देश का युवा आज नौकरी मांग रहा है, ग्रेजुएशन करने के बाद, तमाम डिग्री लेने के बाद भी जब वो बेरोजगार रह जाता है, उसके मन में भी कई सवाल कौंधते हैं। देश की बेरोजगारी दर भी इस बात की तस्दीक करती है कि लोग ज्यादा हैं, लेकिन उतनी नौकरियां ही इस समय मौजूद नहीं। लेकिन नौकरी ना होने का एक बहुत बड़ा कारण कौशल है, अंग्रेजी में बोलें तो स्किल। आज के समय में नौकरी उसी शख्स को मिल रही है जिसके पास कोई विशेष स्किल है, जो किसी एक काम में ज्यादा ही बेहतर काम करता है।

आखिर कुछ नेता जातिगत जनगणना क्यों चाहते?

अब जरूरत स्किल की है, लेकिन देश में बात चल रही है जाति की, नेता सिर्फ मंथन कर रहे हैं जातिगत जनगणना पर। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो इसे चुनावी मुद्दा बना लिया है, वे मानकर चल रहे हैं कि जब तक जातिगत जनगणना नहीं हो जाती, देश का असल विकास संभव नहीं, हर किसी को न्याय मिलना मुमकिन नहीं। अब जातिगत जनगणना की बात करने वाले लोगों का तर्क रहता है कि जब तक यह ना पता चले कि कौन सी जाति के कितने लोग हैं, उन्हें ना आरक्षण का सही लाभ मिल सकता है और ना ही सरकार की दूसरी योजनाओं का।

क्या नौकरियां भी जाति के आधार पर?

लेकिन जातिगत जनगणना की बात करने वाले यह भूल रहे हैं कि कॉरपोरेट दुनिया में युवाओं को नौकरी इस आधार पर नहीं मिल रही कि वे कौन सी जाति से आते हैं। वहां कोई यह नहीं पूछ रहा है कि आप दलित हैं तो सिर्फ आप ही को हायर किया जाएगा। उन लोगों के लिए स्किल ही सबकुछ है, अगर कुछ अलग करने का टैलेंट है, तभी हायरिंग हो रही है। उदाहरण के लिए आज के समय में देश की कई ऐसी कंपनियां सामने आ रही हैं कि जिनके लिए AI नॉलेज बहुत जरूरी है, जब तक वो नहीं, किसी की हायरिंग नहीं हो रही।

जातिगत जनगणना के पक्ष में RSS?

आंध्र प्रदेश का स्किल सेंसस क्यों जरूरी?

अब इसी बात को आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने बखूबी समझ लिया है। जो आज तक देश में कभी नहीं हुआ, वो प्रैक्टिस इस राज्य में शुरू हुई है। इस प्रैक्टिस का नाम है- स्किल सेंसस, इसे कौशल जनगणना भी कहा जा सकता है। अभी राज्य सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत इसे शुरू किया है, 9 महीने के अंदर में इस प्रक्रिया को पूरा करने का टारगेट है। इस सेंसस के जरिए आंध्र प्रदेश की 3.5 करोड़ वर्किंग पॉपुलेशन को कवर किया जाएगा, उन सभी की उम्र 15 से 59 साल रहने वाली है। बड़ी बात यह है कि देश में अभी तक किसी भी राज्य ने ऐसा नहीं किया है, चर्चा तक शुरू नहीं हुई है।

जातिगत जनगणना का विकल्प स्किल सेंसस?

बड़ी बात यह है कि टीडीपी, एनडीए का हिस्सा है और इस समय जातिगतन जनगणका दबाव काफी ज्यादा। बिहार में तो सीएम नीतीश कुमार जातिगत जनगणना करवा चुके हैं। कुछ दूसरे राज्यों से भी मांग उठ रही है, उस बीच नायडू का यह अलग विकल्प एनडीए को भी नई संजीवनी दे सकता है। अगर स्किल सेंसर हिट हो जाता है, युवा इससे जुड़ाव महसूस करते हैं, बीजेपी से एक बड़ा प्रेशर हट जाएगा। वैसे जिस स्किल सेंसस की इतनी मांग हो रही है, उसका आधार समझना भी जरूरी है। असल में भारत में युवा आबादी तो सबसे ज्यादा है, लेकिन इसी देश में स्किल सेट काफी कम चल रहा है। अब यह बात भी कोई सिर्फ धारणा नहीं है, तमाम रिपोर्ट इस बात का हवाला देती हैं।

स्किल के मामले में पाकिस्तान से भी पीछे भारत

ग्लोबल स्किल इंडेक्स 2024 के आंकड़े बताते हैं कि भारत इस समय 87वें स्थान पर खड़ा है। यह बताने के लिए काफी है कि स्किल के मामले में अभी कितनी बड़ी खाई को पाटने की जरूरत है। वैसे जो देश टॉप पर हैं, उनका जिक्र करना भी जरूरी है। ग्लोबल स्किल इंडेक्स में स्विट्जरलैंड पहले स्थान पर आता है, जापान दूसरे नंबर पर, जर्मनी तीसरे पर और नीदरलैंड चौथे पर। फ्रांस ने भी टॉप पांच में जगह बनाई है। हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान और श्रीलंका भी स्किल के मामले में भारत से आगे चल रहे हैं। एक तरफ पाकिस्तान को इस रिपोर्ट में 84वां स्थान दिया गया है तो वहीं श्रीलंका 86वें पायदान पर खड़ा है।

