वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में प्रति वर्ष लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। हाल ही में आई यूनिसेफ और अमेरिका के गैर-सरकारी संगठन ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (एचईआइ) की साझा रपट के अनुसार पूरी दुनिया में 2021 में वायु प्रदूषण के कारण कुल 81 लाख लोगों की मौत हो गई। इनमें पांच वर्ष से भी कम आयु के 7.09 लाख बच्चे थे। आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में हर घंटे 80 से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है। भारत में 2021 में वायु प्रदूषण से 169400 बच्चों की मौत हो गई। इतनी बड़ी संख्या में हो रही बच्चों की मौत के ये आंकड़े व्यथित और परेशान करने वाले हैं।
रपट के मुताबिक दूषित हवा ने गंदे पानी तथा गंदगी से होने वाली मौतों को भी पीछे छोड़ दिया है और गरीब देशों के बच्चों पर वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ रहा है। रपट के अनुसार अफ्रीकी देशों में तो उच्च आय वाले देशों की तुलना में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत सौ गुना तक अधिक है। आने वाले समय में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया भर में बच्चों की मौतों का यह आंकड़ा तब है, जब वर्ष 2000 के बाद से दूषित हवा से बच्चों की मौत करीब 53 फीसद तक घटी है, जिसका प्रमुख कारण घर के भीतर हवा की गुणवत्ता में सुधार होना है। घर के अंदर हवा को स्वच्छ रखने में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, मगर दुनिया भर में अब भी करीब 230 करोड़ लोगों के पास खाना बनाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा नहीं है।
‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ की रपट में बताया गया था कि 2019 में वायु प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में 4.76 लाख बच्चों की मौत हुई थी, जिनमें से अकेले भारत में 1.16 लाख नवजात बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2018 में प्रकाशित ‘एयर पाल्यूशन एंड चाइल्ड हेल्थ’ नामक रपट में कहा गया था कि 2016 में दुनिया भर में पांच वर्ष से कम आयु के छह लाख बच्चों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई थी और उनमें से एक लाख से अधिक बच्चे भारत के थे। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सर्वाधिक मौतें अफ्रीका तथा एशिया में होती हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। डब्लूएचओ के अनुसार दुनिया भर में करीब 90 फीसद बच्चे, जिनकी कुल संख्या 1.8 अरब से भी ज्यादा है, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। यूनीसेफ की एक रपट के मुताबिक विश्वभर में करीब दो अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 62 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों में हैं।
गर्भ में ही शिशुओं पर वायु प्रदूषण का हो रहा असर
भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के कारणों की पड़ताल करने पर पता चलता है कि कुपोषण के बाद इस आयु वर्ग के बच्चों की मौतों की बड़ी वजह वायु प्रदूषण है। गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव होने से गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है। इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं और ये दोनों शिशु मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। समय से पहले जन्मे बच्चों का शारीरिक विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। ऐसे बच्चों के अस्थमा तथा अन्य बीमारियों का शिकार होने का काफी खतरा रहता है। ‘द लांसेट प्लानेटरी हेल्थ जर्नल’ में अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से वातावरण में फैलने वाले कण और रसायन अजन्मे बच्चों के दिमाग, फेफड़े और अन्य विकासशील अंगों तक पहुंच रहे हैं, जो संभावित रूप से उनके स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।
यूनिसेफ द्वारा जून 2018 में प्रकाशित एक रपट में बताया जा चुका है कि भारत में लगभग सभी स्थानों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे फेफड़ों से संबंधित बीमारियों और अल्प विकसित मस्तिष्क का शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से करीब 15 फीसद वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण होती है। ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ के पूर्व अध्यक्ष डैन ग्रीनबाम के मुताबिक नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण होता है और इन नए साक्ष्यों से दक्षिण एशिया और अफ्रीका में नवजातों को होने वाले अधिक खतरे का पता चलता है।
अनेक रोगों से घिरा रहता है बचपन
अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तो उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष लाखों बच्चों की मौत हो जाती है।
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि घरों के भीतर का प्रदूषण भी बच्चों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। कुछ रपटों के मुताबिक नवजात शिशुओं की मौतों में से दो तिहाई का कारण घरों के अंदर का प्रदूषण है। विश्व स्तर पर वाहनों से उत्सर्जित गैसों और ‘पार्टिकुलेट मैटर’ के उत्सर्जन पर तो बहुत चर्चा होती है, लेकिन घरों के अंदर के प्रदूषण के स्रोतों पर अक्सर कोई चर्चा नहीं होती। ‘यूनिवर्सिटी आफ कोलोराडो बोल्डर’ के वैज्ञानिकों के मुताबिक खाना पकाने, साफ-सफाई तथा घर के अन्य सामान्य कामकाज के दौरान ‘पार्टिकुलेट मैटर’ और ‘वोलाटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स’ (वीओसी) उत्पन्न होते हैं, जो प्रदूषण फैलाते हैं। ‘पार्टिकुलेट मैटर’ खाना पकाने और साफ-सफाई के दौरान उत्पन्न होते हैं, जबकि शैम्पू, परफ्यूम, रसोई और सफाई वाले घोल वीओसी के प्रमुख स्रोत हैं।
मासूमों को बचाने के लिए उपाय की है जरूरत
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस प्रकार के तत्त्व विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के अलावा कैंसरकारक भी होते हैं। घरों में वायु प्रदूषण के बढ़ते दुष्प्रभावों का सबसे बड़ा कारण आजकल अधिकांश घरों में विभिन्न घरेलू कार्यों में तरह-तरह के रसायनों का बढ़ता उपयोग माना जा रहा है। ऐसे ही रसायनयुक्त पदार्थों के बढ़ते चलन से घरों के अंदर फार्मेल्डीहाइड, बेंजीन, अल्कोहल, कीटोन जैसे कैंसरजनक हानिकारक रसायनों की सांद्रता बढ़ जाती है, जिनका बच्चों के स्वास्थ्य पर घातक असर पड़ता है। बहरहाल, वायु प्रदूषण के बच्चों पर पड़ते दुष्प्रभावों और हर वर्ष वायु प्रदूषण के कारण हो रही लाखों बच्चों की मौतों को लेकर पूरी दुनिया को अब संजीदगी से इस पर विचार मंथन करने और ऐसे उपाय किए जाने की आवश्यकता है, जिससे मासूम बचपन प्रदूषण का इस कदर शिकार न बने।
अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तो उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष लाखों बच्चों की मौत हो जाती है।