हाल के वर्षों में विदेश व्यापार तथा निर्यात बढ़ाने में दुनिया के वही देश सफल रहे हैं, जिन्होंने अपनी विदेश व्यापार नीति में उपयुक्त परिवर्तन किए हैं। इन देशों में भारत भी शामिल है। पिछले एक दशक में भारत ने पड़ोसी देशों के साथ कारोबार बढ़ाने के लिए ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के साथ ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और प्रमुख देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) करने की रणनीति सहित नई ‘लाजिस्टिक नीति 2022’ और नई विदेश व्यापार नीति 2023 लागू की है। इसके बेहतर परिणाम मिले हैं।
पिछले वर्षों में भारत से माल एवं सेवाओं का निर्यात बढ़ा है
भारत के विदेश व्यापार में लगातार वृद्धि के साथ निर्यात की ऊंचाइयां भी बढ़ी हैं। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तवर्ष 2023-24 में भारत से माल एवं सेवाओं का कुल निर्यात 776.68 अरब डालर रहा, जो वित्तवर्ष 2022-23 में 776.40 अरब डालर था। जहां पिछले वर्ष कुल आयात 854.80 अरब डालर का रहा, वहीं वर्ष 2022-23 में कुल आयात 898 अरब डालर का था। इस तरह पिछले वर्ष आयात में कमी से कुल व्यापार घाटे में 36 फीसद की कमी दर्ज हुई है। पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने रूस से रियायत पर कच्चे तेल का आयात करना जारी रखा और वित्तवर्ष 2022-23 में करीब पांच अरब डालर और 2023-24 में करीब आठ अरब डालर की बड़ी बचत की।
पाकिस्तान को छोड़ पड़ोसी देशों के साथ व्यापार में इजाफा हुआ है
विदेश व्यापार के मोर्चे पर भारत ने पिछले कई वर्षों से डब्लूटीओ द्वारा प्रभावी भूमिका न निभाए जाने से विश्व व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव को समझते हुए अपने विदेश व्यापार को बढ़ाने के कई अन्य कदम उठाए हैं। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अब भारत पड़ोसी देशों- बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान के साथ विदेश व्यापार को बढ़ाने के लगातार प्रयास कर रहा है। हालांकि पाकिस्तान के स्वार्थी रवैए ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) को दक्षिण एशिया में आंतरिक क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने से रोक दिया है।
भारत आसियान देशों में निर्यात की नई रणनीति के साथ आगे बढ़ा
मगर भारत ने द्विपक्षीय व्यापार संधियों और समझौतों से छोटी अर्थव्यवस्थाओं के साथ विदेश व्यापार और निर्यात रणनीति को सकारात्मक विकल्प दिए हैं। इसके अलावा भारत ने अपनी तरफ से दक्षिण एशिया सहित सबसे कम विकसित देशों को एकतरफा शुल्क मुक्त और शुल्क तरजीह योजना की पेशकश की है। भारत-आसियान व्यापार भी बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 131.58 अरब डालर हो गया है। साथ ही, भारत आसियान देशों में निर्यात की नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है।
एक ओर 15 नवंबर, 2020 को अस्तित्व में आए दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते ‘रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप’ (आरसेप) में भारत ने अपने आर्थिक और कारोबारी हितों के मद्देनजर शामिल होना उचित नहीं समझा, वहीं ‘आरसेप’ से दूरी के बाद भारत एफटीए की डगर पर आगे बढ़ने की नई सोच के साथ आगे बढ़ा है। इस समय भारत विदेश व्यापार नीति को नया मोड़ देते हुए दुनिया के प्रमुख देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे दुनिया में यह संदेश जा रहा है कि भारत के दरवाजे वैश्विक व्यापार और कारोबार के लिए खुल रहे हैं।
भारत ने अब तक तीन एफटीए किए हैं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच मई 2022 में लागू द्विपक्षीय कारोबार में पिछले दो वर्षों में 15 फीसद की बढ़ोतरी देखने को मिली है। आस्ट्रेलिया के अलावा विगत 10 मार्च को भारत और चार यूरोपीय देशों के समूह ‘यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन’ (ईएफटीए) के बीच निवेश और वस्तुओं तथा सेवाओं के दोतरफा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किया गया एफटीए भी अत्यधिक उपयोगी है। लेकिन अब एफटीए से संबंधित देश के साथ निर्यात बढ़ाने पर अधिक ध्यान देना होगा।
अब स्थिति यह है कि दुनिया के कई विकसित और विकासशील देश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने को उत्सुक हैं, दुनिया देख रही है कि भारत सबसे तेजी से आर्थिक विकास की डगर पर बढ़ रहा है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे अधिक कौशल प्रशिक्षण के अभियान, बढ़ता सेवा क्षेत्र, बढ़ते निर्यात और अर्थव्यवस्था के बाहरी झटकों से उबरने की क्षमता नए भारत के निर्माण की बुनियाद बन सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक पंख लगे दिखाई दे रहे हैं। घरेलू संरचनात्मक सुधार, विनिर्माण, वैश्विक आपूर्ति शृंखला, बुनियादी ढांचे में निवेश और हरित ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ने से भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रवासी भारतीयों द्वारा प्रति वर्ष अधिक धन भेजने के साथ भारत को तकनीकी विकास के लिए मदद बढ़ी है। दुनिया के जी-20 देशों में भारत की नई अहमियत और दुनिया में मजबूत लोकतंत्र के रूप में भारत की पहचान इसके विकास को तेज रफ्तार दे रही है। ये सारी बातें भारत के लिए नए एफटीए से निर्यात बढ़ाने की नई संभावनाओं की बड़ी आधार हैं।
निस्संदेह इस वर्ष जब वैश्विक व्यापार में आर्थिक निराशाओं का दौर है, तब भारत को अपने विदेश व्यापार निर्यात का स्तर बनाए रखने के लिए कुछ और मजबूती से रणनीतिक कदम उठाने होंगे। भारत के लिए पड़ोसी देशों, आसियान देशों के साथ विदेश व्यापार बढ़ाने के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर अधिक यकीन करना होगा। भारत द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, इजराइल, ‘गल्फ कंट्रीज काउंसिल’ और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप देने के साथ-साथ ध्यान देना होगा कि नए एफटीए से भारत का निर्यात बढ़े और आयात का ढेर न लगे। भारत द्वारा चीन से आयात भी नियंत्रित करने होंगे।
जिस तरह विकसित अर्थव्यवस्था वाले कई देश लंबे समुद्री आवागमन से पहुंचने वाले दूरदराज के देशों के बजाय अपने तट के आसपास के देशों में कारोबार पर जोर दे रहे हैं, वैसी रणनीति पर भारत को भी ध्यान देना होगा। हालांकि भारत को दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी सेवा निर्यात में तुलनात्मक रूप से बढ़त हासिल है, लेकिन यह बात ध्यान में रखनी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे। भारत को अपने निर्यात में विविधता लाने और अन्य उभरते क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाली नई सरकार नई रणनीति के साथ निर्यात बढ़ाने की डगर पर आगे बढ़ेगी। उम्मीद है कि नई सरकार चालू वित्तवर्ष 2024-25 में वस्तु निर्यात को 500 अरब डालर के संभावित स्तर पर पहुंचाने के लिए निर्यात चुनौतियों से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों से देश के निर्यातों को बचाते हुए आगे बढ़ेगी। साथ ही सरकार वर्ष 2030 तक 200 अरब डालर का निर्यात लक्ष्य भी प्राप्त करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ती दिखाई देगी।