केंद्र के बनाए मुस्लिम वुमेन एक्ट 2019 (प्रोटक्शन ऑफ राईट ऑन मैरिज) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। सरकार ने याचिकाओं पर की जाने वाली सुनवाई का विरोध करते हुए दायर हलफनामे में कहा है कि शायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला 2017 में दिया था, मीडिया रिपोर्ट्स के हिसाब से उसके बाद भी तीन तलाक नहीं रुक पा रहे थे। तभी हमने मुस्लिम वुमेन एक्ट 2019 बनाया।

मुस्लिम महिला फरियाद लेकर जाती थी थाने तो पुलिस नहीं ले पा रही थी एक्शन

अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा कि 2017 के फैसले के बाद तीन तलाक का शिकार बनने वाली महिलाएं जब थानों में अपनी फरियाद लेकर जा रही थीं तो पुलिस बेबस थी, क्योंकि उसके पास कोई ऐसा कानून नहीं था जिससे वो तलाक देने वाले शौहर के खिलाफ कोई एक्शन ले सके। इसी वजह से हमने मुस्लिम वुमेन एक्ट 2019 बनाया। इसमें ऐसे शख्स के खिलाफ तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है, जिससे वो ऐसा न कर सके।

डोमस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 मुस्लिम महिलाओं को नहीं दिला पा रहा था न्याय

केंद्र का कहना है कि इससे पहले मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रोटक्शन फॉर वुमेन फ्राम डोमस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 ही अमल में था। लेकिन इसमें इतना दम नहीं है जो पुलिस इसका सहारा लेकर तलाक देने वाले शौहर के खिलाफ कोई प्रभावी कदम उठा सके। इसी वजह से 2019 का एक्ट बनाया गया।

अपने हलफनामे में केंद्र ने एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि संसद से पारित हुए किसी भी कानून की वैधता को जांचने के मामले में अदालत की एक सीमा है। केंद्र का कहना है कि कोर्ट शायरा बानो केस में पहले ही कह चुका है कि तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14 का सरासर उल्लंघन है। लिहाजा कोर्ट 2019 के एक्ट में ज्यादा दखल नहीं दे सकता है।

2017 में तीन तलाक को माना था असंवैधानिक, उसके बाद बना 2019 का एक्ट

ध्यान रहे कि शायरा बानो के केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एक फैसला सुनाया था, इसमें तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया गया था। इसके बाद केंद्र ने 2019 का एक्ट बनाया था। इसमें तीन तलाक देने वाले शख्स को तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। फिलहाल इस एक्ट को असंवैधानिक बताकर कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। सुप्रीम कोर्ट इनकी सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।