यह एक दर्दनाक सच्चाई है कि पूरे विश्व में तस्करों के गिरोह लाखों नौनिहालों का बचपन छीन रहे हैं। इस समय विश्व में बच्चों की तस्करी का अवैध कारोबार डेढ़ सौ अरब डालर वार्षिक से अधिक का हो चुका है। भारत के कई राज्यों में भूमिगत शिशु तस्कर गिरोह सक्रिय हैं, जो माता-पिता की गरीबी का फायदा उठाते हैं। सरकारी अस्पतालों में ढीली सुरक्षा व्यवस्था के कारण हर वर्ष हजारों नवजात शिशु तस्करों के हवाले कर दिए जाते हैं। इसमें चिकित्सा क्षेत्र के चतुर्थ श्रेणी कर्मियों को बड़ी संख्या में शामिल पाया गया है।
आमतौर पर नशीली दवाओं के धंधे में शामिल तस्कर गिरोह बड़ी खूबसूरती से माता-पिता को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे उनके बच्चे का भविष्य बेहतर बना सकते हैं। तस्करी के शिकार बच्चों की पहचान करना कठिन होता है, क्योंकि उन्हें जानबूझकर उन सेवाओं और समुदायों से छिपाया और अलग-थलग रखा जाता है, जो उन्हें पहचान कर उनकी सुरक्षा कर सकते हैं। तस्करों के अंतरराष्ट्रीय संजाल में छोटे से छोटे क्षेत्र भी चिह्नित होने लगे हैं, जहां उनके मुखबिर किस्म के एजेंट अनाथालयों, बाल सुरक्षा गृहों, अस्पतालों आदि में सक्रिय रहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि हर वर्ष तस्कर दुनिया भर में लगभग तीन लाख बच्चों को गुलामी के लिए बेच देते हैं। मानव तस्करी विरोधी एक संगठन के अध्ययन में बताया गया है कि गरीबी और अशिक्षा के चलते इस तस्करी का संजाल मजबूत हो रहा है। इससे निपटने के लिए अब व्यापक सुरक्षा, रोकथाम, कानून प्रवर्तन और पीड़ितों की त्वरित सहायता बहुत जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संरक्षण, खासकर बच्चों की तस्करी को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में ‘पलेर्मो प्रोटोकाल’ सूचीबद्ध है। इसके साथ ही कई अन्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंसियां भी संयुक्त कार्रवाई के तहत इस आपराधिक संजाल की चुनौतियों से निपटने में लगी हुई हैं।
दुनिया में बाल तस्करी की मुख्य वजह गरीबी
अंतरराष्ट्रीय बालश्रम संगठन की रपट के मुताबिक तस्करी के शिकार शिशुओं में से लगभग साठ फीसद को बड़े होने पर कृषि बालश्रम में लगा दिया जाता है। ऐसे बच्चों से घरों, खेतों, कारखानों, रेस्तरां आदि में काम कराया जाता है। यौन शोषण के साथ ही, उन्हें भीख मांगने, सशस्त्र बलों और नशीली दवा व्यापार में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। गरीबी दुनिया भर में बाल तस्करी का प्रमुख कारण है। एक अध्ययन में पता चला है कि ऐसे बारह करोड़ बच्चे सड़कों पर दिन गुजार रहे हैं, जिनमें से लगभग तीन करोड़ अकेले अफ्रीका में हैं।
एक अध्ययन के मुताबिक भारत में गरीबी से बाहर निकलने या कर्ज चुकाने के लिए अनेक माता-पिता अपने बच्चों को तस्करों को बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं। भारत में गरीबी और संस्थागत चुनौतियों के अलावा, पारंपरिक, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएं भी कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। हर वर्ष ग्रामीण भारत से लाखों लड़कियों की तस्करी शहरी क्षेत्रों में घरेलू सहायक के रूप में काम करने के लिए की जाती है। घरेलू नौकरानी के रूप में लड़कियों को बहुत कम वेतन मिलता है। दुर्व्यवहार के अलावा कभी-कभी उनका यौन उत्पीड़न भी किया जाता है।
मुंबई में बच्चों का व्यावसायिक यौन शोषण चालीस करोड़ डॉलर का धंधा
यूनीसेफ का अनुमान है कि वर्तमान में दुनिया भर में तीस से अधिक सशस्त्र संघर्षों में अठारह वर्ष से कम उम्र के तीन लाख से अधिक बच्चों का शोषण किया जा रहा है। अधिकांश बाल सैनिक 15 से 18 वर्ष आयु के हैं, कुछ की आयु सात या आठ वर्ष के बीच है। शोषित बच्चे बाल पोर्नोग्राफी, बाल वेश्यावृत्ति और बलात्कार के लिए लेन-देन के अधीन पाए गए हैं। अकेले मुंबई शहर में महिलाओं और बच्चों का व्यावसायिक यौन शोषण लगभग चालीस करोड़ अमेरिकी डालर वार्षिक का धंधा है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में युवा लड़कियों की तस्करी चौदह गुना तक बढ़ गई है।
वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र में पहली बार मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा हुई, जिसमें बच्चों की तस्करी रोकने का ‘प्रोटोकाल’ शामिल किया गया। महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिए हमारे देश में अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम को पहली बार 1956 में संशोधित किया गया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 स्पष्ट रूप से मानव तस्करी पर प्रतिबंध लगाता है। देश में तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने बाल तस्करी विरोधी इकाई का गठन किया है।
10 फीसदी अंतरराष्ट्रीय होती है तस्करी
मानव तस्करी के बारे में प्रेस, पुलिस, गैरसरकारी संगठनों से बड़ी संख्या में मिली रपटों को आधार बनाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि भारत तेजी से बच्चों की तस्करी करने वालों के लिए एक बड़ा स्रोत, पारगमन बिंदु और गंतव्य बनता जा रहा है। असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, ओड़ीशा और पश्चिम बंगाल जैसे गरीबी से त्रस्त राज्यों में सबसे अधिक चिंताजनक हालात हैं। इन राज्यों में बाल तस्करी में लगातार वृद्धि हो रही है। यूनीसेफ के अनुसार, 1.26 करोड़ बच्चे खतरनाक व्यवसायों में लगे हुए हैं। भारत में मानव तस्करी का केवल दस फीसद अंतरराष्ट्रीय है, जबकि 90 फीसद अंतरराज्यीय पाया गया है। यौन तस्करी में शामिल बच्चों में अधिकांश लड़कियां हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रपट के अनुसार, भारत में हर साल कम से कम 40 हजार बच्चों का अपहरण हो जाता है, जिनमें से 11 हजार बच्चों का तो पता तक नहीं चल पाता। हमारे देश में कम से कम तीन लाख बाल भिखारी हैं। एक एनजीओ का अनुमान है कि हर वर्ष 12 हजार से 50 हजार तक महिलाओं और बच्चों को यौन व्यापार के तहत पड़ोसी देशों से तस्करी करके लाया जाता है। हर वर्ष कम से कम 44 हजार बच्चे तस्कर गिरोहों के चंगुल में फंस जाते हैं। सीबीआइ की एक पुरानी रपट के मुताबिक भारत में अनुमानित 12 लाख बच्चे वेश्यावृत्ति में धकेल दिए गए हैं।
वयस्कों की तुलना में बच्चों की चार गुना ज्यादा तस्करी
भ्रष्टाचार के चलते कानूनों का कड़ाई से अनुपालन न हो पाना बच्चों की तस्करी की एक बुनियादी वजह है। चूंकि गरीब बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं, इसलिए राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोहों की निगाहें सबसे ज्यादा उन्हीं पर टिकी रहती हैं। ऐसे परिवार अपने जीवन यापन के लिए अक्सर बच्चों का भविष्य तस्करों के दांव पर लगा बैठते हैं। वयस्कों की तुलना में बच्चों की तस्करी चार गुना से अधिक है। तस्करी के शिकार, 12 से 14 वर्ष के बच्चों को जबरन श्रम, यौनकर्म में झोंकने के साथ ही उनके अंग निकालकर बेचना भी शामिल है। तस्करों द्वारा अगवा वयस्कों की तरह ही बच्चों को भी घरेलू दासता, बंधुआ मजदूरी आदि तरह-तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ता है। व्यावसायिक यौन व्यापार ही बच्चों के शोषण का सबसे बड़ा अपराध-क्षेत्र है। जिनके माता-पिता सशस्त्र संघर्षों के शिकार हो जाते हैं, उनके ज्यादातर अनाथ बच्चे तस्करी के शिकार हो जाते हैं। उसके बाद तो आजीवन वे बच्चे निरक्षरता और बाल तस्करी की भयावहता से जूझते रहते हैं।
मानव तस्करी के बारे में प्रेस, पुलिस, गैरसरकारी संगठनों से बड़ी संख्या में मिली रपटों को आधार बनाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि भारत तेजी से बच्चों की तस्करी करने वालों के लिए एक बड़ा स्रोत, पारगमन बिंदु और गंतव्य बनता जा रहा है। असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, ओड़ीशा और पश्चिम बंगाल जैसे गरीबी से त्रस्त राज्यों में सबसे अधिक चिंताजनक हालात हैं। इन राज्यों में बाल तस्करी में लगातार वृद्धि हो रही है।