अप्रैल की 19 तारीख और मई की 23 तारीख के दरम्यान स्वास्थ्य और विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने दो बड़ी हस्तियों को पत्र लिखे। पहला पत्र उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को लिखा था, जो कि डॉ सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिख गए पत्र का जवाब था। और, दूसरा पत्र बाबा रामदेव को। दोनों ही पत्र प्राइवेट हो सकते थे लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने उन्हें सार्वजनिक कर दिया। दोनो ही बार कारण राजनैतिक थे।
डॉ सिंह को लिखे पत्र की मंशा कांग्रेस की फजीहत करना थी और बाबा रामदेव को लिखे पत्र की मंशा खुद को फजीहत से बचाने की थी। रामदेव को तो फोन पर वे अपनी बात समझा ही चुके थे। ऐसा उन्होंने पत्र में खुद ही बताया है। ज्यादा से ज्यादा एक फोन और कर देते, रामदेव एलोपैथी चिकित्सा और चिकित्सकों के खिलाफ बयान वापस ले लेते।
लेकिन, यहां मामला दूसरा था। उन्हें जनता के सामने साबित करना था कि सरकार और वे खुद भी रामदेव की बयानबाज़ी के खिलाफ हैं। आपको याद ही होगा कि जब रामदेव ने कोविड की ‘रामबाण’ दवा कोरोनिल किट लॉन्च की थी, मंच पर बाबा जी के साथ डॉ हर्षवर्धन और नितिन गडकरी मौजूद थे।
विडम्बना यह कि डॉ हर्षवर्धन खुद उसी उच्चशिक्षित एलोपैथिक चिकित्सक बिरादरी के हैं, जिनकी धज्जियां रामदेव ने अपने बयान में उड़ाई थीं। ऐसे में रामदेव को फटकार लगाता एक सार्वजनिक पत्र तो बनता ही था! सो, पत्र लिखा गया।
पत्र कटु है लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य मंत्री बाबा के साथ अपने मधुर रिश्ते भूल नहीं पाते। पत्र की शुरुआत ही अत्यंत आदर व्यक्त करते हुए की गई है। हालांकि इसे सामान्य शिष्टाचार भी करार दिया जा सकता है क्योंकि यह शिष्टाचार डॉ मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में भी मौजूद है।
पत्र की शुरुआत इस तरह हैः
आदरणीय बाबा राम देव जी
आशा है आप स्वस्थ एवं सानंद होंगे
पत्र का अंत भी समझने लायक है
सादर अभिवादन के साथ
-आपका
(हस्ताक्षर) हर्षवर्धन
पत्र के बीच में जब डॉ हर्षवर्धन आइंदा से सोच-समझ कर बोलने की ताक़ीद करते हैं तो उसकी शुरुआत भी इन शब्दों के साथ करते हैःं
बाबा रामदेव जी आप सार्वजनिक जीवन में रहने वाली शख्सियतों में एक हैं….
यही नहीं बाबा से बयान वापस लेने के लिए भी ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि आप तुरंत या 24 घंटे में वक्तव्य वापस करें। उलटे, बड़े आदर से गुजारिश की गई हैः
…आशा है आप इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए और विश्व भर में कोरोना योद्धाओं का सम्मान करते हुए अपना आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य पूर्ण रूप से वापस लेंगे
।
अब आते हैं डॉ मनमोहन सिंह को लिखे पत्र पर। यह पत्र अंग्रेजी में है और भाषा के फर्क के बावजूद पत्र की शुरुआत कमोबेश बाबा रामदेव जैसे आदर के साथ ही की गई है।
Respected Dr Manmohan Singh ji
Greetings, hope my letter finds you in good health
इसका तर्जुमा इस प्रकार हो सकता हैः
आदरणीय डॉ मनमोहन सिंह जी
अभिवादन, आशा करता हूं कि आप स्वस्थ होंगे
पत्र में आगे की भाषा भी संयत है लेकिन उसका मूल भाव उलाहना देना और पूर्व प्रधानमंत्री के सुझावों को मज़ाक में उड़ाने का ही है।
उल्लेखनीय है कि मनमोहन सिंह ने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोविड संकट से निपटने के लिए पांच सुझाव दिए थे। अब जरा जवाब के अंश देखिए
…आपने वैक्सीनेशन का जो महत्व बताया है, वह हम मानते हैं, तभी तो हमने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान छेड़ ऱखा है..हम 10,11, 12 करोड़ डोज़ लगाने वाले सबसे तेज़ मुल्क बन चुके हैं।
…आपका सुझाव गलत नहीं है…लेकिन आपकी पार्टी के जूनियर मेंबरों को भी आपका सुझाव मानना चाहिए।
यही नहीं जिस ट्वीट के साथ डॉ हर्षवर्धन ने चिट्ठी चस्पा की है उसमें भी तंज किया गया है। उनको उनका प्रसिद्ध वाक्य याद दिलाकर कहा गया है कि अगर आपकी सृजनात्मक और कीमती सलाह का पालन आपकी पार्टी के नेता भी मानें तो इतिहास आपके साथ नरमी के साथ पेश आएगा। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने कहा था कि हिस्ट्री विल बी काइंडर टु मी दैन द कंटेम्परेरी मीडिया (मौजूदा मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे साथ रहम बरतेगा)। स्वास्थ्य मंत्री ने इसी बयान से खेला है।
History shall be kinder to you Dr Manmohan Singh ji if your offer of ‘constructive cooperation’ and valuable advice was followed by your @INCIndia leaders as well in such extraordinary times !
Here’s my reply to your letter to Hon’ble PM Sh @narendramodi ji @PMOIndia pic.twitter.com/IJcz3aL2mo
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) April 19, 2021
एक और जगह लिखते हैः यह बड़ी दुखद बात है कि आप तो वैक्सीन का महत्व जानते हैं, लेकिन कांग्रस के सीनियर लोग ही नहीं, सरकारें भी, ऐसा लगता है कि आपका मत नहीं मानते।
पिछला पैरा अगर दुखद शब्द से शुरू हुआ तो अगला शॉकिंग से। लिखा गया हैः यह बात आहत करती है कि आपकी पार्टी के नेताओं ने आज तक वैक्सीन के वैज्ञानिकों और उसे बनाने वालों के प्रति कृतज्ञता नहीं व्यक्त की है।
पत्र में जहां कहीं मौका मिला है स्वास्थ्य मंत्री ने इसी तरह से उलाहने से भरी बातें की हैं। अंत में वे यहां तक कहते हैं कि जिन लोगों ने आपका पत्र लिखा या सलाह दी, उन्होंने सूचनाओं को लेकर आपको गुमराह किया है।
स्वास्थ्य मंत्री की गुगली अंत तक जारी रहती है। लिखते हैं कि भले ही आपके पत्र में तथ्यात्मक दोष हों, हम देश के प्रति आपकी चिंता को समझते हैं और उसे साझा करते हैं।
अंग्रेजी में लिखे इस पत्र के अंत में मनमोहन और उनके परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण की कामना तो की गई है लेकिन हस्ताक्षर से पहले योर्ज़ सिंसियरली जैसा औपचारिक और सामान्य शिष्टाचार भी नहीं बरता गया है। सीधे हस्ताक्षर कर दिए गए हैं। जबकि रामदेव के पत्र का अंत इस तरह हैः
सादर अभिवादन के साथ
आपका
हर्षवर्धन