नेपाल ने भारत की नेशनल हाइड्रोपावर कंपनी के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत उस देश के पश्चिम में एक पनबिजली संयंत्र बनाया जाएगा। नेपाली अधिकारियों ने बताया कि चीनी कंपनी पीछे हट गई। नेपाल ने अपनी नदियों को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाली नदियों में 42,000 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है, लेकिन फिलहाल यह 1,200 मेगावाट बिजली ही पैदा कर रहा है। उसकी अपनी जरूरत 1,750 मेगावाट है और जरूरत का बाकी का हिस्सा वह भारत से खरीदता है।
इस क्षमता का इस्तेमाल नेपाल अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए करना चाहता है। फिलहाल 13 अरब डालर का व्यापार घाटा झेल रहे नेपाल के लिए यह क्षेत्र एक बड़ी उम्मीद है इसलिए उसने विदेशी कंपनियों को अपने यहां काम करने की छूट दी है। अधिकारियों के मुताबिक, भारत की एनएचपीसी लिमिटेड ने हाल में एक एमओयू पर दस्तखत किए, जिसके तहत संभावनाओं, पर्यावरण पर प्रभाव, भूमि का अध्ययन और लागत आदि का अध्ययन किया जाएगा।
यह समझौता दो परियोजनाओं के लिए हुआ है, जिनमें पश्चिमी सेती (750 मेगावाट) और एसआर6 (450 मेगावाट) शामिल हैं। दोनों ही परियोजनाएं पश्चिमी सेती नदी पर स्थित हैं, जो देश के सुदूर पश्चिमी हिस्से में है। अधिकारियों के मुताबिक, चीन की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर कंपनी थ्री गोर्जेस इंटरनेशनल कार्प इन परियोजनाओं को बनाने वाली थी, लेकिन समझौते की शर्तों के कारण 2017 में नेपाल ने यह समझौता रद्द कर दिया। इंवेस्टमेंट बोर्ड नेपाल के सीईओ सुशील भट्ट ने बताया, दशकों की देरी के बाद हम और ज्यादा अनिश्चितता नहीं झेल सकते थे।
भट्ट ने कहा कि भारतीय कंपनी से समझौते के कई फायदे हैं। उन्होंने कहा, भारत में ऐसे इलाकों में परियोजनाएं विकसित करने के मामले में एनएचपीसी का रेकार्ड अच्छा है। साथ ही उसमें भारतीय बाजार में बिजली की बिक्री सुनिश्चित करने की संभावना भी है। उन्होंने ऐसे और समझौतों की भी उम्मीद जताई है।
एनएचपीसी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अभय कुमार सिंह ने भी ऐसी ही उम्मीदें जाहिर की हैं। उन्होंने कहा, जब हम किसी परियोजना को हाथ में लेते हैं, तो उसे पूरा करते हैं। नेपाल भारत और चीन के बीच स्थित है इसलिए दोनों ही मुल्क उसकी रणनीतिक अहमियत से वाकिफ हैं। लिहाजा दोनों देश नेपाल पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करते रहते हैं।
पिछले कुछ साल में नेपाल ने चीन के साथ बड़े समझौते किए हैं। हालांकि उन समझौतों की संभावनाओं पर सवाल भी उठते रहे हैं। उदाहरण के लिए चीन की महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) का हिस्सा बनाने के लिए नेपाल ने 2017 में चीन से समझौता किया था। मई 2017 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के नेतृत्व में बीआरआइ पर समझौते पर दस्तखत हुए थे। तब कमल दहल ने कहा था कि नेपाल-चीन संबंधों के लिए यह महत्त्वपूर्ण क्षण है। साथ ही, यह भी कहा गया था कि इससे देश में चीनी निवेश बढ़ने की उम्मीद है। इस महत्वाकांक्षी समझौते को पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन नेपाल में अब तक भी कोई बीआरआइ परियोजना विकसित नहीं हो पाई है।
भारत का बढ़ता प्रभाव
नेपाल को लेकर भारत की नीतियां लचीली हुई हैं और दोनों देशों के नेता लगातार एक दूसरे के यहां आ-जा रहे हैं। बतौर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच बार नेपाल जा चुके हैं। इसी साल मई में बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल में लुंबिनी गए थे। इस दौरे पर भारत और नेपाल के बीच छह समझौते हुए, जिनमें पनबिजली परियोजनाएं प्रमुख रहीं।
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने मिलकर एक पनबिजली परियोजना के निर्माण का एलान किया था। 695 मेगावाट की यह पनबिजली संयंत्र नेपाल के पूर्व में अरुण नदी पर बनाया जाएगा, जिससे नेपाल को 152 मेगावाट की मुफ्त बिजली मिलेगी। इसे भारत के सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड व नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथारिटी द्वारा संयुक्त रूप से बनाया जाएगा। दोनों की साझेदारी 51-49 की होगी।