Gujarat Assembly Election And Congress Campaign: गुजरात चुनाव को लेकर हो रहे तमाम तरह के सर्वे और उनके नतीजे विभिन्न दलों के बारे में लोगों की सोच को दिखा रहे हैं, लेकिन अभी भी यह मुद्दा बना हुआ है कि यह चुनाव दो दलों के बीच है या त्रिकोणीय मुकाबला होगा। इस बारे में एबीपी न्यूज चैनल और सी-वोटर के सर्वे पर सी-वोटर के एडिटर खालिद अख्तर का कहना है कि नतीजे भले ही यह दिखा रहे हैं कि मुकाबला केवल भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच दिख रहा हो, लेकिन कांग्रेंस को नजरअंदाज करना सही नहीं होगा।

एबीपी चैनल पर डिबेट में इस बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, “सर्वे में जो नतीजे दिख रहे हैं, उसके मुताबिक सियासत में बदलाव आ रहा है और वह है बाईपोलर से ट्राइंग्यूलर होना। भाजपा और आम आदमी पार्टी ही वहां सबसे ज्यादा आक्रामक कैंपेन कर रही हैं। इसकी वजह से वहां के डेटा में लड़ाई आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच दिख रही है। यह कहना सही नहीं है कि कांग्रेस वहां पर है ही नहीं या खत्म हो रही है।”

कहा, “2017 के चुनाव से तुलना किया जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस की टॉप लीडरशिप राहुल गांधी राज्य के तीनों छोरों पर चार-चार दिन कैंपेनिंग की थी। यानी वह 12 दिन वहां दिए थे। इसका नतीजा यह हुआ था कि जबसे वहां भाजपा की सरकार है, पहली बार भाजपा की सीटें कम होकर 100 से भी नीचे आ गई थीं। इस बारे अभी तक वह वहां नहीं गए हैं।”

खालिद अख्तर ने कहा, “हमारे सर्वे के मुताबिक वहां पर वोट को खींचने की सबसे अधिक कुव्वत राहुल गांधी की है। इस बार वह अपना सबसे बड़ा पोलिटिकल एंबीशस प्रोग्राम चला रहे हैं, लेकिन गुजरात नहीं जा रहे हैं। गुजरात में उनकी पैन स्टेट लीडरशिप नहीं है। ना ही इनकी टॉप लीडरशिप में से कोई जमीन पर उस तरह का एग्रेसिव कैंपेन कर रहा है, जैसा बीजेपी और आम आदमी पार्टी कर रही है।”

कांग्रेस के काफी MLA होने के बाद भी पार्टी जमीन पर वहां नहीं दिख रही

उनका कहना है कि पिछले बार हुए पांच राज्यों के चुनावों के जो नतीजे आए थे, उनमें चार राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी। अगले दिन पीएम मोदी गुजरात में सभा कर रहे थे। तब से अब तक तकरीबन वह आठ बार वहां जा चुके हैं और अभी वह तीन दिन वहीं थे और केजरीवाल वहां पर लगातार एग्रेसिव हैं और मीटिंग कर रहे हैं। इसकी तुलना में कांग्रेस का कोई टॉप लीडरशिप वहां नहीं दिख रहा है, जो वहां जाकर एग्रेसिव प्रचार कर रहा हो। कांग्रेस पार्टी के वहां 77 विधायक थे, उनमें से कुछ दूसरी पार्टियों में चले गये और अब भी 60 विधायक हैं। इतने ज्यादा नुमाइंदे वहां होने के बाद भी क्यों नहीं जमीन पर कैंपेन कर रहे हैं, यह समझ में नहीं आ रहा है।