Buxar Central jail: बिहार की बक्सर जेल को जैसे ही फांसी के दस फंदे तैयार करने का निर्देश दिया गया लोग कयास लगाने लगे कि ये फंदे 2012 दिल्ली गैंगरेप मामले के दोषियों के लिए तैयार किए जा रहे हैं। लेकिन यह फंदे बनाने का काम बक्सर जेल को ही क्यों दिया गया? दरअसल देश में जब भी किसी कैदी को फांसी की सजा दी जाती है तो उसमें इस्तेमाल होने वाला फंदा बक्सर सेंट्रल जेल में ही बनाया जाता है।

बक्सर सेंट्रल जेल राज्य की एकमात्र ऐसी जेल है जिसे फांसी के फंदा बनाने में महारत हासिल है। बक्सर को छोड़कर भारतीय फैक्ट्री लॉ के तहत इस क्वालिटी की रस्सी के निर्माण पर पूरे देश में प्रतिबंध है। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के अनुसार, केवल सरकारी आदेश को छोड़कर इस विशेष प्रकार के रस्सी के इस्तेमाल पर देश में पूरी तरह से प्रतिबंध है। फांसी के लिए मनीला रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है। इस रस्सी को तैयार करने के लिए 172 धागों को मशीन में पिरोकर घिसाई की जाती है। मजबूत धागा बनाने के लिए जे-34 किस्म की रुई का इस्तेमाल किया जाता है। यह व्यवस्था अंग्रेज सरकार के समय से चलती आ रही है।

धागों की लच्छी को मुलायम करने के लिए रातभर नमी में ओस में छोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया से रस्सी की मजबूती बढ़ जाती है। इसके बाद तीन रस्सी को एक मशीन में घुमाकर मोटी रस्सी बनाई जाती है। बक्सर जेल में सजा काट रहे कैदियों को प्रशिक्षण के तौर पर फांसी का फंदा तैयार करने का काम मिलता है। फिर पुराने कैदी नए कैदियों को यह प्रशिक्षण देते हैं। बता दें बक्सर से पहले फांसी की रस्सी फिलीपिंस की राजधानी मनीला में बनाई जाती थी। इसलिए इसका नाम मनीला रस्सी रखा गया है।

बक्सर जेल अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा ने बताया, “बक्सर जेल में लंबे समय से फांसी के फंदे बनाए जाते हैं और एक फांसी का फंदा 7200 कच्चे धागों से बनता है। उसे तैयार करने में दो से तीन दिन लग जाते हैं जिसपर पांच-छह कैदी काम करते हैं तथा इसकी लट तैयार करने में मोटर चलित मशीन का भी थोड़ा उपयोग किया जाता है।” जेल अधीक्षक ने बताया, “पिछली बार जब यहां से फांसी के फंदे की आपूर्ति की गई थी, तो एक की कीमत 1,725 रुपए रही थी, पर इस बार 10 फांसी के फंदे तैयार करने के जो निर्देश प्राप्त हुए हैं, उसमें पीतल के बुश जो कि गर्दन में फंसती है, की कीमत में हुए इजाफा के कारण फांसी के फंदे की कीमत में थोड़ी बढोतरी हो सकती है।”