CBI Supreme Court: सीबीआई ने फर्जी वकालतनामा मामले में आठ वकीलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। जांच एजेंसी ने यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद की है। सीबीआई के एफआईआर में कहा गया है कि इस मामले में झूठे प्रतिरुपण, कोर्ट में झूठे दावे, जालसाजी-धोखाधड़ी समेत अन्य अपराध में शामिल होने का संदेह है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटनाक्रम जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले के बाद सामने आया है। जिसमें शीर्ष अदालत ने सीबीआई को एक ऐसे मामले की जांच करने का आदेश दिया था, जिसमें एक वादी ने शीर्ष अदालत के समक्ष विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने से इनकार कर दिया था और दावा किया था कि उसने कोर्ट में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए कभी किसी वकील को नियुक्त नहीं किया था।

पीठ ने हाल ही में यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की धोखाधड़ी में लिप्त वकीलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा संबंधित एसएलपी पर उत्तर प्रदेश राज्य को नोटिस जारी करने के एक महीने से अधिक समय बाद याचिकाकर्ता भगवान सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय रजिस्ट्री को एक पत्र लिखकर दावा किया कि उन्होंने ऐसा कोई मामला दायर नहीं किया है।

इस मामले के कारण पीठ ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) को सख्त निर्देश जारी किए कि अब उन्हें केवल उन वकीलों की उपस्थिति दर्ज करनी होगी जो किसी विशेष दिन उस मामले में उपस्थित होने और बहस करने के लिए अधिकृत हैं।

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कोर्ट ने कहा कि यदि बहस करने वाले अधिवक्ता के नाम में कोई परिवर्तन होता है, तो संबंधित एओआर का यह कर्तव्य होगा कि वह संबंधित कोर्ट मास्टर को अग्रिम रूप से या सुनवाई के समय सूचित करे।

सीबीआई की प्रारंभिक जांच के बाद दर्ज की गई एफआईआर में केंद्रीय एजेंसी ने दर्ज किया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान सिंह ने कभी भी उन वकीलों से मुलाकात नहीं की, जिन्होंने अदालत में उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा किया था।

प्राथमिकी में आठ वकीलों सहित दस लोगों पर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी तथा इलाहाबाद हाई कोर्ट में विविध आवेदन दायर करने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया है। इन 10 में से 3 वकील सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और 5 इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।

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