सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को उस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्र शासित प्रदेश के न्यायिक संस्थानों और अदालतों में होने वाली नियुक्तियों में पूर्व न्यायाधीशों एवं कर्मचारियों के रिश्तेदारों को तरजीह दी गई।

हालांकि सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुरू में याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन ‘जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स फोरम’ के वकील को सलाह दी कि उन्हें अपनी याचिका हाईकोर्ट में दायर करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के सामने इस तरह की रिट दायर करने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने जब कहा कि नियुक्तियों में हाईकोर्ट के जजों से लेकर जिला अदालतों के जज भी शामिल हैं तो सीजेआई को लगा कि मामला गंभीर है और सुप्रीम कोर्ट में ही इसकी सुनवाई की जानी चाहिए।

साथी जजों से मशविरा करने के बाद सीजेआई ने बदला फैसला

सीजेआई चंद्रचूड़ ने फिर जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला के साथ विचार करने के बाद याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में ही सुनवाई करने का फैसला किया। बेंच ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के वकील से चार सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा।

जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील ने दरखास्त की कि जवाब दाखिल करने का समय कुछ और बढ़ाया जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जवाबी हलफनामा दाखिल करने का समय चार सप्ताह और बढ़ाया जाता है। सीजेआई की बेंच ने कहा कि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अपने चीफ जस्टिस से निर्देश लेने के बाद जवाबी हलफनामा दायर करेंगे।

बेंच ने याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभी अभी एन कोटिश्वर सिंह हैं। उन्होंने इसी साल 15 फरवरी को इस पद की शपथ ली थी।

याचिका में हाईकोर्ट के जजों पर भी लगाया गया है आरोप

‘जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स फोरम’ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि जम्मू कश्मीर के न्यायिक संस्थानों और अदालतों में जजों व पूर्व जजों और कोर्ट कर्मियों के रिश्तेदारों को ही नियुक्ति दी जा रही है। याचिका में कुछ जजों के नाम भी बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि आम जनता कोर्ट में नियुक्ति के लिए आवेदन करती है लेकिन उन्हें दरकिनार कर जजों व पूर्व जजों के रिश्तेदारों को तरजीह दी जा रही है।

याचिका में कहा गया है कि आरक्षण के प्रावधानों को भी नजरंदाज कर नियुक्तियां की जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट को इस तरफ ध्यान देना ही होगा।