Other Backward Class Certificate: सुप्रीम कोर्ट के सामने एक बहुत बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि क्या OBC वर्ग से आने वाली कोई महिला अपने बच्चों को भी OBC सर्टिफिकेट दिलवा सकती है? अदालत में इस मामले में जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच सुनवाई कर रही है। अदालत ने OBC सर्टिफिकेट जारी करने के संबंध में जो मौजूदा दिशा-निर्देश हैं, उन्हें लेकर चिंता जताई और कहा कि मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी। मूल सवाल वही है कि क्या मां अगर OBC समुदाय से है तो बच्चों को भी इस वर्ग का सर्टिफिकेट मिलेगा?

आइए, आपको यह पूरा मामला बताते हैं।

इस मामले में OBC वर्ग से आने वाली महिला ने दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के मौजूदा नियमों को चुनौती दी है और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। महिला का कहना है कि क्योंकि वह OBC वर्ग से आती हैं इसलिए उनके बच्चे को भी OBC वर्ग का ही माना जाना चाहिए मतलब कि उसे OBC सर्टिफिकेट मिलना चाहिए।

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मौजूदा नियम क्या कहते हैं?

मौजूदा नियमों के मुताबिक, पिता का या उनके किसी ब्लड रिलेशन वाले शख्स का ही OBC सर्टिफिकेट एप्लिकेशन फ़ॉर्म में लगाना जरूरी है लेकिन महिला का कहना है कि यह नियम संविधान में दिए गए समानता (अनुच्छेद 14) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) के अधिकार का उल्लंघन करता है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से अदालत में पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसडी संजय ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2012 में दिए गए एक फैसले का जिक्र किया। यह फैसला Rameshbhai Dabhai Naika vs. State of Gujarat मामले में था। यह मामला अंतरजातीय विवाह से पैदा हुए बच्चों की जाति को लेकर था, विशेष रूप से एससी/एसटी/आदिवासी और नॉन एससी/एसटी कपल के बच्चों से।

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सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि हर मामले में हालात अलग-अलग होते हैं और उसका आकलन उसके तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए लेकिन आमतौर पर सिद्धांत यह है कि इंटर कास्ट शादियों से पैदा हुए बच्चे की जाति वही मानी जाएगी जो उसके पिता की जाति होगी।

अदालत ने कहा था कि इंटरकास्ट मैरिज या आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच जब शादी होती है तो यह माना जाता है कि बच्चों की जाति वही है जो उसके पिता की जाति है। ऐसा अनुमान उन मामलों में ज्यादा मजबूत होता है जहां पर इंटर कास्ट मैरिज में या आदिवासी और गैर आदिवासी मामलों की शादी में पति ऊंची जाति का हो।

अदालत ने कहा था कि अपवाद यह है कि इस तरह के विवाह के मामलों में अगर दंपति अलग हो जाते हैं या तलाक ले लेते हैं और बच्चे का पालन-पोषण अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की मां करती है तो बच्चा मां की जाति को अपना सकता है। बशर्ते कि मां ने अकेले उसकी देखभाल की हो।

Rumy Chowdhury वाला मामला

इस तरह के मामलों में अदालतों ने अब तक जाति को केवल पिता के पक्ष से जोड़ने वाले नियमों पर ही विचार किया है ऐसे मामलों में Rumy Chowdhury v. The Department of Revenue, Government of NCT Delhi (2019), Smti. Moonsoon Barkakoti v. The State Of Assam (2024) मामले प्रमुख हैं।

Rumy Chowdhury v. The Department of Revenue, Government of NCT Delhi (2019) के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने मां (एयरफोर्स में अफसर थीं और SC समुदाय से थीं) की याचिका को खारिज कर दिया था। महिला का पति अगड़ी जाति से था और महिला ने अपने दो बेटों को खुद ही पाला था।

हाई कोर्ट ने आदेश को रखा था बरकरार

महिला का कहना था कि उसके बच्चे भी SC समुदाय के सर्टिफिकेट के हकदार हैं। कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने SC समुदाय के सर्टिफिकेट के लिए महिला के अनुरोध को खारिज कर दिया था और हाई कोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा था। 2020 में इसी मामले को जब चुनौती दी गई तो दिल्ली हाई कोर्ट ने दोहराया था कि की बच्चों को मां की जाति विरासत में प्राप्त करने के लिए यह साबित करना होगा कि वे उसी समुदाय में पले-बढ़े और उन्होंने भेदभाव का सामना किया है।

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