हमारे समय का पीड़ादायी सच यह है कि देश में किसी भी आयु वर्ग की बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। कुत्सित सोच का घेरा, स्कूल-कालेज से लेकर घर के आंगन तक हर कहीं बेटियों के आसपास बना हुआ है। कैसी विडंबना है कि शिक्षा के पहले पड़ाव पर ही लाडलियां शोषण का शिकार हो रही हैं और मेहनत के बल पर कुछ बन जाने वाली बेटियां भी। हरियाणा के जींद जिले के एक गांव, बंगाल की राजधानी कोलकाता और महाराष्ट्र के बदलापुर में हुई घटनाएं हमारे समाज में स्त्री देह के प्रति मौजूद विकृत सोच को उजागर करती हैं।

शारीरिक शोषण के बाद स्त्री देह का क्षत-विक्षत करने की सोच

ये घटनाएं दिशाहीन सोच की ऐसी बर्बरता की बानगी हैं, जिसमें अपराधी शारीरिक शोषण के बाद स्त्री देह को क्षत-विक्षत करने से भी नहीं चूकते। हरियाणा के जींद जिले के एक निजी विद्यालय में प्रधानाचार्य ने बाथरूम में दस साल की बच्ची का यौन उत्पीड़न किया। कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में संदिग्ध परिस्थिति में मेडिकल छात्रा का शव बहुत बुरी हालत में मिला, जिस पर यौन हिंसा और प्रताड़ना के गहरे निशान थे।

गौरतलब है कि जींद में चौथी कक्षा की दस वर्षीय छात्रा को स्कूल का प्रधानाचार्य स्कूल का नया भवन दिखाने के बहाने साथ ले गया और उसका यौन उत्पीड़न किया। उसके बाद डरा-धमका कर उसे घर भेज दिया। बच्ची ने बताया कि स्कूल प्रिंसिपल उससे पहले भी कई बार छेड़छाड़ कर चुका है। जिससे वह काफी परेशान थी। कोलकाता में एक मेडिकल कालेज परिसर में स्नातकोत्तर कर रही छात्रा के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गई। जांच से पता चला है कि उसे बहुत बुरी तरह और बर्बरता से मारा-पीटा भी गया था।

बदलापुर में हुआ करीब चार वर्ष की दो बच्चियों का यौन शोषण

अभी इन घटनाओं का गुस्सा शांत भी न हुआ था कि महाराष्ट्र के बदलापुर में करीब चार वर्ष की दो बच्चियों के यौन शोषण का मामला उजागर हो गया। ये घटनाएं बेटियों की सुरक्षा से जुड़े चिंताजनक हालात और स्त्री देह के प्रति कुत्सित सोच का पर्दाफाश करती हैं। कैसी विडंबना है कि चार वर्ष की या चौथी कक्षा की छात्रा हो या चिकित्सा विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही बेटी, सुरक्षा के मामले में उन्हें नकारात्मक परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। कुत्सित मानसिकता के चलते एक बेटी का जीवन ही छिन गया। दूसरी बच्चियों का मन सदा के लिए भय और वेदना से भर गया।

सवाल है कि आखिर हमारे परिवेश में क्या बदला है? आज भी स्कूल-कालेज से लेकर समाज के हर हिस्से तक, बेटियों का जीवन असुरक्षित है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 से 2022 तक बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले 96 फीसद बढ़े हैं। घर के आंगन से लेकर कामकाजी दुनिया तक, समानता के लिए जद्दोजहद कर रही स्त्रियों का जीवन जब पहले ही पड़ाव पर असुरक्षित है, तो भविष्य की रूपरेखा कैसी होगी?

इन सभी मामलों को जोड़कर देखा जाए तो समझा जा सकता है कि महिलाओं के अस्तित्व को आंकने-समझने और स्वीकार करने की सोच ही नदारद है। बहुत से लोगों में स्त्री को एक देह से आगे देखने की समझ आज भी नहीं आई है। शिक्षा और सजगता के बावजूद बेटियों के शोषण के मामलों पर लगाम नहीं लग पा रही है। मासूम बच्चियां हों या कामकाजी महिलाएं, भय के घेरे में जीने को विवश हैं। यहां तक कि तकनीक की तरक्की से मिली सुविधाएं भी शोषण का हथियार बन रही हैं।

