सीमा सड़क संगठन (BRO) जल्द ही अगले कुछ हफ्तों में चीन के साथ सटी सीमा पर बुनियादी ढांचे का काम पूरा कर लेगा। इनमें लेह के लिए वैकल्पिक मार्ग पर सड़क पैच शामिल हैं, जो हर मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करते हैं। इसके अलावा BRO ने भारत-चीन सीमा सड़क कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं पर काम करने और उत्तराखंड में मानसरोवर यात्रा मार्ग पर लिपुलेख दर्रे तक पूर्ण कनेक्टिविटी स्थापित करने को प्राथमिकता दी है।
लेह जाने के तीन रास्ते
वर्तमान में लेह तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं। पहला जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर-ज़ोजिला-कारगिल, दूसरा हिमाचल प्रदेश में मनाली-रोहतांग के माध्यम से है। यह सड़क दारचा नामक स्थान पर अलग होती है, जहां से एक रास्ता पदम और निमू के माध्यम से लेह से जुड़ता है, ये तीसरा है। वहीं लेह से जुड़ने से पहले ये रास्ता हिमाचल प्रदेश में बारालाचा ला और लद्दाख में कारू के माध्यम से तांगलांग ला के पहाड़ी दर्रों को पार करता है। वर्तमान में लेह के इन दोनों रास्तों पर हर मौसम में कनेक्टिविटी नहीं है।
लेह तक पहुंचने के लिए श्रीनगर-लेह और बारालाचा ला-कारू-लेह पुराने पारंपरिक मार्ग हैं। परियोजनाओं से परिचित वरिष्ठ अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि निमू-पदम-दारचा सड़क के 4 किलोमीटर लंबे बिना कटे हिस्से को जोड़ना और मनाली-दारचा-पदम-निमू अक्ष पर 4.1 किलोमीटर लंबी ट्विन ट्यूब शिंकू ला सुरंग पर निर्माण कार्य शुरू BRO की लिस्ट में शामिल है।
निमू-पदम-दारचा सड़क के 4 किलोमीटर लंबे बिना कटे हिस्से को जोड़ने का काम पूरा होने के कगार पर है और सड़क के अधिकांश हिस्से को पहले ही ब्लैकटॉप कर दिया गया है। बचे हुए काम अगले कुछ हफ्ते में पूरा हो जाने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई में द्रास की अपनी यात्रा के दौरान शिंकुन ला सुरंग परियोजना के निर्माण का शुभारंभ किया था। अधिकारियों ने कहा कि 15,800 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग बनने वाली सुरंग पर पूर्ण काम अगले कुछ हफ्तों में शुरू होने वाला है।
1,681 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह सुरंग मनाली और लेह के बीच की दूरी को 60 किमी कम कर देगी। यह निमू-पदम-दारचा सड़क के 4 किमी लंबे बिना कटे हिस्से तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा। यह हर मौसम के लिए खुला रहने वाला तीसरा मार्ग होगा, जो लेह के अन्य दो पुराने मार्गों का विकल्प होगा। अधिकारियों के अनुसार पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के समानांतर चलने वाली सड़कों में से एक से कनेक्टिविटी स्थापित करना भी बीआरओ की एक प्रमुख प्राथमिकता वाली परियोजना है।
4 सालों में तेजी से हुआ काम
मौजूदा 255 किमी लंबी दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DS-DBO) सड़क के अलावा दो अन्य सड़कें विभिन्न स्थानों पर एलएसी के समानांतर चलती हैं। ये एक सड़क है जो कारू और न्योमा के माध्यम से लेह और डेमचोक को जोड़ती है और दूसरी चुशुल के माध्यम से दुरबुक को न्योमा से जोड़ती है जो पैंगोंग त्सो झील के साउथ में है। एक अधिकारी ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में लेह-डेमचोक सड़क से कनेक्टिविटी स्थापित करने को प्राथमिकता दी गई है और इस सड़क पर अधिकांश निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इन सड़कों को डबल लेन करने की योजना है।
इन सभी का उद्देश्य लद्दाख क्षेत्र में एक मजबूत सीमा बुनियादी ढांचे का विकास करना और एलएसी से बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित करना है। 2020 के बाद से लद्दाख क्षेत्र के साथ-साथ पूर्वोत्तर में सीमा बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति तेजी से बढ़ी है। पिछले चार वर्षों में इन क्षेत्रों में सड़कों, पुलों, आवास, सुरंग, गोला-बारूद डिपो के निर्माण के साथ-साथ अन्य बुनियादी ढांचे के कार्यों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है ताकि परिचालन स्थिति के मामले में एलएसी पर तेजी से सैनिकों की आवाजाही को सक्षम किया जा सके।
यह इस वित्तीय वर्ष में बीआरओ को आवंटित कार्य बजट में भी परिलक्षित होता है, जिसमें पिछले वर्ष से 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और इस वर्ष 6,500 करोड़ रुपये हो गई। बीआरओ ने चार सड़कों को भी लिस्ट किया है जिन्हें वह आईसीबीआर परियोजना के पहले दो चरणों के तहत पूरा करना चाहता है। इनमें आईसीबीआर के दूसरे चरण के तहत कुल 330.95 किमी लंबी तीन सड़कें और सुरवा सांबा में एक और सड़क शामिल है। सभी चार सड़कें अरुणाचल प्रदेश में हैं।