Election Commission: केंद्र सरकार ने राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि विधेयक- 2023 को पेश किया। बिल को राज्यसभा से पास कर दिया गया है। इस बिल के पास होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का चयन करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री सदस्य होंगे। इस बिल से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा नेता प्रतिपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मिलकर करते थे।
विपक्षी पार्टियों ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि इस बिल से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होंगे। विपक्ष ने कहा चयन पैनल में प्रभावी रूप से बीजेपी के दो सदस्य होंगे प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्री इससे चयन प्रक्रिया में बीजेपी की मनमानी चलेगी। बता दें कि अगले साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयुक्त अनुपम चंद्र रिटायर होने वाले हैं।
बिल में क्या है नया?
चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाली चयन समिति से सीजेआई को हटा दिया गया है। अब प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री चयन समिति के सदस्य होंगे। विधेयक के मुताबिक अगर लोकसभा में कोई नेता विपक्ष नहीं है तो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ही विपक्ष का नेता माना जाएगा। पेश किए गए विधेयक के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का वेतन और भत्ते अब कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे। अभी तक सीईसी और इसी को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर रखा गया था और वेतन भी सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर दिया जाता था।
संसद से विधेयक पारित होने के बाद वरीयता क्रम में सीईसी (मुख्य चुनाव आयुक्त)और ईसी (चुनाव आयुक्त) को राज्य मंत्री से नीचे का स्थान दिया जाएगा। अब सीईसी और ईसी को कैबिनेट सचिव के बराबर रखा जाएगा। पहले सीईसी और ईसी को सुप्रीम कोर्ट जज के बराबर रखा जाता था। विधेयक के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के पद पर उन लोगों की नियुक्ति की जाएगी जो भारत सरकार में सचिव पद के बराबर पद पर काम कर चुके होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला
इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की समिति की सलाह के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। यह फैसला चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की मांग करने वाली याचिकाओं पर दिया। अब तक कार्यपालिका को संविधान के अनुच्छेद 324(2) के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां करने की शक्ति प्राप्त थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा जब तक संसद में कोई नया कानून नहीं बन जाता है।
आदेश पारित करते समय, पीठ ने कहा कि चुनाव आयुक्तों के लिए चयन प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए कोई संसदीय कानून नहीं है इसलिए कोर्ट का आदेश संवैधानिक शून्यता को भरने के लिए है। जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार से चुनाव आयोग के लिए एक स्थायी सचिवालय बनाने पर विचार करने के लिए भी कहा था। कोर्ट ने कहा था कि सचिवालय बनाने का खर्च भारत के समेकित कोष से लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि “एक चुनाव आयोग जो आजाद और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित नहीं करता है, वह कानून के शासन की नींव के टूटने की गारंटी देता है।”
बिल पर क्यों हो रहा है विरोध?
विपक्ष की पार्टियों ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के आदेश को कमजोर करने और पलटने वाला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा। यह एक खतरनाक स्थिति है जो चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है। केजरीवाल ने केंद्र पर आरोप लगाया कि प्रस्तावित पैनल में दो बीजेपी सदस्य होंगे और एक कांग्रेस से इसलिए, जो भी चुनाव पैनल में चुना जाएगा वह सत्तारूढ़ पार्टी के लिए वफादार ही रहेगा। वहीं कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग को नरेंद्र मोदी के हाथों की कठपुतली बनाने का जबरदस्त प्रयास बताया। वेणुगोपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री को पक्षपाती चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की जरूरत क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है। हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे।
चुनाव आयोग पर लगा था आरोप
साल 2021 में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स और डेमोक्रेट्स ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि कैसे चुनाव आयोग आज अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग के कामकाज पर अक्सर सवाल उठते आ रहे है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी चुनाव आयोग पर खूब सवाल उठे थे क्योंकि बिना कोविड प्रोटोकॉल का पालन किए बंगाल और बिहार में धड़ल्ले से चुनावी रैलियां हो रही थीं। अप्रैल 2021 में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी ने चुनाव आयोग पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए एकमात्र जिम्मेदार चुनाव आयोग है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इसके लिए चुनाव आयोग पर मर्डर का केस चलाना चाहिए।