चंद्रधर शर्मा गुलेरी की रचना ‘उसने कहा था’ प्रेम-विरोधी दिनों में भी एक ऐसी प्रेमकथा के रूप में याद की जाती है जिसमें एकदम खांटी देसी पंजाबी प्रेम भावना के ‘क्लासिकल’ रूप की यकीनी झलक मिलती है।

जिन दिनों प्रेम सिर्फ ‘ब्लाइंड डेटिंग’ या निरी ‘फिजिकल सेक्स’ या ‘वन नाइट स्टैंड’ या पहले ‘लिव-इन’ और फिर ‘आइ हेट यू रास्कल’ या ‘बिच’ या ‘आइ वांट टू लिव आन माई ओन टर्म्स’ या फिर अंतत: ‘डोमेस्टिक वायलेंस’ का केस बनकर अदालत के चक्कर कटवाता हो, उन दिनों हिंदी के पाठक को यह कहानी एक शताब्दी बाद भी आश्वस्त करती है कि प्रेम अब भी एक बड़ी संभावना है।

‘उसने कहा था’ कहानी की असली ताकत है उसकी ‘फ्लैशबैक’ शैली, जो घायल लहना सिंह की बेहोशी में आती-जाती यादों के ‘फ्लैशबैक’ से मेल खाती है, जिसे पढ़ते हुए हम एक प्रकार से ‘डबल फ्लैशबैक’ का आनंद लेते हैं। वैसे भी प्रेम तो है ही स्मृति और कल्पना का रचनात्मक साझे का नाम।