कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलनों की वजह से दिसंबर तिमाही में 70000 करोड़ रुपए के आर्थिक नुकसान होने की संभावना है। यह अनुमान पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की तरफ से लगाया गया है। चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अनुसार आपूर्ति व्यवस्था बाधित होने की वजह से इस नुकसान का असर पंजाब , हरियाणा और दिल्ली के सीमावर्ती इलाके में देखने को मिल सकता है।

पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने कहा है कि बीते 36 दिनों से चल रहे कृषि आंदोलन की वजह से 2020-21 की तीसरी तिमाही में करीब 70000 करोड़ का नुकसान अनुमानित है। इस नुकसान की बड़ी वजह आपूर्ति श्रृंखलाओं और आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान है। साथ ही  अग्रवाल ने यह भी कहा कि आंदोलन की वजह से ऑटोमोबाइल, कृषि मशीनरी, सूचना प्रौद्योगिकी, व्यापार, पर्यटन, और परिवहन जैसे क्षेत्रों का भी काफी नुकसान हुआ है। खास कर उन क्षेत्रों को ज्यादा नुकसान हुआ है जहाँ कच्चे माल की आर्पूति होती है।

संजय अग्रवाल ने कहा है कि सरकार और किसानों के बीच पराली जलाने को लेकर जुर्माना और बिजली संशोधन विधेयक 2020 को लेकर सहमति बन गयी है जो काफी सराहनीय है। साथ उन्होंने यह भी कहा कि चैम्बर जल्दी ही दोनों मसलों के जल्द से जल्द समाधान की उम्मीद कर रहा है। ज्ञात हो कि 30 दिसंबर को किसान संगठनों और सरकार के बीच हुई बैठक में कुल चार मांगों में दो माँगें मान ली गयी थी। जबकि तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी को लेकर अभी भी गतिरोध बना हुआ है।

दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर बैठे किसान संगठन कृषि कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। जबकि केंद्र सरकार यह कह चुकी है कि वो कानून वापस नहीं लेगी। हालाँकि किसान संगठनों और सरकार के बीच अगले दौर की बातचीत चार जनवरी को होगी। बीते 30 दिसंबर को हुई मीटिंग के बाद कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा था कि हमने चार में दो मांगे मान ली है लेकिन कृषि कानून वापस नहीं किया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने एमएसपी के मसले पर कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी है और आगे भी जारी रहेगा।