लोकसभा चुनाव से पहले यूपी की राजनीति में बड़े गेमचेंजर के तौर पर देखे जा रहे महागठबंधन का आखिरकार अंत हो गया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि उनकी पार्टी 11 सीटों पर होने वाले उप चुनावों में अकेले ही उतरेगी। मायावती ने इस फैसले की वजह गठबंधन के खराब प्रदर्शन और कथित तौर पर यादव वोट का खिसकना बताई है। उन्होंने सपा के गढ़ माने जाने वाल बदायूं, फिरोजाबाद और कन्नौज का उदाहरण दिया, जहां से सपा प्रमुख अखिलेश यादव के परिवार के सदस्य भी चुनाव हार गए। सपा नेताओं ने भी यह माना है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में यादवों का दबदबा है, चुनावों में वहां भी सपा के कैंडिडेट पिछड़ते नजर आए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस ट्रेंड को लागू करते हुए पूरी तरह से सपा को दोष नहीं दिया जा सकता।

जिन 38 लोकसभा सीटों पर बसपा ने चुनाव लड़ा, वहां 2014 और 2019 के आम चुनाव में पार्टी को मिले वोट शेयर की तुलना करें तो पता चलता है कि एक सीट (फतेहपुर सीकरी) को छोड़कर बाकी सभी पर बसपा प्रत्याशियों को पहले के मुकाबले ज्यादा वोट मिले। यह बढ़त मायावती के प्रत्याशियों को सपा समर्थकों के समर्थन बिना मुमकिन नहीं लगती। वहीं, फतेहपुर में चुनावी अभियान के दौरान मिली फील्ड रिपोर्ट्स से इस बात का इशारा मिलता है कि इस सीट पर प्रत्याशी के चयन की वजह से बीएसपी को 2014 के मुकाबले भी कम वोट मिले। वहीं, विपक्ष का कुछ वोट कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को भी मिला।

11 सीट- सहारपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, बुलंदशहर, अंबेडकर नगर, घोसी, सलेमपुर, जौनपुर और मछलीशहर के बीएसपी प्रत्याशियों को 2019 में मिला वोट शेयर 2014 में सपा और बसपा को मिलाकर वोट शेयर के मुकाबले ज्यादा है। बीएसपी की जीती 10 में से 7 सीटें इनमें आती हैं। सपा नेताओं का कहना है कि उनके यादव समर्थकों ने अगर वोट नहीं दिया होता तो बसपा के लिए जौनपुर, गाजीपुर और लालगंज जैसी सीट जीतना मुमकिन ही नहीं था, जो पीएम के लोकसभा क्षेत्र से सटे हुए हैं।

हालांकि, मायावती ने बेहद सधे हुए शब्दों में इस गठबंधन को खत्म करने का ऐलान किया। उन्होंने भविष्य में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन का रास्ता खुला रखा। साथ ही अखिलेश यादव पर किसी तरह का हमला नहीं किया। यह तो साफ है कि इस चुनाव में सपा के मुकाबले बसपा को काफी ज्यादा फायदा हुआ। ऐसे में पार्टी के सामने मुस्लिमों के लिए सपा के मुकाबले ज्यादा भरोसेमंद विकल्प बनने का मौका है। मायावती भी मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत समझती हैं, शायद तभी उन्होंने 2017 के विधानसीाा चुनाव में सबसे ज्यादा मुसलमान प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। हालांकि, उन्हें कामयाबी नहीं मिली। वहीं, चुनाव 2019 के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी का वोट शेयर पिछली बार के 42.63% से बढ़कर 49.56% हो गया। वहीं, बीएसपी-एसपी और आरएलडी का संयुक्त वोट शेयर पिछली बार के 42.98% से घटकर 38.89% रह गया।