नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ उत्तर पूर्वी राज्यों असम, त्रिपुरा में हिंसा भड़क गई है। इस हिंसा में भारी नुकसान और दो प्रदर्शनकारियों की जान गंवाने के बाद सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं में इस बात की कानाफूसी है कि बिल को लेकर सरकार से भूल हो गई है। दरअसल केन्द्र सरकार द्वारा स्थिति की सही समीक्षा नहीं की गई और बिना पूरी तैयारी, कमजोर कम्यूनिकेशन और कई फैसलों में गलती के चलते हिंसा के हालात बने। इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा कानून को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ जो प्रतिक्रिया दी, उसके कारण भी हालात बिगड़े।

पार्टी नेताओं के अनुसार, सरकार को यह भी उम्मीद नहीं थी कि इतने बड़े स्तर पर बिल का विरोध होगा। हालांकि सरकार से जुड़े सूत्रों के अनुसार, स्थिति जल्द ही नियंत्रण में आ जाएगी और अगले 24-48 घंटों में स्थिति काबू में आ जाएगी।

हिंसा भड़कने के बाद असम सरकार ने गुरूवार को असम के एडिशनल डीजीपी मुकेश अग्रवाल का तबादला कर दिया और उनके स्थान पर असम कैडर के अधिकारी जीपी सिंह को नियुक्त किया गया है। जीपी सिंह एनआईए में भी बतौर आईजी नियुक्त रह चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, हिंसा की आशंका को देखते हुए सरकार ने एक हफ्ते पहले ही केन्द्रीय सुरक्षा बलों की 50 कंपनियों को जम्मू कश्मीर से हटाकर असम भेजा था।

वहीं सिलचर से भाजपा सासंद राजदीप रॉय ने आरोप लगाया है कि कुछ असामाजिक तत्वों और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेताओं पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। भाजपा सांसद के अनुसार, ना ही पार्टी और ना ही सरकार को इस बात की उम्मीद थी कि ये असामाजिक तत्व इस तरह की परेशानी खड़ी कर सकते हैं।

भाजपा सांसद ने बताया कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पेश करने से पहले 160 संगठनों और 600-700 लोगों से मुलाकात कर इस बारे में बातचीत की थी। इसके बावजूद इतने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शनों की हमें कतई उम्मीद नहीं थी।

अमित शाह ने गुरूवार को त्रिपुरा के कई संगठनों और प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इनमें नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रही ज्वाइंट मूवमेंट के सदस्य भी शामिल थे। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, अमित शाह ने बातचीत के दौरान बिल को लेकर उनकी चिंताएं दूर की। अमित शाह 15 दिसंबर को शिलॉन्ग भी जा सकते हैं।