नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की बिहार के वित्तीय वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ियां सामने आई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार सरकार ने 18 विभागों में पूरे वित्त वर्ष निर्धारित बजट की 50% राशि खर्च नहीं की थी। लेकिन वित्त वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में अपना खजाना खोल दिया और पूरे साल से ज्यादा राशि एक महीने में ही खर्च कर दी। इनमें से 5 विभाग तो ऐसे थे, जिनके लिए पूरे वित्त वर्ष में सिर्फ 846 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई। लेकिन मार्च में 7955 (करीब 90%) से ज्यादा राशि खर्च कर दी गई।

बिहार बजट मैनुअल के रूल 113 के मुताबिक, वित्त वर्ष के खत्म होने के समय एक साथ बड़ी राशि खर्च करना आर्थिक नियमितता के उल्लंघन का मामला है और सरकार को इससे बचना चाहिए। हालांकि, सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा होता है कि बिहार में यह आर्थिक गड़बड़ी काफी बड़े स्तर पर हुई। जिन पांच विभागों में मार्च में 80% से ज्यादा राशि खर्च हुई, उनमें पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग, खाद्य और उपभोक्ता सुरक्षा, सूचना और जनसंचार, ग्रामीण विकास और अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग शामिल हैं।

मार्च में किस विभाग में बजट का कितना हिस्सा खर्च?: पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग के लिए पूरे वित्त वर्ष में 1225.06 करोड़ खर्च हुआ, इसका 94 फीसदी हिस्सा यानी 1153 करोड़ रुपए मार्च में ही खर्च हुए। इसके अलावा खाद्य और उपभोक्ता सुरक्षा विभाग के लिए साल में 1212.49 करोड़ खर्च हुए। इसमें से 1160.02 करोड़ की राशि मार्च में खर्च की गई। इसी तरह सूचना एवं जनसंचार विभाग की 86.13%, ग्रामीण विकास विभाग की 88.92% और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए बजट की 87.69% राशि मार्च में खर्च हुई।

इसके अलावा राज्यपाल से जुड़े सचिवालय, विजिलेंस, बिहार हाईकोर्ट, संसदीय कार्य विभाग, विधायिका, बिहार लोक सेवा आयोग और टूरिज्म अन्य ऐसे विभाग रहे, जहां निर्धारित बजट का एक बड़ा हिस्सा (करीब 75%) वित्त वर्ष के अंतिम महीने में ही खर्च हुआ।

गौरतलब है कि बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू-राजद की गठबंधन सरकार थी। दोनों पार्टियों ने जुलाई 2017 तक साथ सरकार चलाई। इसके बाद नीतीश ने राजद से गठबंधन तोड़ लिया था और राज्य में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बना ली थी। यानी बजट में यह गड़बड़ियां जदयू-राजद सरकार के वक्त थीं। हालांकि, तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे।