बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता के तख्तापलट और अमेरिका तथा जापान सहित दुनिया के कई देशों में मंदी के परिदृश्य के बाद भारत में विदेश व्यापार घाटे की नई चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश भारत का आठवां सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। पिछले वर्ष भारत ने बांग्लादेश को ग्यारह अरब डालर मूल्य का निर्यात किया। ऐसे में देश के समक्ष विदेश व्यापार के बढ़ते घाटे को कम करने और निर्यात बढ़ाने की नई जरूरत है।

हाल ही में वाणिज्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्तवर्ष में अप्रैल से जून की पहली तिमाही में जहां निर्यात धीमी रफ्तार से बढ़े हैं, वहीं आयात की रफ्तार अधिक रहने से विदेश व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है। इन तीन महीनों में कुल निर्यात 200.33 अरब डालर मूल्य का था, जिसमें वस्तु निर्यात 109.96 अरब डालर और सेवा निर्यात 90.37 अरब डालर मूल्य का था। कुल आयात 222.90 अरब डालर मूल्य का था, जिसमें वस्तु आयात 172.23 अरब डालर और सेवा आयात 50.67 अरब डालर मूल्य का था। इस वित्तवर्ष में भारत ने कुल निर्यात का लक्ष्य पिछले वर्ष से कुछ अधिक 800 अरब डालर पर पहुंचाने का सुनिश्चित किया है, लेकिन रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध, लाल सागर संकट और कंटेनर की कमी की वजह से निर्यात का यह ऊंचा लक्ष्य प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है।

ऐसे में रणनीतिक रूप से विदेश व्यापार के बढ़ते घाटे को नियंत्रित करने और निर्यात की रफ्तार बढ़ाने के अभियान पर आगे बढ़ना होगा। इसके लिए पांच तरह के बहुआयामी उपाय करने होंगे। एक, भारत के विदेश व्यापार में नई जान फूंकने के लिए द्विपक्षीय वार्ताएं बढ़ाई जाएं। दो, वर्ष 2024-25 के बजट में निर्यात बढ़ाने के लिए सुनिश्चित किए गए बजट आबंटनों का शुरू से ही कारगर उपयोग किया जाए। तीन, सेवा निर्यात को हर संभव तरीके से बढ़ाया जाए। चार, निर्यातकों को शुल्क के अलावा आने वाली बाधाओं (नान-टैरिफ बैरियर) से राहत दी जाए और पांच, नए संभावित निर्यात बाजार तलाशे जाएं।

इसमें कोई दो मत नहीं कि सरकार विश्व व्यापार की चुनौतियों के बीच निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है। पिछले महीने नई दिल्ली में ‘बिम्सटेक’ (बंगाल की खाड़ी के आसपास स्थित देशों का संगठन) में भारत ने नई जान फूंकने की कोशिश की। भारत लगातार द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने का प्रयास तथा ‘पड़ोस प्रथम’, ‘एक्ट ईस्ट’ और सागर नीति के तहत आपसी सहयोग बढ़ाने की पहल कर रहा है। इसी तरह रूस सहित मित्र देशों और विभिन्न विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं से कारोबार बढ़ाने की नई कवायद शुरू की है।

नए बजट में विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करते हुए आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने के प्रावधान किए गए हैं। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि विनिर्माण क्षेत्र देश से निर्यात और रोजगार सृजन दोनों में अहम योगदान देता है और इसके प्रोत्साहन के लिए इस बजट में खास खयाल रखा गया है। केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र की आपसी सहभागिता से ‘प्लग एंड प्ले’ सुविधा वाले औद्योगिक पार्क विकसित किए जाएंगे। उद्यमी को ऐसे औद्योगिक पार्क में जाकर सिर्फ उत्पादन शुरू करना होता है। नए बजट के प्रावधानों के तहत सौ शहरों में ‘प्लग एंड प्ले’ सुविधा वाले औद्योगिक क्लस्टर या पार्क विकसित होंगे। बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) का निर्यात बढ़ाने और आयात में कमी के मद्देनजर प्रावधान है। इसमें मशीनरी की खरीदारी के लिए ‘क्रेडिट गारंटी स्कीम’ शुरू की गई है। इसके तहत ‘सेल्फ फाइनेंसिंग गारंटी फंड’ बनाया जाएगा, जिसमें सौ करोड़ रुपए तक के कर्ज की गारंटी होगी।

निर्यात रफ्तार में आई सुस्ती

कल तक पूरी दुनिया में भारत का सेवा निर्यात तेज रफ्तार से बढ़ रहा था, लेकिन अब इसकी रफ्तार सुस्त हो गई है। इसे बढ़ाना जरूरी है। सरकार के ‘डिजिटल इंडिया मिशन’ से सेवा क्षेत्र को बढ़ावा मिला है। भारत ने डिजिटल माध्यम से मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं के वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवा निर्यात के क्षेत्र में भारत दुनिया में दूसरे और सांस्कृतिक तथा मनोरंजक सेवा निर्यात में छठे स्थान पर है। विश्व व्यापार संगठन की एक नई रपट के अनुसार अगर केवल डिजिटल माध्यम से जुड़ी सेवाओं के निर्यात के आधार पर मूल्यांकन करें तो इस क्षेत्र में भारत, जर्मनी और चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन और आयरलैंड के बाद चौथे क्रम पर आ गया है। भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे।

यह जरूरी है कि निर्यातकों के समक्ष शुल्क के अलावा गैर-शुल्क बाधाएं दूर की जाएं। अभी तक करीब दो सौ गैर-शुल्क बाधाएं चिह्नित की गई हैं। ये ऐसी बाधाएं हैं, जो कई देश अपने आर्थिक लक्ष्यों और विदेश व्यापार को ध्यान में रखकर निर्मित करते हैं। ये सामान्यतया अनुचित और आयातकों से विभेदकारी होती हैं। खासकर इनमें दस्तावेज से संबंधित प्रक्रियाएं, मौसमी शुल्क, टैरिफ कोटा, वस्तुओं की जांच और प्रमाणन, गुणवत्ता, आयात संबंधी पाबंदियां आदि शामिल हैं। ये बाधाएं मुख्य रूप से समुद्री उत्पाद, फार्मास्युटिकल्स, खनिज पदार्थ आदि से संबंधित हैं। आमतौर पर गैर-शुल्क बाधाओं को दूर करने में कई वर्ष लग जाते हैं। कई बार निर्यातकों को इनके बारे में पता भी नहीं होता। ऐसे में इस बात पर पूरा ध्यान देना होगा कि विदेशी व्यापारिक भागीदारों द्वारा लागू की गई गैर-शुल्क बाधाओं की चुनौती से निपटने के लिए भारत अपनी प्रणाली में उपयुक्त बदलाव करे।

जीएसटी दरों को कमी करने की जरूरत

यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार अतिशीघ्र गैर-शुल्क बाधाओं से संबंधित एक आनलाइन पोर्टल शुरू करे, जिससे निर्यातकों के समक्ष विभिन्न देशों में आने वाली चुनौतियों का पता लगाया जा सके। एक महत्त्वपूर्ण कदम यह भी उठाया जा सकता है कि चीन से गैर-शुल्क बाधाएं समाप्त कराने के लिए यूरोपीय देशों की तरह भारत भी चीनी आयात पर असाधारण आयात प्रतिबंध लगाने की रणनीति अपनाए। 12 जून को यूरोपीय आयोग ने चीन में बने इलेक्ट्रिक वाहनों पर 48 फीसद तक आयात शुल्क लगा दिया। पिछले कई वर्षों से यूरोपीय देश, चीन से आयात पर शुल्क की दरें 10 फीसद तक ही सीमित रखे हुए थे। इन देशों का मानना है कि चीन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर असाधारण आयात शुल्क बढ़ाने पर चीन उनके निर्यातकों पर जिस तरह के प्रतिबंध लगाता है, अब उन्हें न्यायसंगत बनाना पड़ेगा। चीन से आयात के खिलाफ गैर-शुल्क बाधाओं के साथ विभिन्न आयात नियंत्रण के प्रभावी कदम उठाए जाने से चीन दबाव में आकर भारतीय निर्यातकों पर लगाई जा रही गैर-शुल्क बाधाएं कम करने को बाध्य होगा। इसके अलावा लंबे समय से लटके ‘इनवर्टेड टैक्स स्ट्रक्चर’ और जीएसटी सुधार काफी जरूरी हैं। जीएसटी दरों में भी कमी करने की जरूरत है।

सरकार विश्व व्यापार की चुनौतियों के बीच निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है। पिछले महीने नई दिल्ली में ‘बिम्सटेक’ (बंगाल की खाड़ी के आसपास स्थित देशों का संगठन) में भारत ने नई जान फूंकने की कोशिश की। भारत लगातार द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने का प्रयास और ‘पड़ोस प्रथम’, ‘एक्ट ईस्ट’ तथा सागर नीति के तहत आपसी सहयोग बढ़ाने की पहल कर रहा है। इसी तरह रूस सहित मित्र देशों और विभिन्न विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं से कारोबार बढ़ाने की नई कवायद शुरू की है।