पिछले महीने रूस के कजान में सोलहवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से अलग प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सार्थक द्विपक्षीय वार्ता हुई। उसमें दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध को हल करने संबंधी समझौते का स्वागत किया और अधिकारियों को लद्दाख में सीमा विवाद सुलझाने के लिए आगे बातचीत जारी रखने के निर्देश दिए। यही कारण है कि इस वार्ता के बाद सैन्य स्तर पर तत्परता से क्रियान्वयन के साथ डेमचोक और डेपसांग मैदानी क्षेत्रों में टकराव वाले दो बिंदुओं से सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद अब गश्ती शुरू हो गई है।

भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य होने के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण यह भी है कि चीन इस समय अभूतपूर्व विपरीत आर्थिक हालात का सामना कर रहा है। पिछली कुछ तिमाहियों से चीन की अर्थव्यवस्था लगातार धीमी पड़ रही है। चीन की विकास दर घटी है। 22 अक्तूबर को जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की रपट के मुताबिक वर्ष 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसद होगी, जबकि भारत की विकास दर सात फीसद होगी।

चीनी निवेश के लिए है भारत में कड़े नियम

चूंकि भारत में चीनी निवेश के लिए नियम कड़े हैं और चीन, भारत के बाजार में बढ़ना चाहता है, ऐसे में चीन वार्ता के लिए तत्पर हुआ। चीन ने इस बात को भी समझा है कि भारत ने चालू वित्तवर्ष के बजट में विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने, आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने के अभूतपूर्व प्रावधान किए हैं, ताकि चीन का भारतीय बाजार पर दबदबा कम हो सके। इतना ही नहीं, इस समय चीन अमेरिकी निवेशकों की प्राथमिकता खोता जा रहा है। अमेरिका और चीन में बढ़ते तनाव के माहौल में चीन में कार्यरत अनेक वैश्विक कंपनियां अपना कारोबार चीन से समेटने की तैयारी में हैं।

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इस तरह जहां अब चीन के लिए भारतीय बाजार जरूरी है, वहीं भारत को भी अपने विनिर्माण क्षेत्र के लिए चीन से कच्चे माल की सरल आपूर्ति जरूरी है। गौरतलब है कि चीन 2023-24 में अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार बन गया है। भारत दूरसंचार और बिजली संबंधी कलपुर्जों, इलेक्ट्रानिक्स, सोलर पैनल और औषधियों समेत कई उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर है। सीमा पर तनाव के बावजूद चीन के साथ भारत का व्यापार लगातार बढ़ता रहा है और संतुलन पूरी तरह चीन के पक्ष में झुका हुआ है।

भारत के आयात बाजार में चीन पहले स्थान पर

हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्तवर्ष के पहले छह महीनों यानी अप्रैल से सितंबर 2024 के दौरान भारत का चीन के साथ अब तक का सर्वाधिक व्यापार घाटा दर्ज किया गया है। इस अवधि में चीन से आयात बढ़कर 56.29 अरब डालर हो गया। जबकि चीन को सिर्फ 6.91 अरब डालर का निर्यात किया गया। अगर हम पिछले वित्तवर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत के संपूर्ण व्यापार को देखें, तो चीन से आयात 101.75 अरब डालर हुआ था। जबकि चीन को निर्यात 16.66 अरब डालर रहा और उसके साथ व्यापार घाटा 85.09 अरब डालर था। भारत के आयात बाजार में चीन पहले स्थान पर है, तो निर्यात बाजार में पांचवें स्थान पर है।

