मोदी सरकार को सत्ता में रहे 10 साल होने को हैं, एक बार फिर वापसी के संकेत बीजेपी द्वारा लगातार दिए जा रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने तो वैसे भी लोकसभा के पटल से ही 400 पार का नारा दे डाला है। अब बीजेपी मानकर चल रही है कि मंदिर राजनीति, पिछड़ा कार्ड और पीएम मोदी की लोकप्रियता उसे फिर सत्ता में लाने वाली है। लेकिन एक बड़ी राहत देश की सर्वोच्च अदालत से पूरे विपक्ष के लिए भी आई है।

क्या है चंडीगढ़ मेयर चुनाव वाला विवाद?

हाल ही में चंडीगढ़ में मेयर चुनाव हुआ था। बीजेपी की जीत हुई, मेयर भी पार्टी का बन गया, लेकिन उन नतीजों ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया। विवाद था धांधली है, पारदर्शिता की कमी का। असल में उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को मिले थे 16 वोट, जबकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी के खाते में गए 20 वोट। अब सामान्य गणित कहता है कि इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिले, ऐसे में मेयर भी उनका ही होना चाहिए। लेकिन यहां हुए एक बड़ा खेल।

चुनाव के समय जो रिटर्निंग ऑफिसर थे, उन्होंने कुल आठ वोटों को निरस्त कर दिया, उन्हें स्वीकार ही नहीं किया गया। इस वजह से जिस इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को 20 वोट मिले थे, वो घटकर 12 रह गए और इस तरह बीजेपी प्रत्याशी जीत गया और पार्षद भी पार्टी का ही बना। अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जब इस मामले में सुनवाई की, दो टूक और तल्ख अंदाज में उस रिटर्निंग ऑफिसर की नीयत पर सवाल उठाए गए। यहां तक कहा गया कि ये लोकतंत्र की हत्या है। इस प्रकार के मजाक को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

बीजेपी की क्यों उड़ी नींद?

अब सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी एक तरफ पूरे विपक्ष के लिए बड़ी राहत है तो वही बीजेपी की नींद उड़ाने के लिए काफी है। कहने को मेयर का चुनाव काफी छोटे लेवल पर होता है, देश की शायद इस पर इतनी नजर भी नहीं जाती। लेकिन जिस तरह से पहले आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और उसके बाद जिस तरह से देश की सर्वोच्च अदालत ने तल्ख टिप्पणी की, उसने भी पूरे देश को जगाने का काम किया। यहां समझने वाली बात ये है कि चुनावी मौसम में विपक्ष के हाथ एक बड़ा हथियार लग गया है।

कैसे विपक्ष को मिली है सुप्रीम राहत?

एक बात सभी ने नोटिस की है कि पूरा विपक्ष एक नेरेटिव खड़ा करने की कोशिश कर रहा है- देश में लोकतंत्र खतरे में है। विपक्ष के पास अपने तमाम तर्क मौजूद हैं जिस वजह से वो देश की जनता के सामने कई सालों से यही राग अलाप रहा है। लगातार हो रही विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई, कई राज्यों में अचानक से चुनी ही सरकार के बजाए बीजेपी की सरकार बनना। ये तमाम वो मुद्दे हैं जिसके दम पर विपक्ष लोकतंत्र को बचाने की दुहाई दे रहा है। अब हुआ ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी विपक्ष के सबसे पसंदीदा नेरेटिव को हवा दे दी है। कोर्ट ने कह दिया है कि लोकतंत्र की हत्या हुई है।

ये सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया, बल्कि सिर्फ रिटर्निंग ऑफिसर की नीयत पर सवाल उठाए। लेकिन जनता के बीच में आम आदमी पार्टी ने पहले ही परसेप्शन सेट कर दिया था कि धांधली तो बीजेपी वालों ने ही की है। ऐसे में अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी उस चुनाव पर सवाल उठा दिए, विपक्ष ने आराम से इसे लपक लिया और देश की सबसे बड़ी पार्टी की ही किरकिरी हुई। इस माहौल को प्रियंका गांधी के एक्स प्लेटफॉर्म पर लिखे गए पोस्ट से भी समझ सकते हैं।