हालात ऐसे बन गए हैं कि महिलाएं और लड़कियां हर समय, हर जगह, एक डर से जूझती हैं। सिमटी-सहमी जिंदगी जीती हैं। कोलकाता, बदलापुर और जींद जैसी घटनाएं इस डर को और विस्तार देती हैं। समझना जरूरी है कि महिलाओं और लड़कियों पर ही नहीं, उनके परिजनों पर भी ऐसी पीड़ादायी घटनाओं का गहरा असर पड़ता है। स्वयं महिलाएं तो अल्पकालिक और दीर्घकालिक गंभीर शारीरिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक उलझनों से जूझती ही हैं। ऐसी परिस्थितियां समाज के पूरे तानेबाने को प्रभावित करती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि शोषण और दुर्व्यवहार के अधिकतर मामलों में न्यायिक शिथिलता भी देखने को मिलती है।

गौरतलब है कि करीब छह वर्ष पहले गृह मंत्रालय द्वारा देश में महिला सुरक्षा के नियमों को शक्तिशाली बनाने के लिए ‘महिला सुरक्षा प्रभाग’ स्थापित किया गया। इसे समग्र रूप से न्याय के मोर्चे पर सक्रियता और प्रशासन के माध्यम से प्रभावी कदम उठाने के उद्देश्य से गठित किया गया, ताकि महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने और देश की आधी आबादी के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करने में मदद मिल सके। यह मुख्य रूप से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सहायता हेतु नीति निर्माण, आपसी समन्वय, परियोजनाओं और योजनाओं को लागू करने से जुड़ा प्रभाग है, जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली में सूचना प्रौद्योगिकी और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाकर फोरेंसिक विज्ञान, अपराध और आपराधिक रेकार्ड के लिए एक सहायक व्यवस्था को मजबूत बनाना शामिल है। बावजूद इसके, न्यायिक शिथिलता जारी है।

बहुत से मामलों में तो आरोपी को दोषी साबित करना ही कठिन होता है। दुर्दांत अपराधी भी कानून के शिकंजे से छूट जाते हैं। ऐसी घटनाएं भी प्रकट हैं, जिनमें व्यवस्था के ढुलमुल रवैए का लाभ उठाकर छूटे अपराधी फिर से बर्बर अपराध कर देते हैं। ऐसे हालात सामाजिक परिवेश और सामुदायिक सहभागिता के भाव को भी ठेस पहुंचाते हैं। पारिवारिक व्यवस्था के लिए मनोवैज्ञानिक आघात होते हैं। अकादमिक और कामकाजी मोर्चे पर स्वयं को साबित करने में जुटी बेटियों और महिलाओं के पांवों की बेड़ी बनते हैं।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो की वर्ष 2024 की रपट में पिछले वर्ष के मुकाबले आपराधिक घटनाओं में आई 0.56 फीसद की मामूली गिरावट के बावजूद देश में बलात्कार के मामलों में 1.1 फीसद और अपहरण की घटनाओं में 5.1 फीसद की वृद्धि हुई है। रपट में सबसे ज्यादा अपराध दर वाले प्रांतों में उत्तर प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार शामिल हैं।

राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के ताजा अध्ययन के अनुसार देश में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध चिंता का विषय बने हुए हैं। विशेषकर यौन उत्पीड़न और बाल शोषण जैसे अपराध बड़ी समस्या हैं। विचारणीय है कि किसी भी समाज में स्त्रियों और बच्चों की स्थिति वहां की आर्थिक उन्नति और सामाजिक खुशहाली से भी जुड़ी होती है। हाल के वर्षों में तो आर्थिक मोर्चे पर भी महिलाओं ने अहम भूमिका दर्ज काराई है। विज्ञान से लेकर खेल की दुनिया तक बहुत-सी उपलब्धियां हासिल कर देश का मान बढ़ाया है।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेहतरी की ओर कदम बढ़ाने में जुटी महिलाओं के लिए भय, अविश्वास और असुरक्षा के हालात बने हुए हैं। स्कूल की बच्चियां हों या कामकाजी महिलाएं, मन-जीवन की सहजता के हालात नहीं बन पाए हैं। हमारे देश में आज भी आधी आबादी संविधान में वर्णित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार के लिए जूझ रही है।