्दों का समाधान करेंगे।

सीजेआई ने इसके बाद नए कानूनों के पास करने को लेकर कहा कि एक और मुद्दा यह है कि विधायिका अध्ययन नहीं करती है, या कानूनों के प्रभाव का आकलन नहीं करती है जो वह पारित करती है। यह कभी-कभी बड़े मुद्दों में बदल जाता है। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 की शुरूआत इसका एक उदाहरण है। अब, पहले से ही बोझ तले दबे मजिस्ट्रेट पर और बोझ पड़ता है। इसी तरह, मौजूदा अदालतों को एक विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना वाणिज्यिक अदालतों के रूप में फिर से ब्रांडिंग करने से लंबित मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा”।

चीफ जस्टिस ने कहा कि देश में कई लोग मानते हैं कि यह अदालतें हैं, जो कानून बनाती हैं और इस धारणा से संबंधित गलतफहमी का एक और सेट है कि अदालतें स्थगन के लिए जिम्मेदार हैं। सीजीआई ने केंद्रीय कानून मंत्री की उस घोषणा की सराहना भी की, जिसमें सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है।