प्रियंका ने कहा कि बीजेपी तो लोकतंत्र को खत्म कर रही है जिससे लोगों की आवाज को दबाया जा सके। लेकिन अब ये सब देश के सामने आ चुका है। जनता ही जवाब देने वाली है। आम आदमी पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और बीजेपी को ही सबसे भ्रष्ट बता दिया। अब इस पूरे विवाद को विपक्षी नेरेटिव की जीत की नजर से देखा जा सकता है। ये बात सभी को पता है कि सुप्रीम कोर्ट से पिछले कुछ सालों में कई बार विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी है।

राफेल मुद्दे पर हार चुका है विपक्ष

ये समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि विपक्ष ने कई बार कुछ मुद्दों पर जरूरत से भी ज्यादा समय इनवेस्ट करने का काम किया, लेकिन सर्वोच्च अदालत में जाकर वो मुद्दे ही हवा हवाई हो गए और पूरा फायदा बीजेपी और मोदी सरकार को मिला। उदाहरण के लिए राफेल का मुद्दा जिसमें पूरे विपक्ष ने एक सुर में कहा कि आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला सामने आ गया है। संसद चलने नहीं दी गई, चुनावी भाषणों में राहुल गांधी ने बोल दिया- चौकीदार चोर है, लेकिन मामला जब सुप्रीम कोर्ट गया, सरकार को मिली राहत, बीजेपी की भाषा में बोलें तो क्लीन चिट।

सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कह दिया था कि ऐसी याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। जिस प्रक्रिया को लेकर सारा बवाल था, उस पर भी कोर्ट ने कहा था कि संदेह करने की कोई वजह नहीं दिखती है। यानी कि जिस मामले पर पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा था, सुप्रीम कोर्ट ने ही उसे सबसे बड़ा झटका देने का काम किया था। बड़ी बात ये भी थी कि मोदी सरकार पर वो पहला कोई बड़ा भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। लेकिन तब कोर्ट की क्लीन चिट ने विपक्ष के नेरेटिव की हवा निकाल दी थी।

अडानी मुद्दे पर विपक्ष ने खाई मुंह की

इसके बाद मोदी के दूसरे कार्यकाल में राहुल गांधी ने अडानी के मुद्दे को उठाना शुरू किया। हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट ने भी कुछ ऐसे दावे कर दिए जिससे विपक्ष के हौसले बुलंद हो गए। एक बार फिर भ्रष्टाचार का नेरेटिव और निशाने पर सरकार को रखा गया। सदन भी चलने नहीं दिया गया और राहुल गांधी ने पता नहीं कितनी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डालीं। लेकिन मामला जब सुप्रीम कोर्ट गया, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का नेरेटिव हार गया और मोदी सरकार को फिर मिली सुप्रीम राहत।

नए संसद भवन वाली याचिका पर पड़ चुकी फटकार

कुछ महीने पहले ही जब नए संसद भवन का उद्घाटन होने वाला था, विपक्ष ने इस बात को बड़ा मुद्दा बना दिया कि वो उद्घाटन देश की राष्ट्रपति द्वारा नहीं किया जा रहा। सुप्रीम कोर्ट में याचिका तक दायर की गई, लेकिन फिर वहां से पड़ी कड़ी फटकार और यहां तक सुनने को मिल गया शुक्र मनाइए जुर्माना नहीं लगाया जा रहा। यानी कि तब भी विपक्ष का नेरेटिव हार गया था। लेकिन सोमवार को उसी सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष का नेरेटिव कई साल बाद जीता है। चंडीगढ़ चुनाव को लेकर अभी तक सर्वोच्च अदालत की जो भी ऑबसरवेशन रही है, वो साफ बताती है कि इस बार विपक्ष और अदालत एक पेज पर है, वहीं सवालों के घेरे में आ गई है सरकार और बीजेपी।

बीजेपी के लिए कैसे पलट गया गेम?

विपक्ष चुनावी मौसम में अब डंके की चोट पर बोलने वाला है कि ये सरकार सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकती है। जब जनता के सामने सबूत दिखाने की बात होगी तो सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी ही संजीवनी का काम करने वाली है। वैसे संजीवनी तो ये विपक्ष के लिए इसलिए भी साबित होने वाली है क्योंकि बीजेपी जिस तरह से भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना रही है, जिस तरह से सोरेन की गिरफ्तारी को काले धन के खिलाफ एक्शन दिखा रही है, उस बीच ये धांधली के आरोप जनता के बीच में मोदी और बीजेपी दोनों की लोकप्रियता को धूमिल कर सकते हैं।