कंपनियों के साथ साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी ऐसी कोशिशें हो रही हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है। उसका मकसद 2070 तक ‘कार्बन न्यूट्रल’ हो जाने का है, यानी देश में उतनी ही कार्बन हाउस गैसें उत्सर्जित हों जितनी सोखी जा सकें। धीरे-धीरे देश में कार्बन क्रेडिट की मांग और बिक्री बढ़ रही है।

भारत ने हाल में ऊर्जा संरक्षण कानून पारित किया है, जिसमें सरकारों और उद्योगों को कार्बन क्रेडिट कमाने और खर्चने के नियम बनाने का प्रावधान किया गया है। इसकी शुरुआत स्वेच्छा के आधार पर होगी। भारत में हरित ऊर्जा के उत्पादन से जुड़ीं कंपनियों ने अक्तूबर में मिलकर एक ‘कार्बन बाजार’ बनाने पर काम शुरू किया है, जिसका मकसद भारत में ऊर्जा उत्पादन को जीवाश्म से हरित स्रोतों की ओर ले जाना है और सरकार के साथ मिलकर बाजार के लिए दिशा-निर्देश तय करना है। ऐसी कंपनियों के संगठन – ‘कार्बन मार्केट्स एसोसिएशन आफ इंडिया’ के अध्यक्ष मनीष दबकारा के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय चलन में बदलाव से भारत में भी बदलाव आएगा।

‘कार्बन क्रेडिट’ के कारोबार में कुछ कंपनियां खड़ी हुई हैं। क्लाइम्स, लोसूट और वोस जैसे उद्यम उन भारतीयों की जरूरत पूरी कर रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन को लेकर सजग हैं और इसे रोकने में अपनी तरफ से कोई योगदान देना चाहते हैं। ऐसे लोग यात्राओं, शादियों और आनलाइन खरीदारी में होने वाले कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना चाहते हैं।

वैश्विक स्तर पर कार्बन क्रेडिट का व्यापार दो अरब डालर तक पहुंच चुका है और लगातार तेजी से बढ़ रहा है। ‘ईकोसिस्टम मार्केटप्लेसह्ण के मुताबिक 2021 का व्यापार 2020 के मुकाबले चार गुना ज्यादा रहा था, जब 50 करोड़ कार्बन क्रेडिट बिके थे। ये कार्बन क्रेडिट 50 करोड़ टन कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन के बराबर हैं। पर्यावरण के अनुकूल काम करने वाली कपड़ा कंपनी टैमरिंड चटनी ने अपने कार्बन उत्सर्जन के बराबर धन दान करने की योजना बनाई थी। तब मुश्किलें आईं।

कंपनी की संस्थापक 29 साल की तन्वी भीखचंदानी के मुताबिक, एक साल तक शोध करने के बाद हमने तो उम्मीद ही छोड़ दी क्योंकि कोई पारदर्शी विकल्प नहीं मिला था। हम यह जानना चाहते थे कि हमारा धन कहां जा रहा है, लेकिन सब कुछ ब्लैक होल जैसा था। ज्यादातर परियोजनाएं ऐसी थीं, जिनमें कार्बन आफसेट को एक हल की तरह पेश किया गया था और उसके स्रोत की बात ही नहीं थी।

स्वयंसेवी कार्बन बाजारों को लोगों का भरोसा जीतने में मुश्किल हो रही है। पर्यावरणविद कहते हैं कि कार्बन क्रेडिट खरीदना अपने उत्सर्जन की जिम्मेदारी छोड़ने का आसान तरीका है क्योंकि आपके उत्सर्जन के लिए कोई और भुगतान कर रहा है। कार्बन मार्केट वाच नामक संस्था के संचार निदेशक खालिद दियाब कहते हैं, एक टन उत्सर्जित कार्बन का असर बचाए गए या सोख लिए गए गए एक टन कार्बन से हमेशा ज्यादा होगा। यह एक वजह है कि कार्बन क्रेडिट को कार्बन आफसेट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जलवायु के लिए काम करना अच्छी बात है, लेकिन कार्बन क्रेडिट खरीदने को जेल से निकलने की कीमत चुकाने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

कार्बन क्रेडिट के बाजार के बारे में दियाब कहते हैं कि यह अनियमित है और कार्बन क्रेडिट की विश्वसनीयता तय करने की पूरी जिम्मेदारी ग्राहकों पर छोड़ दी गई है, जो एक बड़ी चुनौती है क्योंकि ज्यादातर ग्राहक विशेषज्ञ नहीं हैं। वह कहते हैं, इससे निगमों को ग्रीनवाशिंग का ताकतवर हथियार मिल जाता है। ग्रीनवाशिंग उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसमें कार्बन उत्सर्जित कर बड़ी कंपनियां उसके बराबर कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं।

कैसे होती है खरीद-बिक्री

‘कार्बन क्रेडिट’ सही मायने में कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने का प्रयास है जिसे प्रोत्साहित करने के लिए धन से जोड़ दिया गया है। भारत और चीन सहित कुछ अन्य एशियाई देश जो वर्तमान में विकासशील अवस्था में हैं, उन्हें इसका लाभ मिलता है क्योंकि वे कोई भी उद्योग धंधा स्थापित करने के लिए ‘यूनाईटेड नेशंस फ्रेम वर्क कनेक्शन आन क्लाइमेट चेंज’ से संपर्क कर उसके मानदंडों के अनुरूप निर्धारित कार्बन उत्सर्जन स्तर नियंत्रित कर सकते हैं।

यदि आप उस निर्धारित स्तर से नीचे, कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं तो निर्धारित स्तर व आपके द्वारा उत्सर्जित कार्बन के बीच का अंतर आपकी कार्बन क्रेडिट कहलाएगा। इस कार्बन क्रेडिट को दो कंपनियों के बीच अदला बदली या अंतरराष्ट्रीय बाजार के प्रचलित मूल्यों के हिसाब से बेचा भी जा सकता है, कर्ज पर भी लिया जा सकता है।