टैलेंट के मामले में भी काफी पीछे भारत

अब अगर सिर्फ स्किल सेट में भारत पिछड़ता तो सुधार की ज्यादा गुंजाइश रहती है, बड़ी बात यह है कि टैलेंट इंडेक्स में भी इस समय देश बुरी तरह पिछड़ रहा है। आलम यह चल रहा है कि इस मामले में इंडिया की रैकिंग 103 दर्ज की गई है। यहां भी पहले नंबर पर स्विट्जरलैंड, दूसरे पर सिंगापुर, तीसरे पर अमेरिका, चौथे पर डेनमार्क और पांचवे पर नीदरलैंड। अब यह आंकड़े ही बता रहे हैं कि भारत को जातियों से ज्यादा स्किल डेवलप करने की जरूरत है। जातिगत जनगणना कर तो किसी को सिर्फ सरकारी योजना का फायदा मिल सकता है, लेकिन अगर स्किल हासिल कर लिए गए तो नौकरी भी मिलेगी, जीवन स्तर भी सुधरेगा और रोजगार की स्थिति भी बेहतर हो जाएगी।

कॉलेज से निकला हर दो में से एक छात्र बेरोजगार

एक समझने वाली बात यह है कि आरक्षण के जरिए अगर कोई पिछड़े समाज का शख्स नौकरी हासिल कर भी लेता है, एक समय के बाद उसे भी कोई ना कोई स्किल सीखना ही पड़ेगा। बिना उसके नौकरी में टिकना ही मुश्किल है। ऐसे में अगर शुरुआत से ही इस पर फोकस रहेगा, अगर शुरुआत से ही इस कमी को दूर करने की कवायद रहेगी, इससे हर वर्ग, हर जाति का फायदा है। वैसे अब अगर सिर्फ अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ही भारत की ऐसी हालत की पुष्टि करें तो शक हो सकता है। ऐसे में भारत का इकोनॉमिक सर्वे समझना भी जरूरी हो जाता है।

50% से ज्यादा युवा योग्य ही नहीं

इस साल का इकोनॉमिक सर्वे कहता है कि कॉलेज के बाद दो में से एक छात्र को नौकरी ही नहीं मिल पाती है। इसके ऊपर वर्तमान में 51 फीसदी से ज्यादा बड़ी युवा की ऐसी आबादी जिसे नौकरी के लिए योग्य नहीं माना जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता चला गया है, ऐसे में स्किल्स की कमी ही रोजगार में असल बाधा बन रही है। लेकिन इस सब के बावजूद भी कई नेताओं को इस समय रोजगार से ज्यादा जाति की चिंता सता रही है। अगर एक पार्टी को हिंदू वोट नजर आ रहा है तो दूसरे को हिंदू धर्म के अंदर की तमाम जातियां। लेकिन रोजगार पैदा करने के असल समाधान पर किसी की नजर नहीं।

नायडू ने हिंदुओं को नहीं बांटा, युवा का सोचा

लेकिन जानकार मानते हैं कि सीएम चंद्रबाबू नायडू का स्किल सेंसस वाला कदम उस कमी को पूरा कर सकता है। बड़ी बात यह है कि इस कदम को राजनीति से ऊपर उठकर देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि आंध्र प्रदेश में 90 फीसदी के करीब हिंदू हैं। नायडू चाहते तो आसानी से इस हिंदू वोट पर फोकस करते, इसे तमाम जातियों में बांटते और दूसरे नेताओं की तरफ जातिगत जनगणना की मांग करते। लेकिन उन्होंने धर्म-जाति से ऊपर उठकर स्किल को तवज्जो दी और देश में पहली बार स्किल सेंसस का आगाज हुआ।

जातिगत जनगणना की अपनी मजबूरी

वैसे जिस तरह से अब स्किल सेंसस की जरूरत लग रही है, देश की राजनीति ऐसी रही है कि यहां पर एक जमाना ऐसा था जब कई क्षेत्रीय पार्टियों का जन्म ही जातिगत राजनीति के आधार पर हुआ। यह 1980 का दशक था जब निचली जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की बात हुई। यह अलग बात है कि मंडल कमीशन 1990 में जाकर लागू हुआ और उसने देश की राजनीति हमेशा के लिए बदल दी।

बीजेपी के हिंदुत्व की काट जातिगत जनगणना?

अब विपक्षी पार्टियों को लगता है कि जातिगत जनगणना बीजेपी के हिंदुत्व का काट है। अगर हिंदू को ही बांट दिया गया तो बीजेपी के लिए अपनी सियासत करना मुश्किल हो जाएगा। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उसका असर भी देखने को मिला है। लेकिन सवाल वही है- क्या देश के युवा को भी उस राजनीति में झोंक दिया जाए, क्या उसे जाति का बैच थमाकर नौकरी लेने के लिए भेज दिया जाए? क्या योग्यता के आधार पर, स्किल के आधार पर उसे नौकरी नहीं मिलनी चाहिए? इस बहस का असल निष्कर्ष ही देश का भविष्य आने वाले सालों में तय करने वाला है।