केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन (Michael Hershman) से जानकारी प्राप्त करने के लिए लेटर रोगेटरी (Letter Rogatory) भेजने के बाद अमेरिका से न्यायिक अनुरोध किया है। हर्शमैन ने 1980 के दशक में हुए 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत कांड (Bofors bribery scandal) से संबंधित महत्वपूर्ण विवरण भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा जताई थी।

क्या होता है लेटर रोगेटरी (Letter Rogatory)

लेटर रोगेटरी (Letter Rogatory) एक लिखित अनुरोध होता है, जिसे एक देश की अदालत द्वारा दूसरे देश की अदालत को किसी आपराधिक मामले की जांच या अभियोजन में सहायता प्राप्त करने के लिए भेजा जाता है। एक सूत्र के अनुसार, एलआर भेजने की प्रक्रिया 14 अक्टूबर 2023 को शुरू की गई थी और संबंधित अदालत से मंजूरी मिलने के बाद इसे फरवरी 2024 में भेजा गया था। सीबीआई ने कथित रिश्वत मामले की आगे की जांच के लिए विशेष अदालत को हाल के घटनाक्रमों की जानकारी भी दी है।

18 मार्च 1986 को भारत ने सेना के लिए 155 मिमी हॉवित्जर तोपों (Howitzer guns) की आपूर्ति के लिए स्वीडिश हथियार निर्माता एबी बोफोर्स (AB Bofors) के साथ 1,437 करोड़ रुपये का सौदा किया था। इसके एक साल बाद, 16 अप्रैल 1987 को एक स्वीडिश रेडियो चैनल ने आरोप लगाया कि कंपनी ने यह अनुबंध हासिल करने के लिए शीर्ष भारतीय राजनेताओं और रक्षा कर्मियों को रिश्वत दी थी।

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इस घोटाले ने 1980 के दशक के अंत में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को हिलाकर रख दिया था। 22 जनवरी 1990 को सीबीआई ने तत्कालीन बोफोर्स अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो (Martin Ardbo), कथित बिचौलिए विन चड्डा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी।

आरोप था कि भारत और विदेश में कुछ सरकारी कर्मचारियों व निजी व्यक्तियों ने 1982 से 1987 के बीच एक आपराधिक साजिश रची, जिसके तहत रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और जालसाजी के अपराध किए गए।

इस मामले में पहला आरोपपत्र 22 अक्टूबर 1999 को विन चड्डा, ओटावियो क्वात्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एस.के. भटनागर, मार्टिन आर्डबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ दायर किया गया था। इसके बाद, 9 अक्टूबर 2000 को हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किया गया था।

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31 मई 2005 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आर.एस. सोढ़ी ने बोफोर्स रिश्वत घोटाले में सीबीआई के मामले को खारिज कर दिया था। इससे पहले, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जे.डी. कपूर ने 4 फरवरी 2004 को मामले में राजीव गांधी को दोषमुक्त कर दिया था और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहत जालसाजी का आरोप तय करने का निर्देश दिया था।

4 मार्च 2011 को दिल्ली की विशेष सीबीआई अदालत ने क्वात्रोची को इस मामले से बरी कर दिया, यह कहते हुए कि देश उसके प्रत्यर्पण पर कड़ी मेहनत से कमाए गए पैसे को खर्च नहीं कर सकता, जिस पर पहले ही 250 करोड़ रुपे खर्च हो चुके हैं। 29-30 जुलाई 1993 को भारत से भागने वाले क्वात्रोची अभियोजन का सामना करने के लिए भारत की किसी भी अदालत में पेश नहीं हुए। उनका 13 जुलाई 2013 को निधन हो गया। इस मामले के अन्य आरोपी भटनागर, चड्डा और आर्डबो की भी मृत्यु हो चुकी है।

सीबीआई ने 2005 के फैसले के खिलाफ 2018 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, लेकिन देरी के आधार पर याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा दायर अपील में सभी बिंदुओं को उठाने की अनुमति दी।

फेयरफैक्स समूह के प्रमुख माइकल हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे। अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने विभिन्न मंचों पर यह आरोप लगाया कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतार दी गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि वे सीबीआई के साथ सभी विवरण साझा करने के लिए तैयार हैं। एजेंसी ने उनके कई साक्षात्कारों पर ध्यान दिया और 2017 में घोषणा की कि मामले की जांच उचित प्रक्रिया के तहत की जाएगी।

इससे पहले, सीबीआई ने विशेष अदालत को सूचित किया था कि हर्शमैन के खुलासे के बाद, वह जांच को फिर से खोलने की योजना बना रही है। एजेंसी ने 8 नवंबर 2023, 21 दिसंबर 2023, 13 मई 2024 और 14 अगस्त 2024 को भी अमेरिकी अधिकारियों को पत्र और अनुस्मारक भेजे थे, लेकिन कोई सूचना नहीं मिली थी। अमेरिकी अधिकारियों ने अतिरिक्त समय का अनुरोध किया था।