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ऐसे में, अब भारत के लिए चीन से आर्थिक रिश्ते सुधरने की जो संभावना है, उसके तहत भारत, चीन के साथ कारोबार असंतुलन को कम करने के लिए प्रभावी बात कर सकता है। भारत, चीन पर उन वस्तुओं के लिए दरवाजे खोलने को लेकर दबाव बना सकता है, जिनके लिए चीन ने सख्त नियम और गुणवत्ता को आधार बनाकर भारत से निर्यात को हतोत्साहित किया है। इनमें जेनेरिक दवाइयां, छोटी कारें, पालिश डायमंड तथा मांस प्रमुखतया शामिल हैं। ज्ञातव्य है कि भारत 185 से अधिक देशों को सैकड़ों वस्तुओं का निर्यात करता है, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश भी भारत के उत्पादों के खरीददार हैं, लेकिन चीन हमारे उत्पादों की गुणवत्ता का सवाल उठाता है। सख्त नियमों के जरिए भारतीय फल और सब्जियां चीनी बाजार में हतोत्साहित की जाती हैं।

आंखें बंद करके स्वीकार नहीं कर सकते एफडीआइ

बहरहाल, भारत को चीन से आर्थिक वार्ता को आगे बढ़ाते समय सावधान और सतर्क रहना होगा। चीन के द्वारा विश्वास तोड़ने के कई मौके भारत भूल नहीं सकता है। पिछले दिनों अमेरिका के एक कार्यक्रम में संवाद के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हम आंखें बंद करके एफडीआइ स्वीकार नहीं कर सकते। यद्यपि हमें निवेश की जरूरत है, लेकिन हमें देखना होगा कि यह निवेश किस देश से आ रहा है। हमें कुछ सुरक्षा उपाय भी करने होंगे, क्योंकि भारत ऐसे पड़ोसियों से घिरा है, जो बहुत संवेदनशील हैं।

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जहां भारत को चीन के साथ आर्थिक रिश्तों में सावधानी बरतनी जरूरी है, वहीं अमेरिका से मित्रता का लाभ उठाने के लिए तेजी से आगे बढ़ना होगा। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि वैश्विक संघर्ष की अनिश्चितता के बीच भी दुनिया का भारत पर असाधारण आर्थिक विश्वास बना हुआ है। दुनिया की नजरों में यह युग भारत का युग है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अपनी नई रपट में कहा है कि भारत आर्थिक विकास, विदेशी निवेश और नई तकनीकों के उपयोग की ऊंची संभावनाओं वाला देश है। अमेरिका चैंबर आफ कामर्स की रपट के मुताबिक वर्ष 2024 में अमेरिका की कंपनियों की वैश्विक निवेश पसंद में भारत का दूसरा स्थान है। इस समय चीन अमेरिकी निवेशकों की प्राथमिकता खोता जा रहा है। इतना ही नहीं, अमेरिका और चीन में बढ़ते तनाव के माहौल में इस समय चीन में कार्यरत 12 लाख करोड़ रुपए निवेश वाली 50 अमेरिकी कंपनियां अपना कारोबार चीन से समेटने की तैयारी में हैं। इनमें पंद्रह कंपनियां भारत में निवेश की तैयारी कर रही हैं।

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ऐसे में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए एक व्यापक नीति की जरूरत है। ऐसी नीति, जिसमें चीन की तरह भारत भी चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर एंटीडंपिंग शुल्क की रणनीति बनाए। जिस तरह हाल ही में यूरोपीय संघ और अन्य विकसित देशों द्वारा चीन से आयात नियंत्रित करने के लिए गैर-टैरिफ अवरोध के साथ अन्य आयात प्रतिबंधों को असाधारण रूप से बढ़ाया गया है, उसी तरह भारत को संरक्षणवाद के तरीके अपनाते हुए चीन से तेजी से बढ़ रहे आयात और चीन के साथ बढ़ते हुए व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा। घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात नियंत्रित करने से संबंधित उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के क्रियान्वयन में तेजी के साथ ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्वदेशी अपनाओ’ अभियान को तेजी से बढ़ाना होगा। विनिर्माण के लिए नई घरेलू क्षमताएं पैदा करनी होगी और नए स्रोत तलाश करने होंगे। साथ ही, देश की बड़ी कंपनियों को शोध और नवाचार के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना होगा।