तीस्ता और अन्य नदियों के जल बंटवारे पर अगर कोई निर्णायक स्थिति बन जाती है, तो बांग्लादेश में कृषि और जल आधारित रोजगार मिलने लग जाएंगे, फलस्वरूप भारत में घुसपैठ थमने की उम्मीद की जा सकेगी। दोनों देशों को संधि के उपरांत संयुक्त रूप से बाढ़ और सूखे की आपदा से निपटने के उपाय तलाशना भी आसान होगा। मगर तीस्ता के विकास को लेकर चीन का दखल सामने आता है, तो जल-बंटवारे की संभावना लंबे समय तक खटाई में पड़ जाएगी।

भारत और बांग्लादेश में बहने वाली तीस्ता नदी पर चीन का हस्तक्षेप अभी तक दिखाई नहीं देता था। पर अब इस नदी पर एक विशाल जलाशय बनाने के बहाने चीन ने बांग्लादेश के विकास कार्यों में सहयोग की इच्छा जताई है। ‘चिकन नेक’ नाम से जाने जाने वाले सिलिगुड़ी गलियारे के निकट प्रमुख परियोजना पर भारत द्वारा आपत्ति उठाए जाने पर बांग्लादेश ने यह जानकारी दी है।

कुछ दिनों पहले चीनी राजदूत याओ वेन ने कहा था कि बेजिंग को ढाका से तीस्ता जल भराव क्षेत्र के विकास हेतु कई प्रस्ताव मिले हैं। इस सिलसिले में बांग्लादेशी अधिकारियों का कहना है कि तीस्ता नदी की सफाई करने, जलाशय और तटबंध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। मगर करोड़ों डालर की इस परियोजना को अब तक रोके रखा गया है, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी भागीदारी से इस नदी पर भारत और बांग्लादेश के बीच जल बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद और गहरा सकता है।

हालांकि 2009 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से ही जल-बंटवारे पर समझौते की बात चल रही है। दोनों देश 2011 में समझौते पर हस्ताक्षर के लिए लगभग तैयार थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अंतिम समय में समझौते के विरुद्ध खड़ी हो गईं। नतीजतन, तय प्रस्ताव को निलंबित कर दिया गया।

भारत और बांग्लादेश के बीच पिछले पच्चीस वर्षों से जल बंटवारे पर समझौते की बातचीत चल रही है। 2022 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की परस्पर हुई बातचीत के बाद कुशियारा नदी के संदर्भ में अंतरिम जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर हो गए। इसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण समझौता माना जाता है। यह भारत के असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभान्वित करेगा। चौवन नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आर-पार जाती हैं और सदियों से दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बनी हुई हैं। मगर दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है।

नदियों के जल-बंटवारे का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी विवाद का विषय रहा है। ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन से, तीस्ता को लेकर बांग्लादेश, झेलम, सतलुज तथा सिंधु को लेकर पाकिस्तान से और कोसी को लेकर नेपाल से विरोधाभास कायम है। भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्रों में कुछ भूखंडों, मानव-बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा होती रही है। हालांकि दोनों देशों के बीच संपन्न हुए भू-सीमा समझौते के जरिए इस विवाद पर कमोबेश विराम लग गया, लेकिन तीस्ता की उलझन बरकरार है।

माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक दूरियों के चलते इस मुद्दे का हल नहीं निकल पा रहा है। यह विवाद 2011 में ही हल हो गया होता, अगर उन्होंने अड़ंगा न लगाया होता। अब अगर चीन तीस्ता के विकास के बहाने हस्तक्षेप करता है, तो यह विवाद अर्से तक अनसुलझा ही रह जाएगा। हालांकि बांग्लादेश में इस समय आम चुनाव का माहौल है, और शेख हसीना ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में कहा है कि अगर उनका दल जीतता है, तो भारत के साथ सहयोग और दोस्ताना संबंधों को यथावत रखा जाएगा।

तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय में स्थित सिक्किम राज्य के झरने हैं। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसलिए सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं।

तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के लगभग समूचे मैदानी क्षेत्रों से होती हुई बंग्लादेश की सीमा में करीब 2800 वर्ग किमी क्षेत्र में बहती है। इन क्षेत्रों के निवासियों के लिए तीस्ता का जल आजीविका के लिए वरदान है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के लिए भी यह नदी बांग्लादेश के बराबर ही महत्त्व रखती है। बंगाल के छह जिलों में इस नदी की जलधारा को जीवन-रेखा माना जाता है।

भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत इस देश के अस्तित्व में आने के साथ 1971 में ही हो गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेजी और इस देश को पाक से मुक्त कराया था। तब से दोनों देशों के बीच भावनात्मक संबंध कायम हैं। 1983 में दोनों देशों के बीच एक तदर्थ जल हिस्सेदारी पर संधि हुई थी, जिसके तहत 39 और 36 फीसद जल बंटवारा तय हुआ। इसी समझौते के मुताबिक तीस्ता नदी के जल आबंटन का प्रस्ताव भी नई द्विपक्षीय संधियों का अब तक आधार बना हुआ है।

इसी कड़ी में वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बंटवारे पर प्रस्तावित अनुबंध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं, लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर पश्चिम बंगाल सरकार ने आपत्ति जता दी थी। हालांकि तब की शर्तें सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का पश्चिम बंगाल को पचास फीसद पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में साठ फीसद पानी दिया जाएगा।

पश्चिम बंगाल सरकार की जिद थी कि अस्सी फीसद पानी बंगाल को दें, तभी इस समझौते को अंतिम रूप दिया जाए। मगर तत्कालीन केंद्र सरकार इस प्रारूप में कोई फेरबदल करने को तैयार नहीं हुई। लिहाजा मुख्यमंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ ढाका जाने की अपनी प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया था।

मगर अब मौजूदा सरकार ने उस मसौदे को बदलने के संकेत दिए हैं। लिहाजा, उम्मीद की जा रही है कि पश्चिम बंगाल को पानी देने की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। हालांकि अस्सी फीसद पानी तो अब भी मिलना मुश्किल है, लेकिन यह मात्रा बढ़ा कर 65-70 फीसद तक पहुंचाई जा सकती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में रहती हैं। तीस्ता का समझौता पश्चिम बंगाल के अधिकतम हितों को ध्यान में रखते हुए होता, तो वे पश्चिम बंगाल की जनता को यह संदेश देने में सफल होतीं कि बंगाल के हित उनकी पहली प्राथमिकता हैं। तब से अब तक वे इस मुद्दे पर इकतरफा प्रभाव जमाए हुए हैं। नतीजतन, परिणाम नहीं निकल पा रहा है।

अगर तीस्ता जल समझौता हो जाता है, तो इससे भारत के सामरिक हित भी सध सकते हैं। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बांग्लादेश के उदय के समय से ही नाजुक बना हुआ है। इसलिए बांग्लादेश की आर्थिक कमजोरी के चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों की निरंतरता बनी हुई है। बांग्लादेश में करीब दस लाख म्यांमा से विस्थापित रोहिंग्या शरणार्थी बसे हुए हैं।

ये भी भारत में लगातार घुसपैठ कर सीमावर्ती राज्यों में जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ रहे हैं। ऐसे में तीस्ता और अन्य नदियों के जल बंटवारे पर अगर कोई निर्णायक स्थिति बन जाती है, तो बांग्लादेश में कृषि और जल आधारित रोजगार मिलने लग जाएंगे, फलस्वरूप भारत में घुसपैठ थमने की उम्मीद की जा सकेगी।

दोनों देशों को संधि के उपरांत संयुक्त रूप से बाढ़ और सूखे की आपदा से निपटने के उपाय तलाशना भी आसान होगा। मगर तीस्ता के विकास को लेकर चीन का दखल सामने आता है, तो जल-बंटवारे की संभावना लंबे समय तक खटाई में पड़ जाएगी। अगर शेख हसीना की आम चुनाव के बाद वापसी नहीं होती है, तो यह विवाद सुलझना और मुश्किल हो जाएगा।